सदियों से हम सुनते आ रहे हैं कि गुरु का दर्जा माता-पिता से भी ऊंचा होता है और इस सम्मान को बनाये रखा है तमिलनाडु के एक शिक्षक ने. जी हां, पिछले कुछ दिनों से तमिलनाडु के विल्लुपुरम में स्थित नगरपालिका उच्च माध्यमिक विद्यालय के हेडमास्टर, डी बालू की तस्वीर सोशल मीडिया पर वायरल हो रही है.
अब पहले आप नीचे दी गई फ़ोटो देखिये:
इस फ़ोटो में साफ़ दिखाई दे रहा है कि कैसे डी. बालू जी अपने घुटनों के बल एक छात्र के सामने बैठकर हाथ जोड़े हुए हैं. अब ये फ़ोटो देखकर आपके मन में भी ये सवाल उठ रहा होगा कि शिक्षक होने के बावजूद मास्टर जी बच्चों के सामने हाथ क्यों जोड़ रहे हैं? क्यों है ना यही बात.
तो चलिए अब हम आपको पूरा मामला बताते हैं कि आखिर ऐसा क्यों हो रहा है.
दरअसल, इस सरकारी स्कूल के हेडमास्टर डी. बालू स्कूल के छात्रों से रोज़ स्कूल आने के लिए इस तरह विनती करते हैं, ताकि बच्चे स्कूल आएं और पढ़ाई-लिखाई करके अपना भविष्य बेहतर बनायें. आपकी जानकारी के लिए बता दें कि ये तस्वीर इसी साल की 24 जनवरी को खींची गई थी.
तस्वीर के बारे में पूछने पर 56 वर्षीय बालू ने बताया कि वो 12वीं कक्षा के छात्र के सामने हाथ जोड़ रहे हैं ताकि वह रोज स्कूल आए. मैं इसलिए उससे भीख मांग रहा था, ताकि वह अपने जीवन में प्रगति कर सके. इसके साथ ही उन्होंने ये भी बताया, ‘मैं व्यक्तिगत रूप से अपने स्कूल में पढ़ने वाले 150 से अधिक छात्रों के घरों का दौरा कर चुका हूं. और मैं उन्हें इस तरीके से अच्छी तरह से अध्ययन करने और कक्षाओं में नियमित रूप से आने के लिए कहता हूं.
कितनी हैरान करने वाली बात है कि जहां इन दिनों देश में आये दिन टीचर द्वारा स्टूडेंट्स के साथ दुर्व्यवहार और मार-पीट की ख़बरें आती रहती हैं, वहीं एक राज्य में सरकारी स्कूल के हेडमास्टर डी बालू की ये सोच बेहद सराहनीय है. उनकी इस पहल की जितनी भी तारीफ़ की जाए कम है.
आपकी जानकारी के लिए बता दें कि डी बालू जी ने तीन साल पहले उस समय ये प्रयास करना शुरू किया था, जब वो चेंगलपेट में एक स्कूल चलाते थे. उनका मानना है कि उनके इस काम ने उनको और उनके स्टूडेंट्स के बीच की बॉन्डिंग और मज़बूत कर दी है. वो कहते हैं कि हर समय बच्चों पर पढ़ाई का प्रेशर बनाना और उनको हर वक़्त डांटने या मारने से उनमें सुधार नहीं आएगा या वो पढ़ाई नहीं करने लगेंगे, बल्कि इससे बच्चों में गुस्सा बढ़ेगा और वो पढ़ाई से दूर भागेंगे और ग़लत रास्ते अपनाएंगे.
गौरतलब है कि डी. बालू के स्कूल में एक हज़ार से भी ज़्यादा स्टूडेंट्स हैं, जो 6वीं क्लास से लेकर 12वीं तक की क्लासेज़ में पढ़ते हैं. बालू मुख्य रूप से उन छत्रों पर ध्यान केंद्रित करते हैं, जो 12वीं कक्षा में पढ़ते हैं. इस अध्यापक का मानना है कि उनके स्कूल में आने वाले छात्र मुख्य रूप से अनुसूचित जाति/जनजाति के हैं और उनके माता-पिता किसान हैं या दूसरों के खेतों पर काम करके गुज़र-बसर करते हैं. ऐसे में इन गरीब माता-पिता के बच्चों को पढ़ाई के लिए जागरुक और प्रेरित करने का दूसरा कोई उपाय नहीं है.
हमारे देश को डी. बालू जी जैसे शिक्षकों की बहुत ज़रूरत है. ऐसे शिक्षक को मेरा शत-शत नमन!