धर्म और जातिवाद जैसी सामाजिक बीमारी को मिटाने के लिए शिक्षा एक अचूक हथियार है. लेकिन शिक्षा के मंदिर में ही अगर बच्चों को जात-पात के पाठ पढ़ाए जा रहे हों, तो इस अंधकार का मिटना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन है. 

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तमिलनाडु का एक स्कूल मासूम बच्चों को अभी से ही धर्म, जाति और छुआछूत को लेकर एक दूसरे की जान का दुश्मन बनाने पर अमादा है.   

चेन्नई से क़रीब 650 किमी दूर तिरूनेलवेली शहर के सरकारी उच्च माध्यमिक स्कूल की यूनिफॉर्म छात्रों की एकरूपता नहीं बल्कि उनकी जाति दर्शाती है. यहां के छात्र अपनी कलाई, माथे, गर्दन और कमीज पर अलग-अलग रंगों के पट्टे लगाते हैं. यहां हर रंग एक अलग जाति का निशान माना जाता है. 

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एक रिपोर्ट के मुताबिक़, इस स्कूल के सभी छात्र-छात्राओं को अपनी जाति के आधार पर हाथों में अलग-अलग रंग के पट्टे (रिस्टबैंड) पहनने पड़ते हैं. उच्च जाति के छात्रों को लाल-पीले रंग के पट्टी जबकि दलित छात्रों को लाल-हरे रंग की पट्टी पहननी होती है. ये सब स्कूल के टीचरों के सामने होता है. इस बारे में स्कूल में कोई लिखित क़ानून नहीं है.  

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कई बार इन रंग बिरंगे रिस्टबैंड को लेकर छात्रों में सामुदायिक हिंसा की झड़प भी हो चुकी हैं. ऐसा तब देखने को मिलता है जब किसी छात्र को कोई रंग पसंद हो और उसे पहन ले. अगस्त में छात्र समूहों के बीच झड़पों की बढ़ती संख्या की जांच में ज़िला प्रशासन ने पाया कि कलाई के बैंड का इस्तेमाल अक्सर जाति के आधार पर किया जाता है. इसके बाद कलेक्टर ने शिक्षा विभाग को तिरुनेलवेली के स्कूलों में कलाई बैंड पर प्रतिबंध लगाने के लिए कहा था. लेकिन कोई लिखित आदेश नहीं दिया. 

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मामला उस वक़्त राज्य के शिक्षा मंत्री तक पहुंच गया जब 2018 बैच के 180 ट्रेनी आईएएस अधिकारियों ने तमिलनाडु के कुछ स्कूलों में छात्रों को रंगीन कोडेड कलाई बैंड पहनने के संबंध में एक सर्कुलर जारी किया.  

The New Indian Express से बातचीत में ‘स्कूल शिक्षा मंत्री’ केए सेंगोट्टाइयान ने कहा कि उन्होंने सभी शिक्षा अधिकारियों से इन स्कूलों के ख़िलाफ़ चेतावनी के आदेश नहीं दिए हैं. तमिलनाडु में जो भी प्रथा मौजूद है, वो उसी तरह जारी रहेगी. 

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दरअसल, तमिलनाडु के इस इलाके में जातीय हिंसा सामान्य बात है. कलाई पर बंधने वाले पूजा के धागे से लेकर माथे पर लगने वाले तिलक तक में जाति के रंग का विशेष ध्यान रखा जाता है. उच्च जाती से लेकर अन्य पिछड़ा वर्ग व दलित समुदाय में बीच भी विवाद रहते हैं.