कॉलेज के दिनों में पत्रकारिता को लेकर जो हमें सबसे पहला पाठ पढ़ाया गया था, वो ये था कि एक पत्रकार को किभी भी पक्षपाती नहीं होना चाहिए. पत्रकार का काम है कि घटना जैसी है, उसको उस हिसाब से दुनिया के सामने रख दे. ख़बरों में अपना विचार डालना एक पत्रकार का काम नहीं है.
पत्रकार को तथ्यों की जांच करनी चाहिए और ख़बर से जुड़े सभी पहलुओं/व्यक्तिओं का पक्ष रखना चाहिए, ये आगे की दो क्लासों में बता दिया गया. ये ज्ञान शुरू-शुरू में ही इसलिए दे दिया गया ताकि नींव सही पड़े. असल बात ये है कि पत्रकार भी इंसान होते हैं, उनकी अपनी विचारधारा होती है, कुछ पूर्वाग्रह भी होते हैं. ये सब चीज़ें उसे अपने पेशे में ईमानदार होने से रोकती हैं. लेकिन ये सब मैं आपको क्यों बता रहा हूं?
वर्तमान में एक ख़बरिया चैनल सुदर्शन न्यूज़ के प्रमुख हैं सुरेश चव्हाणके. मीडिया क्षेत्र में उनका नाम बहुत बड़ा हैं. अभी हाल में उन्हें अपने एक नए पोर्टल के लिए कुछ पत्रकार चाहिए थे. जिसकी प्रमुख शर्त उम्मीदवार का ‘राष्ट्रवादी’ होना था. बहस की शुरुआत इसी से होती है.
Inviting Journalist for our English Portal. Only Nationalist can apply hr@SudarshanNews.com
— Suresh Chavhanke STV (@SureshChavhanke) July 23, 2018
‘राष्ट्रवाद’ को सीधा सरल मतलब निकाला जाए, तो वो ये होगा कि राष्ट्र हर चीज़ के ऊपर होता है.
राष्ट्र की भलाई ही अंतिम लक्ष्य है. ये एक अच्छी बात है, लेकिन ‘राष्ट्र’ होता क्या है? इस शब्द को आसानी से नहीं समझा जा सकता. क्योंकि हर कोई अपने हिसाब से राष्ट्र को देखता है. हालिया वाक्या से ही समझने की कोशिश करते हैं. GST लागू करते वक्त सरकार ने सैनेटरी नैपकीन के ऊपर 12 प्रतिशत का टैक्स लगाया, जिसका विरोध किया गया. सरकार ने राष्ट्रहित अपने को सही बताया और लंबे समय तक उसका बचाव किया. अभी दो दिन पहले ही सरकार ने राष्ट्रहित में अपने उसी पुराने फ़ैसले को वापस कर सैनेटरी नैपकिन को करमुक्त कर दिया. अब सवाल उठता है, सरकार की नज़र में राष्ट्र का हित एक साल के भीतर कैसे बदल गया. ये बहुत छोटा उदाहरण है, ऐसे बड़ी-बड़ी चीज़ें होती हैं, जब दो लोग दो अलग बातें करते हैं और दोनों ख़ुद को राष्ट्र के हिसाब से सही बताते हैं. इससे ये साबित होता है कि राष्ट्रवाद कुछ और नहीं, आपका नज़रिया है, एक तानाशाह भी ख़ुद को राष्ट्रवादी बोलता है, एक लोकतांत्रिक सरकार भी ख़ुद को राष्ट्रवादी ही बोलती है, दोनों का नज़रिया एक-दूसरे से बिल्कुल अलग है.
‘राष्ट्रवाद’, ‘वामपंथ’, ‘पूंजीवाद’ ये सब विचारधाराओं के नाम हैं, एक इंसान के तौर पर हम किसी भी ‘वाद’ के समर्थक हो सकते हैं, घटनाओं को उस नज़र से देख सकते हैं, उसकी व्याख्या उस हिसाब से करते हैं, लेकिन जब हम एक पत्रकार की हैसियत में होते हैं, तब हमें अपने पूर्वाग्रहों को दूर रख तटस्थ हो कर घटनाओं को देखना होगा और उसको जैसा का तैसा दुनिया के सामने रखना होगा.
सुरेश चव्हाणके के ट्वीट के रिप्लाई में कई तरह के ट्वीट किए गए, कुल मिलाकर सबने उनकी टांग खिंचाई ही की, लेकिन इससे मुद्दे की गंभीरता कहीं छीप गई. यहां एक मीडिया संस्थान का मालिक खुल कर ये कह रहा हूं कि मैं एक पक्षपाती पत्रकार हूं और मुझे अपने संस्थान के लिए कुछ पक्षपाती कर्मचारी चाहिए, जिन्हें अंग्रेज़ी आती हो.
Sir main Hindu hu, berojgar hu…. par main BJP aur RSS ko support nahi karta, kya main apply kar sakta hu???
— संत श्री मासूम तड़ीपार #RYP 🔔 (@Aam_Nationalist) July 23, 2018
Sir I’m a Tamil Dalit untouchable. Can I apply? I would bring much nationalism to your panel.
— Anand Bobby (@anandbobby) July 23, 2018
I can write decent English and I always fact check before I publish anything. I criticize wrong policies of govt and in general write for the betterment of the country and my countrymen….
Wait that’s a HUGE disqualification…I guess I can’t apply.— Not So Angry Bird (@VVAngryBird) July 23, 2018
Guruji english aani jaroori hain kya
— Sarkarsm ✘ #ModiFor2019 (@thebakwaashour) July 23, 2018
Sach me…
Jai Modi…Jai RSS…Jai Godse…Jai Savarkar… Long live Britishers…Ab toh mujhe Nationalist samjho …😏😏😏— संस्कारी बच्चा (@Being_Sanskaari) July 23, 2018
बात ख़त्म करने से पहले एक बात और, पत्रकारिता की पढ़ाई को दौरान हमें ये भी सिखाया गया था कि अगर तुम्हें किसी के लिए पक्षपाती होना ही है, तो तुम उस के पक्ष में खड़े हो जो कमज़ोर हो, एक पत्रकार के तौर पर तुम उसकी आवाज़ बनो.