मानव तस्करी आज भी दुनिया के कई देशों में धड़ल्ले से चल रही है. इस धंधे में न केवल महिलाओं और बच्चों को शिकार बनाया जा रहा है, बल्कि अब पुरुषों को भी शादी के झांसे में फ़ंसाकर उन्हें गुलामी के दलदल में झोंका जा रहा है.
UN के पालेर्मो प्रोटोकॉल के मुताबिक, मानव तस्करी का मतलब उस अपराध से है जब झांसा देकर या ज़बरदस्ती किसी व्यक्ति पर अपना पूरा कंट्रोल कर लेना होता है ताकि उससे अपने मनचाहे काम निकलवाए जा सकें.
हाल ही में साउथ चीन मॉर्निंग पोस्ट के मुताबिक, दक्षिण एशिया के कई इलाकों से Slave Grooms यानि गुलाम दूल्हों की डिमांड में तेजी देखी गई है. इन लोगों को विदेश के ऐशो-आराम का झांसा दिया जाता है और फिर ताउम्र उनसे मज़दूरी कराई जाती है.
ऐसे ही एक व्यक्ति शाहिद संधु को एक ऑनलाइन मैचमेकर साइट की तरफ़ से एक शानदार ऑफ़र आया था. शाहिद को हॉन्गकॉन्ग में पैदा हुई पाकिस्तान मूल की एक लड़की से शादी करने का न्यौता मिला था.
संधु ने कॉमर्स में यूनिवर्सिटी डिग्री हासिल की है. वो पाकिस्तान के एक बैंक में नौकरी करता था. लेकिन उसकी सैलेरी मामूली थी और हॉन्ग-कॉन्ग में अच्छी लाइफ़स्टाइल के साथ ही वो अपने परिवार की भी आर्थिक तौर पर मदद कर सकता था. यही सोचकर संधु ने चार साल पहले इस ऑफ़र को स्वीकार करने का फ़ैसला किया.
उसने इस महिला से पाकिस्तान में शादी रचाई और कुछ ही महीनों बाद Dependent वीज़ा के साथ ही वो हॉन्ग-कॉन्ग आ गया. लेकिन संधु के हॉन्ग कॉन्ग शिफ़्ट होते ही उसकी ज़िंदगी बदतर होती चली गई. हॉन्ग कॉन्ग पहुंचते ही उसकी पत्नी और ससुराल वाले उस पर नज़र रखने लगे.
उसे एक कंस्ट्रक्शन साइट पर एक बंधुआ मज़दूर की तरह काम करना पड़ता था और घर आकर सारा घरेलू काम भी निपटाना पड़ता था. घरवाले उसके साथ गाली-गलौच और मारपिटाई भी करते थे. उसका सारा पैसा छीन लेते थे और उसे खाना तक नहीं देते थे. संधु के ससुरालवाले ने उसके पासपोर्ट को भी ज़ब्त कर लिया गया था.
संधु को मालूम था कि उसकी पत्नी के परिवार की तरफ़ से उस पर किया जा रहा अत्याचार गैरकानूनी है, लेकिन शर्म लिहाज़ के चलते वो कभी इस मामले को सार्वजनिक नही कर पाया.
दरअसल भारत, पाकिस्तान, बांग्लादेश और नेपाल जैसे पुरुष प्रधान समाज़ होने के चलते लोग अपने साथ हो रही मानसिक और शारीरिक प्रताड़ना को लेकर चुप रहते हैं. कई लोगों का ऐसा मानना है कि पत्नी द्वारा प्रताड़ित किए जाने की बात समाज में सामने आने पर उनकी जगहंसाई होगी और उनके परिवार की इज़्ज़त मिट्टी में मिल जाएगी इसलिए ऐसे मामलों में ये लोग कानूनी मदद से भी कतराते हैं. उनकी इसी कमी का फ़ायदा उठाते हुए कई मानव तस्कर रैकेट्स उन्हें अपने झांसे में फ़ंसा लेते हैं.
थक हारकर संधु ने दक्षिण एशिया समुदाय के इमीग्रेशन कंसल्टेंट रिचर्ड अज़ीज़ बट्ट को अपनी आपबीती सुनाई और उनसे मदद मांगी. हालांकि संधु अब भी पुलिस के पास जाने को राज़ी नहीं था. उसे जगहंसाई का खतरा था. उसे डर था कि पुलिस में रिपोर्ट दर्ज कराने पर उसे भारत वापस भेज दिया जाएगा और उसके ससुराल वाले उसे मार डालेंगे.
संधु जो भी कमाता था वो सब उसके बैंक अकाउंट में ट्रांसफ़र होता था. उसके अकाउंट को उसकी पत्नी और साला नियंत्रित करते थे. वे इन पैसों को अपने पास रखते थे. संधु को सिर्फ़ काम पर जाने के लिए भाड़ा मिलता था. उसकी पत्नी रोज़ चेक करती थी कि वह कहां पैसा खर्च कर रहा है. संधु पूरी तरह से फंस चुका था.
हालांकि संधु की कहानी तो केवल एक बानगी भर है. इस क्षेत्र में मौजूद वकील और एनजीओ वर्कर्स के अनुसार, कई ऐसे लोग हैं जो इन झांसों में फंसते चले जा रहे हैं.
बट्ट के मुताबिक, वे 1997 से ऐसे करीब 100 दक्षिण एशियाई लोगों से मिल चुके हैं, जिन्हें हॉन्ग कॉन्ग में गुलामों की तरह रखा जाता है और उन्हें मानसिक और शारीरिक प्रताड़ना दी जाती हैं. इन लोगों के वीज़ा भी अक्सर घरवाले ही रिन्यू कराते हैं, ऐसे में ये लोग यहां फंस कर रह जाते हैं. मेरे हिसाब से हॉन्ग कॉन्ग के 20 प्रतिशत लोग इसी मानव तस्करी से लाए गए हैं. यहां इन्हें महिला और उसके परिवार की सेवा के लिए लाया जाता है.
दलाल से एक एनजीओ कर्मचारी बने एक शख़्स ने बताया कि मैं ऐसे 200 से ज़्यादा लोगों से मिल चुका हूं, जिन्हें धोखे से बंधुआ मज़दूर बना दिया गया है. दुनिया भर में मानव तस्करी से संबंधित बेहद कम मामले ही दर्ज हो पाते हैं और हॉन्ग कॉन्ग भी इस मामले में अपवाद नहीं है.
एंटी ह्यूमन टैफ़्रिकिंग कमिटी की चेयरवुमेन सैंडी वॉन्ग के मुताबिक, ज़बरदस्ती कराई गई शादियों को लेकर देश में कोई कानून नहीं है लेकिन कई और कानूनों के सहारे पीड़ित की मदद की जा सकती है.
वहीं संधु इस मामले में हताश हो चला है. उसके घरवालों का अत्याचार उस पर दिनोदिन बढ़ता जा रहा है. ऐसे में वह असहाय होकर केवल न्याय की उम्मीद ही कर सकता है.