संविधान के सुनहरे शब्द जब तक दलितों की ज़िंदगी में रौशनी पहुंचा पाएं, तब तक जातिवाद का दीमक उन क़ागज़ों को ही चट कर जाता है, जिन पर ये शब्द लिखे होते हैं. बराबरी और सम्मानजनक ज़िंदगी जैसे अधिकार तो बहूुत दूर की बात है, देश में दलितों को कुछ लोग आज भी एक इंसान के तौर पर देखना पसंद नहीं करते हैं.
ये बात सही है कि हमारे संविधान और सरकारों ने लगातार दलितों की स्थिति सुधारने के लिए काम किया है और कर रही हैं. इस बात का ही नतीजा है कि बहुत बड़ी संख्या में लोगों के बीच जातिवाद का ज़हर ख़त्म हुआ है. बहुत से दलित सरकारी और निजी क्षेत्रों में बड़े-बड़े पदों पर काम कर रहे हैं. हालांकि, इसके बावजूद कुछ लोग आज भी ऐसे हैं, जिनके भीतर से जातिवाद का ज़हर ख़त्म होने का नाम नहीं ले रहा है.
ऐसे में हम आज उन चीज़ों पर बात करेंगे, जो एक हमारे लिए मामूली हैं, लेकिन दलितों के जीवन में संघर्ष बनी हुई हैं है.
1. हमारे यहां शादी में बाराती आते हैं और दलित की शादी में पुलिस
Which century do we live in #India?
— Deepal.Trivedi (@DeepalTrevedie) March 7, 2021
#Durlabh a #Dalit frm #Gujarat had to seek #policeprotection as nearly the entire village minus Dalits of #bhjapur threatened violence if he dared to ride a horse in his wedding procession.@GujaratPolice put 80 cops on duty. #DalitLivesMatter pic.twitter.com/Ptt4fRzBtS
आज भी कुछ लोगों को दलितों का शादी में घोड़ी पर बैठना बर्दाश्त नहीं होता है. ऐसी कई घटनाएं सामने आ चुकी हैं. ताज़ा मामला गुजरात के साबरकांठा के वडाली तहसील के भजपुरा गांव का है. यहां एक दलित युवक अपनी शादी में बैंड बाजे के साथ घोड़े पर बैठकर बारात निकालना चाहता था. बताया जा रहा है कि कुछ स्थानीय ‘ऊंची जाति के लोगों’ ने इस पर आपत्ति जताई. जिसके बाद क़रीब 60 से ज़्यादा पुलिसवालों की मौजूदगी में दलित युवक की बारात निकाली जा सकी.
2. हमारे यहां शादी में फूल बरसाए जाते हैं और दलित की बारात पर पत्थर
गुजरात में सेना के जवान की बारात पर ऊंची जाति के लोगों ने पथराव कर दिया. क्योंकि वो दलित समुदाय से था और घोड़ी पर चढ़कर जा रहा था. पुलिस के वहां मौजूद होने के बाद भी कुछ नहीं किया जा सका. दूल्हे के परिवार ने गांव के ही ठाकुर कोली समाज पर पथराव करने का आरोप लगाया था. उन्होंने आरोप लगाया कि उन्हें जातिसूचक शब्दों से अपमानित किया गया और गालियां भी दी गईं.
3. हम सोशल डिस्टेंसिंग फ़ॉलो करते हैं और दलितों से फ़ॉलो कराई जाती है
कर्नाटक के विजयपुरा में एक दलित शख़्स को भीड़ ने बेहरहमी के साथ महज इसलिए पीट दिया, क्योंकि उसने कथित तौर पर ‘ऊंची जाति से आने वाले एक शख़्स की बाइक को छू दिया था.’ इतना ही नहीं, गुस्साई भीड़ ने दलित युवक को निर्वस्त्र कर दिया और उसके परिवार वालों को भी पीटा. घटना का एक वीडियो सामने आया था, जिसमें पीड़ित को कुछ लोगों ने जमीन पर दबोच रखा था और उसकी डंडों और जूतों से पिटाई कर रहे थे.
4. हम नल से पानी पीते हैं और दलित बेज़्ज़ती का घूट
उत्तर प्रदेश के संभल में एक 13 साल की बच्ची को मंदिर के पुजारी ने नल से पानी पीने से रोक दिया, क्योंकि वो दलित थी. पुजारी ने बच्ची को जातिसूचक गालियां भी दीं. जब बच्ची के पिता विरोध जताने पहुंचे तो कथित तौर पर पुजारी ने अपने साथी के साथ मिलकर उन पर त्रिशूल से हमला कर दिया.
5. हम चांद पर पहुंचने का सपना देखते हैं और कई जगहों पर आज भी दलित मंदिर में प्रवेश करने से वंचित है
आम दलितों के मंदिर में प्रवेश रोकने की कई घटनाएं आपने सुनी होंगी. लेकिन जो दलित अपने मेहनत से समाज में बड़ा मुकाम हासिल कर चुके हैं, उनके लिए भी हालात बदले नही हैं. भारतीय जनता पार्टी के सांसद ए नारायणस्वामी के साथ कुछ ऐसा ही हुआ था.
नारायणस्वामी चित्रदुर्ग लोकसभा क्षेत्र से सांसद हैं. कर्नाटक के टुमकुरु जिले के पारामनाहल्ली के गोल्लाराहट्टी में चल रहे विकास कार्य को लेकर लोगों की समस्याएं देखने-सुनने गये थे. उसी दौरान सांसद पास के एक मंदिर में जाना चाह रहे थे लेकिन गांव के लोगों ने परंपराओं का हवाला देकर उन्हें रोक दिया गया. वहां के स्थानीय निवासी का कहना था कि ए नारायणस्वामी यादव जाति के हैं, जिसे टुमकुरु में दलित माना जाता है.
6. हमारे बच्चे स्कूल जाने में नाटक करते हैं और दलित बच्चों को स्कूल में एडमिशन देने में लोग नाटक करते हैं
उत्तर प्रदेश के मेरठ से एक ऐसा ही मामला सामने आया था. एक स्कूल प्रिंसिपल पर दो बच्चों के एडमिशन न देने का आरोप लगा था, क्योंकि वो दलित थे. बच्चों की मां का कहना था कि जब प्रिंसिपल को बच्चों की जाति पता चली तो उन्होंने एडमिशन देने से इंकार कर दिया. महिला के मुताबिक, प्रिंसिपल का कहना था छोटी जाति के बच्चे स्कूल का माहौल ख़राब कर सकते हैं.
ये महज कुछ घटनाएं हैं. ऐसी कई घटनाएं हमारे देश में हर रोज़ होती हैं. कुछ बाहर आती हैं, तो कुछ दबा दी जाती हैं. उम्मीद बस इतनी है कि लोग धीरे-धीरे इस जातिवाद के चंगुल से हम भारतीय ख़ुद को बाहर निकाल लेंगे. कल जाति पर जीत हासिल हो सकेगी.