इलाहाबाद हाईकोर्ट ने यूपी में ‘नागरिकता संशोधन कानून’ के विरोध में हुई हिंसा के बाद आरोपियों के होर्डिंग्स लगाने के मामले में लखनऊ के डीएम और पुलिस कमिश्नर को इस तरह के सभी पोस्टर तुरंत हटाने के निर्देश दिए हैं.
हाईकोर्ट ने इसके साथ ही इस मामले में 16 मार्च तक रिपोर्ट रजिस्ट्रार जनरल को सौंपने के निर्देश दिए हैं. अब इस मामले की सुनवाई 16 मार्च को होगी.
लखनऊ के प्रमुख चौराहों पर 53 आरोपियों के पोस्टर लगाए गए हैं.
क्या है पूरा है मामला?
इस मामले में लखनऊ ज़िलाधिकारी अभिषेक प्रकाश का कहना था कि हिंसा फैलाने वाले सभी ज़िम्मेदार लोगों के लखनऊ में पोस्टर व बैनर लगाए गए हैं. इन सभी की संपत्ति की कुर्क की जाएगी. सभी चौराहों पर ये पोस्टर लगाए गए हैं, जिससे उनके चेहरे बेनक़ाब हो सकें.
बीते रविवार को इस मामले की सुनवाई के दौरान चीफ़ जस्टिस गोविन्द माथुर और जस्टिस राकेश सिन्हा की स्पेशल बेंच ने सरकार को इस तरह के सभी पोस्टर हटाने के निर्देश दिए हैं. इसके साथ ही कोर्ट ने साफ़ तौर पर कहा कि बिना दोषी करार दिए इस तरह के पोस्टर लगाना निजता का हनन है.
वहीं सरकार की तरफ़ से महाधिवक्ता राघवेंद्र प्रताप सिंह ने दलील देते हुए कहा कि सरकार ने ऐसा इसलिए किया ताकि आगे भी इस तरह से सार्वजानिक संपत्तियों को नुकसान न पहुंचाया जा सके.
न्यूज़ 18 इंडिया की ख़बर के मुताबिक़, अब योगी सरकार इलाहाबाद हाईकोर्ट का पूरा फैसला आने के बाद इसके ख़िलाफ़ सुप्रीम कोर्ट जा सकती है.