वैसे तो भारत में प्रतिभाओं की कमी नहीं हैं. हर गली में, हर चौराहे पर एक से बढ़ कर एक टैलेंटेड लोग रहते हैं. लेकिन उपयुक्त माहौल ना मिलने की वजह से वो टैलेंट दब जाती है. शहरों में सुविधाएं मिलने की वजह से लोगों की मंजिलें काफ़ी हद तक आसान हो जाती है, वहीं गांवों में रहने वालों को थोड़ा मुश्किल का सामना करना पड़ता है. इस वजह से कई लोग शहरों की ओर पलायन करते हैं. हिन्दुस्तान का सच यही है कि गांवों में शिक्षा के स्तर को लेकर ऐसा नही माना गया है जहां से देश को आईएस, या अन्य सेवाओं में बड़े अफ़सर मिल सकें. इसी सोच को लेकर देखते ही देखते लगभग पूरे हिन्दुस्तान के गांव शहरों की और पलायन की राह देखने लगे. लेकिन एक गांव हिन्दुस्तान में ऐसा भी है जिसने देश को इतने आईपीएस, आईआरएस और आईएस दिए हैं जितने दिल्ली या मुंबई जैसे महानगरों ने नही दिया. इस गांव का नाम है ‘माधोपट्टी‘ जो जौनपुर जिले का गांव हैं. आइए हम आपको इस गांव के ख़ूबियों के बारे में बताते हैं.

महज 75 घर वाले इस गांव ने 47 आईएएस अधिकारी बनाए हैं

इसे संयोग कहें या फ़िर किस्मत का खेल. इस गांव में महज 75 घर हैं लेकिन देश में इस गांव के 47 आईएएस अधिकारी विभिन्न विभागों में सेवा कर रहे हैं.

देश के अन्य संस्थानों में भी हैं लोग

ऐसा नही है कि इस गांव ने सिर्फ़ देश को काबिल नौकरशाह ही दिए हैं. इस गांव से बच्चे इसरो, भाभा और विश्व बैंक तक में काम कर रहे हैं. इसे कहते हैं Incredible India.

1914 में मुस्तफ़ा हुसैन ने शुरुआत की

इस गांव का इतिहास अंग्रेज़ों के ज़माने से चला आ रहा है. देश के प्रख्यात शायर रहे वामिक जौनपुर के पिता मुस्तफा हुसैन ने सन 1914 पीसीएस क्वालिफाई कर प्रशासनिक अधिकारी के रूप में नींव डाली थी.

इन्दू प्रकाश सिंह से यहां के युवा काफ़ी प्रभावित हैं

1952 में इन्दू प्रकाश सिंह का आईएएस की दूसरी रैंक में सलेक्शन क्या हुआ जिसके बाद यहां के युवाओं में ऐसा करने की होड़ लग गई. इन्दू प्रकाश सिंह खुद दुनिया के कई देशों में भारत के राजदूत रहे.

ये तो भारत के एक गांव की कहानी है. गांधी जी कहा करते थे कि हिन्दुस्तान गांवों में ही बसता है और इस बात को माधोपट्टी के लोगों ने सही साबित भी कर दिया . इस गांव के लोगों ने अपनी मेहनत से पूरे देश को दिखा दिया कि सच्ची लगन, मेहनत और एकाग्रता से कुछ भी हासिल किया जा सकता है.