‘वो स्त्री है, कुछ भी कर सकती है’, ये सिर्फ़ किसी बॉलीवुड फ़िल्म का डायलॉग नहीं है, ये एक हक़ीक़त है, जिसका उदाहरण हमें खोजने की नहीं, बल्कि सिर्फ़ खुली आंखों से देखने की ज़रूरत है. इसी बात को साबित करती हैं दिव्या देवराजन. 

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2010 बैच की आई.ए.एस. अधिकारी दिव्या देवराजन से किसी पर हो रहे अन्याय देखा नहीं जाता और अपनी ड्यूटी के दौरान उन्होंने इस बात को कई बार साबित भी किया है. अपने काम और फ़ैसलों की वजह से उनका तबादला तेलंगाना के आदिवासी क्षेत्र आदिलाबाद में किया गया. 

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दिव्या बताती हैं कि जैसे ही उन्हें तबादले की ख़बर लगी तो उन्होंने बिना समय गवाएं एक दिन में ही अपना कार्यभार संभाल लिया. मगर वहां स्थिती काफ़ी गंभीर थी और हिंसक झड़पों ने पैर पसारने शुरू कर दिए थे. उनके लिए ये चुनौती आसान नहीं थी, लेकिन नामुमकिन जैसा शब्द दिव्या को नहीं आता था. उन्हें मालूम था कि बातचीत से इस समस्या को सुलझाया जा सकता है. 

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उन्होंने 3 महीनों में गोंडी भाषा सीखी, जो कि वहां की लोकल भाषा थी और बातचीत का दौर शुरू हुआ, देखते ही देखते स्थिती में सुधार हुआ. वहां के लोग दिव्या से इस कदर प्रभावित हुए कि अपने गांव का नाम आदिलाबाद से बदल कर दिव्या देवराजन के नाम पर ‘दिव्यगुड़ा’ रखने का फ़ैसला लिया.

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दिव्या का तबादला 2020 में आदिलाबाद से हो गया, लेकिन लोगों के दिलों में दिव्या ने अपना घर बना लिया था. उनके किए कामों की वजह से आज आदिलाबाद का न सिर्फ़ नाम बदला है, बल्कि वहां के हालात भी बदल गए हैं. दिव्या ने एक बार फिर साबित किया है कि स्त्री, शक्ति का ही एक रूप है और ईमानदारी से किया काम कभी भी असफ़ल नहीं होता.