शिक्षा, संस्कृति और अध्यात्म की बात आते ही पूरी दुनिया हिन्दुस्तान की ओर देखती हैं. हालांकि, यह पहचान अब धुमिल हो रही है, मगर एक समय ऐसा था, जब हिन्दुस्तान ही शिक्षा का केंद्र था. हम आज भले ही दुनिया के टॉप 100 यूनिवर्सिटीज़ में शामिल ना हों, परन्तु, जब दुनिया में शिक्षा शैशवास्था में थी, तब भारत के विश्वविद्यालयों का झंडा बुलंद हो रहा था. दुनिया भर से कई छात्र हमारे यहां पढ़ने आते थे. ये बात अलग है कि आज हमारी शिक्षा नीति इतनी कमजोर हो चुकी है कि हम दुनिया के सामने वो सम्मान नहीं पा रहे.
प्राचीन काल में 13 बड़े विश्वविद्यालयों या शिक्षण केंद्रों की स्थापना भारत में ही हुई. इन विश्वविद्यालयो में गणित, ज्योतिष, भूगोल, चिकित्सा विज्ञान के अलावा अन्य विषयों की पढ़ाई होती थी. इस वजह से शिक्षा के क्षेत्र में भारतीयों का कोई सानी नहीं था. हमने पूरी दुनिया को ज्ञान और संस्कार दिया. 8वीं शताब्दी से 12वीं शताब्दी के बीच भारत में कई छात्र अध्ययन करने आते थे. हालांकि, आजकल सिर्फ़ दो ही प्राचीन विश्वविद्यालयों की चर्चा होती है. पहला नालंदा और दूसरी तक्षशिला. इन दोनों विश्वविद्यालयों के अवशेष अभी भी देखे जा सकते हैं. नालंदा विश्वविद्यालय की दीवारें इतनी चौड़ी हैं कि इनके ऊपर ट्रक चल सकता है. भारत भ्रमण के लिए आए चीनी यात्री ह्वेनसांग और इत्सिंग के यात्रा विवरणों से इस विश्वविद्यालय के बारे में जानकारी भी मिलती है. आइए, इनके बारे में विस्तार से जानते हैं.
शिक्षा का केंद्र नालंदा विश्वविद्यालय
शिक्षा के लिए पूरी दुनिया के छात्रों के लिए यह माकूल जगह थी. प्राचीन भारत उच्च शिक्षा का सबसे महत्त्वपूर्ण केन्द्र था, जो वर्तमान में विश्वविद्यालय बिहार के राजगीर में स्थित है. एक समय ऐसा था, जब इस विश्वविद्यालय में 10,000 छात्र पढ़ते थे, जो भारत के विभिन्न क्षेत्रों के अलावा कोरिया, जापान, चीन, तिब्बत, इंडोनेशिया, फारस और तुर्की से आते थे. इन्हें पढ़ाने के लिए 2,000 शिक्षक मौजूद रहते थे. गुप्त शासक कुमारगुप्त प्रथम 450-470 ने इस विश्वविद्यालय की स्थापना की थी. यह विश्वविद्यालय स्थापत्य कला का अद्भुत नमूना है. इसमें सात बड़े-बड़े कक्ष थे. इतना ही नहीं, इस विश्वविद्यालय में तीन सौ अन्य कमरे और अध्ययन के लिए नौ तल का एक विराट पुस्तकालय था, जिसमें लाखों किताबें थीं.
अनुशासन का दूसरा नाम तक्षशिला विश्वविद्यालय
इसकी स्थापना लगभग 2700 साल पहले की गई थी,जिसमें लगभग 10500 विद्यार्थी पढ़ाई करते थे. इस विश्वविद्यालय में अनुशासन का बहुत ही ध्यान रखा जाता था. आम बच्चे हो या फ़िर राजाओं के लड़के, गलती करने पर सबको सज़ा मिलती थी. इस विश्वविद्यालय में राजनीति, आयुर्वेद, विधिशास्त्र और शस्त्रविद्या की पढ़ाई होती थी.
नालंदा का सबसे बड़ा प्रतिस्पर्धी ‘विक्रमशीला विश्वविद्यालय’ था
8वीं शताब्दी से 12वीं शताब्दी के अंत तक यह विश्वविद्यालय भारत के प्रमुख शिक्षा केंद्रों में से एक था. भारत के वर्तमान नक्शे के अनुसार यह विश्वविद्यालय बिहार के भागलपुर शहर के आसपास रहा होगा. कहा जाता है कि यह उस समय नालंदा विश्वविद्यालय का सबसे बड़ा प्रतिस्पर्धी था. इस विश्वविद्यालय में तंत्र शास्त्र की पढ़ाई होती थी, जो विश्वविख्यात थी.