एस्फाल्ट की रोड पर वो लड़की नंगे पांव चल रही थी. बगल में उसका भाई था, अपने मज़बूत कन्धों पर वो अपने अंधे पिता और घर के सामान को लाद कर चल रही थी. हरिद्वार से शामली के बीच का 100 किलोमीटर का सफ़र मीना और उसकी बहन ने यूं ही तय किया. रास्ते भर उसे जाते हुए कईयों ने देखा, लेकिन वो सभी उसके लिए अंधे हो चुके थे.

ये कहानी है दो बहनों और उनके परिवार की. इस साल हरिद्वार में हुए कुम्भ में मीना की 12 साल की Cousin को एक कपटी साधु को अपने साथ ले गया. वो लड़की तभी से गायब है. मीना पुलिस के पास मदद के लिए गयी, तो वहां कुछ मदद न मिली. थक-हार कर परिवार सीधे हरिद्वार निकल पड़ा. हरिद्वार पहुंचने पर परिवार ने किसी तरह साधु का पता लगा लिया, लेकिन वो वहां से भाग गया. इसे इनकी किस्मत कहिये या हमारे समाज की घिनौनी सच्चाई कि एक शातिर चोर ने इनका घोड़ा भी चोरी कर लिया. अब न इनके पास पैसे थे, न रहने को जगह और न ही पिता को लादने के लिए घोड़ा.बिन घोड़े के मीना अकेले ही अपने अंधे पिता को लादते हुए पैदल चलने लगी. बीच-बीच में शकीला अपनी बहन की मदद कर देती.

शामली के DM और पुलिस सुप्रीटेन्डेंट तक जब ये बात पहुंची, तो दोनों ने परिवार के लिए घोड़ा मुहैय्या करवाया, उन्हें खाने को दिया और कुछ समय आराम का इंतज़ाम करवाया. इनके काम की यहां तारीफ़ करनी होगी, लेकिन हैरत होती है इस समाज के लिए कि एक बच्ची इतनी मुसीबतें झेलते हुए उनके सामने से जा रही थी और उन्हें फ़र्क भी नहीं पड़ा?