ओमरान… शायद ये नाम आपको याद नहीं होगा, पर ये तस्वीर शायद आपको याद होगी.
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ओमरान सिर्फ़ 4 साल का था जब उसकी ये हालत हुई, एलेप्पो पर हुए हवाई हमले के कारण वो घायल हो गया था. ऐसे कई बच्चे सीरिया में पिछले 6 साल से चल रहे संघर्ष की गवाही दे रहे हैं. लेकिन बच्चों के मासूम चेहरों को देखकर आजकल किसी का दिल नहीं पसीजता.
पिछले हफ़्ते एक और बच्ची की तस्वीर यमन में चल रहे युद्ध की पहचान बन गई.
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बुथाइना मुहम्मद मनसौर, पिछले हफ़्ते यमन की राजधानी सना पर हुए हमले में ज़िन्दा बच गई. उसके परिवार के सारे लोग मारे गए.
बुथाइना ओमरान की तरह ही Anti-War Symbol बन गई है. उसकी तस्वीर सोशल मीडिया पर वायरल हो रही है. हम चाहे जितना भी नज़रअंदाज़ कर लें, ये जो भी दुनिया में हो रहा है, हम उसका हिस्सा हैं.
डॉक्टर्स का कहना है कि बुथाइना की खोपड़ी में चोटें आई हैं, पर वो जल्द ही ठीक हो जाएंगी. बुथाइना को ये नहीं पता है कि उसकी परिवार का कोई भी सदस्य अब ज़िन्दा नहीं है. अस्पताल में पड़े-पड़े वो अपने चाचा मौनिर को पुकार रही थी. एक दूसरे रिश्तेदार, सलेह मोहम्मद ने Reuters को बताया, बुथाइना के पिता ने उन्हें फ़ोन करके बताया था कि सना के पास के ज़िले फ़ाज़ अट्टान में बमबारी हो रही है. जब तक सलेह वहां पहुंचे, हंसता-खेलता मकान राख का ढेर बन चुका था.
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सउदी की Arab Military Coalition ने हमले की ज़िम्मेदारी ली थी और बेपरवाही से कहा था कि ये ‘Technical Mistake’ के कारण हुआ. इस हमले में 6 बच्चों समेत14 आम लोगों की जान चली गई.
हुक्मरानों की नाक बचाने की लड़ाई में न जाने कितनी मासूम ज़िन्दगियां बेवजह क़ुर्बान हो गई हैं.
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कुछ लोग यहां ये भी कहेंगे कि अपने देश की समस्या पर बात क्यों नहीं कर रहे हैं? अपना देश, अपनी दुनिया जब सब अपना ही है तो ग़ैरों सा सुलूक क्यों? ये दुनिया जब बचेगी ही नहीं, तो क्या मेरा क्या तुम्हारा? जो दुनिया बारूद, परमाणु हथियार, रसायनिक हथियार के ढेर पर पनप रही हो, उस दुनिया में जीने और मेरा-तेरा करने के लिए बचेगा ही क्या? अगर ज़रा सा भी वक़्त मिले तो सोचिये कि आख़िर हम किस दिशा में जा रहे हैं… बकरे और गाय की राजनीति से ज़रा ऊपर उठकर सोचने के लिए वक़्त निकालिए.