मॉर्डन युग में इंग्लिश को इतना महत्वपूर्ण बना दिया गया है कि स्कूलों से लेकर आस-पड़ोस के मोहल्लों तक, हर जगह ही लोग इसकी अहमियत के पुलिंदे बांधते नज़र आ जाएंगे. एक ऐसे युग में जहां इंग्लिश और क्षेत्रीय भाषाओं का दबदबा है, राघव और माधव नाम के दो भाई संस्कृत भाषा को उसकी खोई प्रतिष्ठा लौटाने की भरपूर कोशिश कर रहे हैं.
बचपन से ही राघव और माधव संस्कृत को बहुत पसंद करते थे, इसका कहीं न कहीं श्रेय इन लोगों के पेरेंटस को भी दिया जा सकता है. दोनों के पेरेंट्स अनूप और आशा ने संस्कृत में एमए किया है.
अनूप के मुताबिक, दोनों ही बच्चों को बचपन से ही इस भाषा को लेकर खास लगाव था. वो आपस में भी संस्कृत में ही बातचीत करते. उनकी दिलचस्पी को देखते हुए ही दोनों मालिपुरा के बाल गंगाधर तिलक वेद विद्यालय प्रतिष्ठान में एडमिशन दिलाया गया. यहां से अपनी प्राथमिक शिक्षा पूरी करने के बाद इन लोगों ने अपनी आगे की पढ़ाई धामनोज के श्री राज राजेश्वर धाम से पूरी की.
इन दोनों ने श्रीराज राजेश्वर धाम में वेदों और संस्कृत की पढ़ाई पूरी की थी. इसके लिए उन्होंने 1008 राघवानंदजी महाराज की देख-रेख में शिक्षा ग्रहण की थी. इसके बाद दोनों भाईयों ने अपनी पढ़ाई पंडित जगदीश चंद्र भट्ट के सानिध्य में पूरी की. भट्ट ने उन्हें रोज़मर्रा की ज़िंदगी में संस्कृत के इस्तेमाल पर काफ़ी कुछ सिखाया. अब ये लोग संस्कृत यूनिवर्सिटी से पढ़कर शास्त्री की उपाधि पाने के लिए काम कर रहे हैं.
हालांकि खास बात ये है कि वो सिर्फ़ इस विषय में अपना ज्ञान बढ़ाने के लिए ही नहीं पढ़ रहे हैं, बल्कि देश में लोगों को इस भाषा को सीखने के लिए जागरूक भी कर रहे हैं. वो बच्चों को मुफ़्त में संस्कृत की ट्यूशन भी पढ़ाते हैं.
दोनों का मानना है कि संस्कृत एक बेहतरीन भाषा है जिसमें कई तरह की संभावनाएं तलाशी जा सकती हैं. उन्होंने इसके लिए 10 दिनों का एक शॉर्ट कोर्स भी तैयार किया है. इन लोगों की दिली इच्छा है कि वो संस्कृत को देश के कोने-कोने तक पहुंचाने का काम करें और इस प्राचीन भाषा को इसकी खोई हुई विरासत दिलाने में कामयाब हो सकें.
दोनों भाइयों को भगवद गीता में लेक्चर देने में भी महारत हासिल है और हाल ही में जमशेदपुर में दिए गए अपने लेक्चर में उन्हें काफ़ी तारीफ़ भी मिली थी.