जाओ. जाकर इकोनॉमी क्लास की लाइन में लगो. ये लाइन बिज़नेस क्लास में यात्रा करने वाले लोगों के लिए है.’
लंदन के इंटरनेशनल हीथ्रो एयरपोर्ट पर हाई-हील्स पहने और Gucci का बैग लिए एक महिला, इंफ़ोसिस फ़ांउडेंशन की चेयरपर्सन सुधा मूर्ति को ये सलाह दे रही थी.
सुधामूर्ति एयरपोर्ट पर एक सलवार कमीज़ में मौजूद थीं, शायद इसी वजह से लोग उन्हें वहां एक तरह से ‘मिसफिट’ समझ रहे थे. उन्हें Cattle Class महिला तक कहा गया. बिज़नेसमैन नारायण मूर्ति की 66 साल की पत्नी सुधामूर्ति ने इस घटना को अपनी नई किताब में जगह दी है. उनकी इस किताब का नाम Three Thousand Stitches है.
उन्होंने इस घटना के सहारे समाज में वर्ग को लेकर दकियानूसी सोच और कपड़ों की वजह से क्लास की अवधारणाओं पर भी प्रकाश डाला है. उन्होंने इस मुद्दे पर किताब में लिखा कि, ‘क्लास का मतलब आपके पास बहुत सारा पैसा होना नहीं है. मदर टेरेसा एक उत्तम श्रेणी की महिला थीं. भारतीय मूल की महान गणितज्ञ मंजुला भार्गव भी एक क्लासिक महिला थीं. ज़ाहिर है, पैसा समाज में प्रतिष्ठा का प्रतीक नहीं है और इस तरह के Thought Process को बहुत पहले नकारा जा चुका है.’
उन्होंने पीटीआई को दिए इंटरव्यू में कहा कि ‘मैं उस महिला को अपना बोर्डिंग पास दिखाकर वर्ग को लेकर उनकी बनी-बनाई धारणाएं तोड़ सकती थी. लेकिन मैंने ऐसा करना ज़रुरी नहीं समझा.’ लेकिन ये एक अजीब संयोग ही था कि कुछ ही घंटों में इस महिला को अपना सबक मिल चुका था क्योंकि शाम को ये महिला एक बार फिर सुधा मूर्ति के सामने थीं.
एयरपोर्ट पर इंडो-वेस्टर्न सिल्क ड्रेस और महंगी हील्स में नज़र आने वाली वही महिला, एक एनजीओ की मीटिंग के लिए सादी सी खादी की साड़ी में सुधामूर्ति के सामने थी. इस मीटिंग को सुधामूर्ति हेड कर रही थीं. ये मीटिंग इंफ़ोसिस फ़ाउंडेशन की तरफ़ से एक सरकारी स्कूल के स्पॉन्सर फ़ंड के सिलसिले में रखी गई थी.
सुधा मूर्ति को मीटिंग में चेयरपर्सन के तौर पर देखकर महिला के होश उड़ चुके थे लेकिन सुधामूर्ति इस महिला के पहनावे को देख समझ चुकी थीं कि समस्या आखिर कहां है?
सुधा ने लिखा कि ‘दरअसल आपके कपड़ों को लेकर आज भी घिसी-पिटी धारणाएं समाज में मौजूद हैं. जैसे लोगों से उम्मीद की जाती है कि वो शादी के दिन सिल्क के शानदार कपड़ों में नज़र आए, उसी तरह सोशल वर्कर्स के बारे में बोरिंग और डल ड्रेसअप की धारणा है. यही कारण था कि ये महिला मीटिंग में सादी, नीरस, खादी की साड़ी में नज़र आ रही थीं.’
उनका कहना था कि ‘एलीट क्लास का हिस्सा बनने की छटपटाहट, समाज के बाज़ारीकरण का प्रभाव है. ये दबाव लोगों के अवचेतन मन में निश्चित तरीके से व्यवहार करने और एक बने-बनाए ढर्रे पर ज़िंदगी बिताने को मजबूर करता है. शायद यही कारण है कि कुछ लोग इस सामाजिक-मानसिक दबाव में आकर भी गलत आदतों का रुख करने लगते हैं.’
‘मेट्रो शहरों में कई कॉलेज जाने वाली लड़कियां भी इसी तरह के दबाव का शिकार होती है. इनमें से कुछ तो वेश्यावृति जैसे धंधों को अपनाने से भी गुरेज़ नहीं करतीं. महंगे कपड़ों के साथ एलीट होने का दिखावा तो किया जा सकता है, लेकिन अपने मूल्यों के साथ खिलवाड़ कहां तक जायज़ है?’
सुधा मूर्ति के मुताबिक, ‘जब मुझे खुद इस बात का अनुभव हुआ तो मैं गुस्सा होने से ज़्यादा निराशा महसूस कर रही थी.’
ये समाज की कड़वी सच्चाई है कि आज इंसान के कपड़ों से उसका कद और ओहदे को आंका जाता है. सुधामूर्ति के साथ ये घटना भले ही कई सालों पहले हुई हो लेकिन आज भी हमारे देश में ऐसी घटनाओं में कोई कमी नहीं आई है. हाल ही में कोलकाता में एक शख़्स को मॉल में धोती पहनने के चलते रोक लिया गया था, लेकिन जब उसने सिक्योरिटी अधिकारियों से अंग्रेज़ी में बात शुरु की तब जाकर उसे मॉल में एंट्री मिल पाई थी.
इस किताब को पेंग्विन रैंडम हाउस ने प्रकाशित किया है. किताब में 11 चैप्टर्स हैं. इस किताब में सुधामूर्ति के उन अनुभवों का लेखा-जोखा है जब वे इंफ़ोसिस फ़ाउंडेशन में काम करती थीं.उम्मीद है सुधामूर्ति की किताब के बाद कपड़ों से ओहदे निर्माण जैसी दकियानूसी धारणाओं पर भी विमर्श की संभावनाएं बढ़ेंगी.