एक नवजात शिशु के लिए मां का दूध कितना ज़रूरी है ये शायद सभी को पता ही होगा और ये के लिए और अधिक ज़रूरी हो जाता है, जो प्रीमैच्यॉर पैदा हुआ हो. लेकिन कभी-कभी किन्हीं कारणों से कुछ बच्चों को मां का दूध नहीं मिल पाता है. ऐसे ही एक बच्चे की ज़िन्दगी बचाने के लिए चेन्नई की शरण्या गोविंदराजालु पिछले कई महीनों से उसको अपना दूध पीला रही हैं.
32 साल की शरण्या गोविंदराजालु एक ऐसे बच्चे को अपना दूध पिलाती हैं, जो प्रीमैच्यॉर पैदा हुआ है और उसको मां के दूध की बहुत ज़रूरत है. शरण्या खुद एक 7 महीने के बच्चे की मां हैं और वो हफ्ते के 5 दिन 100 से 150 मिलीलीटर ब्रेस्ट मिल्क उस अस्पताल में भिजवाती हैं, जहां वक्त से पहले पैदा हुए कई बच्चे हैं और उनको मां के दूध की ज़रूरत है.
शरण्या बताती हैं, ‘मेरे पति ब्लड डोनर हैं और मैं ब्रेस्ट मिल्क डोनर हूं. हम दोनों ही अपने-अपने तरीके से ज़रुरतमंदों की मदद कर रहे हैं. इसके साथ ही वो कहती हैं कि कुछ प्रीमैच्यॉर बेबीज़ तो इतने छोटे हैं कि वो मेरे हाथ की हथेली बराबर हैं. ऐसे बच्चों की मदद करने की फ़ीलिंग बहुत सुखदायी है.’
कभी-कभी वो खुद इन बच्चों की माओं से मिलने के लिए हॉस्पिटल भी जाती हैं. आपको बता दें कि शरण्या अकेली ऐसी मां नहीं हैं, जो बच्चों के लिए बरस मिल्क देती हैं, बल्कि वो एक ऐसी कम्युनिटी का हिस्सा हैं, जो ब्रेस्ट मिल्क डोनेशन की प्रक्रिया संभालती है. Natural Parenting Community नाम की ये संस्था ज़रूरतमंद नवजात बच्चों तक ब्रेस्ट मिल्क पहुंचाने का काम करती है.
इसी कम्युनिटी से जुड़ी एक रेग्युलर डोनर वहीदा सतीशकुमार बताती हैं, ‘कभी हॉस्पिटल के अधिकारी उनसे कॉन्टेक्ट करते हैं, तो कभी वो रेग्युलर बेसिस पर मिल्क डोनेट करती हैं, जो अस्पताल में स्टोर किया जाता है.’
गौरतलब है कि तमिलनाडु में वर्तमान में 9 सरकारी ब्रेस्ट मिल्क बैंक हैं, जिनमें से पहला बैंक एग्मोर के इंस्टिट्यूट ऑफ चाइल्ड हेल्थ में है.
Institute of Child Health की नियनेटलॉजिस्ट डॉ. के. कुमुधा ने बताया कि 2017 में ऐसे ही 4 और बैंक खोलने की योजना का प्रस्ताव दिया गया है. हर सेंटर एक से दो लीटर डोनर मिल्क कलेक्ट करता है. वेल्लोर के Christian Medical College and Hospital और चेन्नै के Vijaya Hospital समेत कुछ प्राइवेट मिल्क बैंक भी हैं. डॉ. कुमुधा के अनुसार, मिल्क डोनेशन के प्रति लोगों में जागरूकता तो बढ़ी है, पर अभी भी और मिल्क बैंकों की ज़रूरत है क्योंकि सरकारी अस्पताल अभी भी कई प्राइवेट मेडिकल सेंटर्स को मुफ़्त में मिल्क सप्लाई करते हैं.
ब्रेस्ट मिल्क डोनेशन के कारण वर्तमान में प्रीमैच्यॉर बेबीज़ के ज़िंदा रहने की संभावना काफी बढ़ गई है और डोनर्स द्वारा नियमित रूप से मिल्क डोनेट करने के कारण इन बच्चों को भविष्य में भी हेल्दी रखा जा सकता है. डॉ. कुमुधा बताती हैं कि ब्रेस्ट मिल्क के कारण बच्चों में इन्फेक्शन की आशंका भी कम रहती है. इसके आगे वो कहती हैं कि प्रीमैच्यॉर बेबीज़ की मांएं अपने बच्चे की सेहत को लेकर चिंतित रहती हैं और इस चिंता का असर उनके अपने ब्रेस्ट मिल्क प्रोडक्शन पर भी पड़ता है. लेकिन डोनेशन से जब उनके बच्चे को ब्रेस्ट मिल्क की रेग्युलर सप्लाई मिलना सुनिश्चित हो जाता है, तो उनका कॉन्फिडेंस बढ़ जाता है और इसका सकारात्मक असर उनके ब्रेस्ट मिल्क प्रोडक्शन पर भी देखने को मिलता है.
डॉ. कुमुधा के मुताबिक, ज़्यादातर ब्रेस्ट मिल्क उसी अस्पताल में दूसरी नई मांओं, बाहरी वॉलन्टिअर्स और खुद अस्पताल के स्टाफ़ के मेंबर्स के जरिये डोनेट किया जाता है. वो कहती हैं, ‘कम से कम अब ब्रेस्ट मिल्क डोनेशन को लेकर लोगों के बीच वैसी हिचक नहीं है, न ही डोनर की तरफ से और न ही रिसीवर की तरफ से. अब हमें और सेंटर्स की ज़रूरत है.’