झारखंड की गिनती देश के पिछड़े इलाकों में की जाती है. वहां से लोगों की सोच बदलने वाली एक प्रेरणादायक कहानी आई है. ये कहानी है एक महिला की, जिसने हमारी पितृसत्तामक सोच को आईना दिखाया है. इस महिला का नाम है सुनीता देवी, जिन्हें इस साल नारी शक्ति पुरस्कार से सम्मानित किया जाएगा, वो भी राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद के हाथों. आइए जानते हैं इस साहसी महिला की कहानी.
झारखंड के लातेहार ज़िले की रहने वाली सुनीता देवी का नाम आज पूरी दुनिया जान रही है. वजह है राज मिस्त्री का काम, जिसे अब तक मर्दों वाला काम ही कहा जाता था. मगर रानी ने एक कुशल राज मिस्त्री बनकर लोगों को बता दिया कि इस काम को भी महिलाएं आसानी से कर सकती हैं.
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इतना ही नहीं, उन्होंने अपने जैसी सैंकड़ों महिलाओं को भी राज मिस्त्री बनने के लिए प्रेरित किया है और उन्हें इसके लिए ज़रूरी ट्रेनिंग भी दी है. लोग अब ऐसी महिलाओं को रानी मिस्त्री के नाम से जानने लगे हैं.
2016 में विरोध के साथ हुई थी शुरुआत
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बात साल 2016 की है, जब झारखंड सरकार अपने इलाके को खुले में शौच मुक्त बनाने के लिए शौचालय बनाने की योजना लेकर आई थी. इस योजना के बारे में जब सुनिता को पता चला, तो उन्होंने गांव वालों से महिलाओं के लिए शौचालय बनाने का आग्रह किया.
लेकिन गांव वालों ने उनका विरोध किया. यहां तक की उन्हें गांव से बाहर निकालने की धमकी भी दी, मगर उनके पति ने सुनीता का पूरा साथ दिया.
महिलाओं को दी राज मिस्त्री बनने की ट्रेनिंग
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उन्हें पता चला कि इस काम के लिए सरकार को राज मस्त्रियों की ज़रूरत है. तब सुनीता ने राज मिस्त्री का काम सीखा. इसके बाद एक ग्रुप की शुरुआत की जिसका नाम था विकास आजिविका. राज्य सरकार ऐसे ग्रुप्स को आर्थिक सहायाता देती और राज्य में शौचालय बनाने का काम कर रही थी.
बनीं स्वच्छता सलाहकार
इस ग्रुप और अपनी मेहनत के दम पर उन्होंने करीब 300 महिलाओं को रानी मिस्त्री बनने के लिए प्रेरित किया और उन्हें ट्रेनिंग भी दी. इन सभी महिलाओं ने मिलकर पूरे राज्य में 1500 शौचालय बनवाए. पिछले साल लातेहार को खुले में शौच मुक्त ज़िला घोषित किया गया था. साथ ही सुनीता देवी को स्वच्छता सलाहकार के रूप में नियुक्त किया गया.
रोल मॉडल
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झारखंड के स्वच्छ भारत मिशन के डायरेक्टर अमित कुमार ने सुनीता को एक रोल मॉडल कहा है. उन्होंने टेलीग्रॉफ़ को दिए इंटरव्यू में कहा, सुनीता ने मर्दों का काम समझे जाने वाले राज मस्त्री वाले काम की सोच को तोड़ने का साहस किया. उन्होंने कई महिलाओं को इसके लिए ट्रेन किया साथ ही, उन्हें स्वच्छता और शौचालय का महत्व भी बताया. वो बहुत ही अच्छा काम कर रही हैं. हमें उम्मीद है कि उन्हें मिले इस पुरुस्कार के बाद और भी महिलाएं स्वच्छता की दिशा में काम करने के लिए प्रेरित होंगी.
अभी और लोगों की मानसिकता बदलनी है
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सुनीता झारखंड की राजधानी रांची से 115 किलोमीटर दूर उदयपुर नाम के गांव में रहती हैं. जब उन्हें पता चला कि इस बार उन्हें नारी शक्ति अवॉर्ड के लिए चुना गया है, तो वो बहुत ख़ुश हुईं.
उन्होंने इस बारे में बात करते हुए कहा, ये किसी क्रांति से कम नहीं है. हमने जब शुरुआत की थी तब, एक सप्ताह में एक टॉयलेट बना पाते थे लेकिन अब हम चार दिनों में ही एक शौचालय बना लेते हैं.
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इसके लिए वो झारखंड सरकार को धन्यवाद देती हैं. उनका कहना है कि अभी तो और भी लोगों की मानसिकता बदलनी है.
वाकई में सुनीता नारी सशक्तिकरण की असली मिसाल हैं.