बचपन से ख़ूबसूरती का मतलब स्विट्ज़रलैंड सुनते आ रहे हैं. इसमें कोई शक़ भी नहीं है स्विट्ज़रलैंड है ही इतना ख़ूबसूरत. स्विट्ज़रलैंड की ख़ूबसूरत वादियों का सारा क्रेडिट वहां के ग्लेशियर्स को जाता है. मगर पिछले कुछ सालों में ग्लोबल वॉर्मिंग बढ़ने के चलते ये ग्लेशियर पिघलने शुरू हो गए हैं. साल दर साल इनकी स्थिति बेहद ख़राब होती जा रही है.

ग्लोबल वॉर्मिंग के चलते स्विस ग्लेशियर पिघलने से पूरी दुनिया पर ख़तरा बढ़ता जा रहा है.

तूफ़ान, बारिश और अत्यधिक ख़राब मौसम के चलते ग्लेशियर पिघलने लगे हैं, यही ग्लोबल वार्मिंग का मुख्य कारण भी है. स्विट्ज़रलैंड का सबसे लोकप्रिय Rhone Glacier यहां का प्रमुख पर्यटन स्थल माना जाता है, लेकिन बर्फ़ पिघलने के चलते इसकी हालत बेहद ख़राब है. पिछले 10 सालों में इस ग्लेशियर की करीब 131 फ़ीट बर्फ़ पिघल चुकी है और इस कारण पर्यटकों की संख्या लगातार घटती जा रही है.
जुलाई 2008

सितंबर 2018

ऐसे में स्थानीय लोगों की मदद से इस ग्लेशियर को सफ़ेद कंबलों से ढंक दिया गया है. स्थानीय लोगों का कहना है, ग्लोबल वॉर्मिंग और गर्मी की वजह से लगातार बर्फ़ पिघल रही है. इन्हें बचाने के लिए इस तरह के तरीक़े अपनाने पड़ रहे हैं. समुद्र तल से 7500 फ़ीट की ऊंचाई पर स्थित इस ग्लेशियर को पूरी तरह ढकने में कई घंटे लगते हैं और हज़ारों डॉलर का ख़र्च आता है. इस पर्यटक स्थल को बचाने का ख़र्च स्थानीय लोग ही उठाते हैं.

विशेषज्ञों के मुताबिक, सफेद कंबल धूप को अंदर नहीं आने देते. साथ ही, बर्फ़ और कंबल के बीच मौजूद हवा ऊष्मा से बचाती है, जिससे बर्फ पिघलने से बच जाती है.

ग्लेशियोलॉजिस्ट डेविड वॉल्कन ने बताया कि इस तरीक़े से 50% से 70% तक बर्फ़ को पिघलने से बचाया जा सकता है.
पहले

अब

विशेषज्ञों का कहना है कि स्विट्जरलैंड के ग्लेशियर करीब 150 साल से पिघल रहे हैं. साल 1856 से अब तक इस ग्लेशियर की मोटाई में 1148 फ़ीट की कमी आई है. फ़िलहाल इनकी ऊंचाई 1200 फ़ीट तक है.

स्विस ग्लेशियर मॉनिटरिंग नेटवर्क के मुताबिक़, पिछले 10 सालों में ग्लेशियर की मोटाई औसतन 33 फ़ीट तक घट गई है. इस वजह से ग्लेशियर के पास एक झील बन गई है. अगर ग्लोबल वॉर्मिंग की यही स्थिति रही, तो अगले 80 सालों में अधिकतर ग्लेशियर पिघल जाएंगे और पहाड़ों में महज 10% बर्फ़ ही बचेगी.

इन ग्लेशियर का यही हाल रहा तो आने वाला समय हमारे लिए बेहद कठिन होने वाला है.
पहले

अब

भारत में भी बढ़ते तापमान का ग्लेशियरों पर बुरा असर पड़ रहा है और अगर ग्लेशियरों के पिघलने की यही रफ़्तार रही तो हिमालय के ग्लेशियर 2035 तक गायब हो जाएंगे.