बिहार ने देश को बहुत से IAS, IPS दिए हैं, लेकिन ये वही राज्य है, जहां शिक्षा का स्तर दिन-ब-दिन गिरता जा रहा है. 2015 में 12वीं की परीक्षाओं में हुई चीटिंग की तस्वीरें आज भी सबके ज़हन में हैं और पिछले साल ही बिहार के टॉपर्स की भी पोल-खोल हुई थी, जो बिना कुछ जाने फ़र्स्ट आ गए थे. इस राज्य से एक और ख़बर आयी है, जिसने फिर से बिहार पर सवालिया निशान लगा दिए हैं.

BBC

बिहार की तिलका मांझी भागलपुर यूनिवर्सिटी में मंगलवार को पोस्ट ग्रेजुएशन के स्टूडेंट्स अपना हिंदी का पेपर इसलिए नहीं दे पाए, क्योंकि कॉलेज इसका पेपर छापना भूल गया था.

इस यूनिवर्सिटी में सेकंड सेमेस्टर के पेपर चल रहे थे, जिसमें आखरी पेपर हिंदी का था.लेकिन जब पेपर नहीं आया, तो इन्हें वापस जाना पड़ा.

यूं तो यूनिवर्सिटी के Vice-Chancellor ने हिंदी डिपार्टमेंट के हेड और एग्ज़ाम कंट्रोलर को नोटिस भेजा है, पर हिंदुस्तान टाइम्स की इस ख़बर के मुताबिक, एग्ज़ाम कंट्रोलर के पास पेपर छपवाने के लिए पहुंचे ही नहीं थे.

जबकि हिंदी डिपार्टमेंट के हेड का कहना है कि ऐसा Confusion के कारण हुआ. उन्हें नहीं पता था कि कितने बच्चों ने Preference के तौर पर हिंदी ली है. Choice Based Credit System (CBCS) को बिहार में लागू करने के बाद से स्टूडेंट्स के पास ऑप्शन होता है कि वो चौथे पेपर के लिए कौन सा सब्जेक्ट लें. हिंदी के HoD ने अब सारा इल्ज़ाम इस सिस्टम पर लगा दिया है.

इस एग्ज़ाम को अब 25 अप्रैल को करवाया जाएगा.