पश्चिम बंगाल के शिबपुर में सबसे उम्रदराज़ जीव कोई इंसान नहीं, बल्कि बरगद का एक पेड़ है. जी हां, इस स्थान पर ये पेड़ पिछले 255 सालों से अपनी जड़ें जमाए हुए है. कलकत्ता के आचार्य जगदीश चंद्र बोस बोटैनिकल गार्डन में मौजूद ये पेड़ कई ऐतिहासिक घटनाओं का गवाह रहा है. गिनीज़ बुक ऑफ़ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स ने इसे एक ऐसे पेड़ के तौर पर शुमार किया है जिसकी कैनोपी सबसे बड़ी है और जिसका Circumference (परिधि) दुनिया में किसी भी पेड़ से कहीं ज़्यादा है.
बाग के प्रशासन ने इस पेड़ की हालिया उपलब्धि को भी गिनीज़ बुक टीम को बताने के लिए एक पत्र लिखने का फ़ैसला किया है. दरअसल, इस ग्रेट बरगद के पेड़ में 4000 से ज़्यादा Prop roots हैं, दूर से देखने पर ये पेड़ एक जंगल जैसा दिखाई देता है लेकिन इस बरगद के आस-पास मौजूद पेड़ दरअसल पेड़ न होकर Prop या Aerial Roots होते हैं. ये अपने आप में हैरतअंगेज़ है क्योंकि इस पेड़ का Trunk, फंगल इफ़ेक्शन की वजह से 1925 में ही हटाना पड़ा था.
1985 में जब इस पेड़ के चारों तरफ़ एक बाड़ लगाई गई थी तो इसने तीन एकड़ का एरिया कवर किया था. आज 32 सालों बाद इस पेड़ के इर्द-गिर्द कई Prop Roots उग आए हैं और इसका दायरा पांच एकड़ हो गया है. यही कारण है कि एक और फेंसिंग का इंतज़ाम किया गया है, हालांकि ये जानना दिलचस्प होगा कि नई फ़ेंसिग कितनी प्रासंगिक होगी. बोटैनिकल सर्वे ऑफ़ इंडिया इस गार्डन की देखभाल करता है और उन्होंने इस पेड़ की क्षमताओं को देखते हुए उसे ‘द वॉकिंग ट्री’ कहना शुरू कर दिया है.
इस गार्डन के क्यूरेटर और सीनियर बॉटनिस्ट एम यू शरीफ़ का कहना था कि ये पेड़ सूरज की दिशा फ़ॉलो करते हुए पूर्व की तरफ़ बढ़ा चला आ रहा है. इस पेड़ के पश्चिम में गार्डन की बांउड्री है जिसके साथ में ही एक मेन रोड और रिहायशी बिल्डिंगें आ जाती हैं. ये कहा जा सकता है कि प्रदूषण की तरफ़ न बढ़ने की वजह से ही ये विशालकाय पेड़ अब तक सही सलामत है.
उन्होंने कहा कि हमने इससे पहले 1985 में फ़ेंसिंग की थी लेकिन इस पेड़ ने जल्दी ही उसे बौना साबित कर दिया. ये पेड़ इसके बाद से पूर्व की दिशा में ही बढ़ता चला जा रहा है. यहां आने वाले पर्यटक इसकी शाखाओं को झूले की इस्तेमाल करते हैं. कई लोग तो इस पेड़ पर अपना नाम लिख जाते हैं, वही कुछ धार्मिक कारणों से इस पेड़ के छोटे से हिस्से को काट कर अपने पास रख लेते हैं. ये इस शानदार पेड़ के लिए घातक साबित हो सकता था इसलिए हमने एक और फ़ेंसिग का निर्माण किया और पेड़ की सुरक्षा का इंतज़ाम किया.
इस पेड़ की देखभाल के लिए 13 लोगों का स्टाफ़ मौजूद है. उनमें से चार सीनियर बॉटनिस्ट और बाकी प्रशिक्षित गार्डनर्स हैं. वे इस पेड़ के हर इंच को चेक करते हैं. फ़ंगल इंफ़ेक्शन और सड़ने के लिए खास तौर पर चेकिंग की जाती है.
लेकिन अभी एक चुनौती मुंह बाए खड़ी है. इस पेड़ के नीचे से सैंकड़ों Prop Roots निकलकर आ रही हैं. चूंकि इस पेड़ के पास मेन ट्रंक नहीं है इसी वजह से इस पेड़ का वज़न इन्हीं पर ही आधारित है. इसकी ग्रोथ भी एक तरफ़ से ही है ऐसे में पेड़ के बैलेंस को लेकर अतिरिक्त सावधान रहना होगा.
पिछली ढाई सदी देख चुका ये पेड़ न केवल देश के लिए एक ऐतिहासिक धरोहर के समान है, बल्कि आज भी हमें कई खास सुविधाएं उपलब्ध करा रहा है. इस लेजेंडरी बरगद के पेड़ को सलाम!
Source: TOI