तेलंगाना के करीमनगर में रहने वाले एक किसान ने खेती के प्रति लगन, नई सोच और प्रयोगधर्मिकता का उदाहरण पेश किया है. इस शख़्स ने एक ख़ास किस्म के ‘मैजिक राइस’ की खोज की है, जिसके बारे में आपने शायद ही पहले कभी सुना हो.
दरअसल, करीमनगर के श्रीराममल्लापल्ली गांव के किसान श्रीकांत गरमपल्ली ने एक ख़ास किस्म के चावल की खोज की है, जिसे खाने के लिए पकाए जाने की जरूरत नहीं होती है. इस चावल को कुछ देर के लिए पानी में भिगो देने के बाद आप इसे खा सकते हैं. इसे तैयार होने में क़रीब 30 मिनट लगते हैं.
अगर आप गरमागरम चावल खाना चाहते हैं तो इसे गर्म पानी में भिगो सकते हैं. अन्यथा सामान्य पानी में भिगोकर भी आप आसानी से इस ‘रेडी-टू-ईट’ चावल को खा सकते हैं. आपको इसमें किसी भी तरह की मेहनत करने ज़रूरत भी नहीं पड़ती.
द बेटर इंडिया से बातचीत में श्रीकांत का कहना था कि, 1 साल पहले उन्हें असम जाने का मौका मिला था. इस दौरान उन्हें चावल की ऐसी किस्म के बारे में पता चला जो बिना पकाए ही खाया जा सकता है. इसके बाद उन्होंने ‘गुवाहाटी विश्वविद्यालय’ से संपर्क करके चावल की इस अनूठी प्रजाति के बारे में जानकारी ली.
इस दौरान श्रीकांत को पता चला कि असम के पहाड़ी इलाक़ों में कुछ जनजातियां एक ख़ास क़िस्म के धान की खेती करते हैं. क़रीब 145 दिनों में तैयार होने वाले इस चावल को खाने के लिए पकाने की ज़रूरत नहीं होती, बल्कि सिर्फ़ पानी में भिगोने देने भर से हो भोजन तैयार हो जाता है.
क्या ख़ास बात है इस चावल की?
असम के पहाड़ी जनजातीय इलाक़ों में इस चावल को ‘बोकासौल’ नाम से जाना जाता है. ये चावल सेहत के लिए बेहद गुणकारी माना जाता है. इसमें 10.73% फ़ाइबर और 6.8% प्रोटीन मौजूद रहता है. इस चावल को पहाड़ी जनजातीय लोग गुड़, केला और दही के साथ खाना पसंद करते हैं.
श्रीकांत के मुताबिक़, वो कुछ समय पहले असम के जनजातीय इलाक़े से इस ख़ास क़िस्म के चावल के बीज लेकर आए थे. 12वीं शताब्दी में असम में राज करने वाले अहम राजवंश को ‘बोकासौल’ चावल बहुत पसंद था, लेकिन बाद में चावल की दूसरी प्रजातियों को मांग बढ़ने के चलते ये प्रजाति लगभग विलुप्त हो गई थी. इसके बाद उन्होंने इस चावल को विकसित करने का फ़ैसला किया.
श्रीकांत ने आगे बताया कि वो पिछले 30 वर्षों से खेती-किसानी कर रहे हैं. ‘मैजिक राइस’ के अलावा उनके पास 120 किस्म के चावल का संग्रह है, जिसमें नवारा, मप्पीलै सांबा और कुस्का जैसे नाम हैं. इसके साथ ही वो 60 अन्य प्रकार के जैविक सब्जियों की भी खेती करते हैं.
असम से बीज लाने के बाद श्रीकांत ने इस धान को अपने आधा एकड़ खेत में बो दिया. इस आधे एकड़ में उन्हें क़रीब 5 बोरी चावल का उत्पादन हुआ. धान की अन्य प्रजातियों के बराबर ही इसकी फ़सल भी 145 दिनों में तैयार हो जाती है.