भारतीय मूल का एक शख़्स पिछले आठ सालों से अपने माता पिता को दिल्ली में ढूंढ रहा है. केरल से पहले दिल्ली और फिर डेनमार्क पहुंचने वाला ये व्यक्ति यूं तो मानव तस्करी का शिकार हुआ लेकिन सौभाग्य से एक बेहतर ज़िंदगी उसे मिली और अब वह अपने मां बाप की तलाश में जी जान से जुटा हुआ है. 

45 साल के मार्क नीलसन का 1979 में अपहरण हुआ था और उनके साथ कई भयावह अनुभव हुए लेकिन सौभाग्य से डेनमार्क के एक कपल की मदद से न केवल वो अपने पैरों पर खड़े हुए, बल्कि अपने असली माता-पिता को भी पिछले कई सालों से ढूंढ रहे हैं. 

मार्क का जन्म कोयंबटूर में हुआ था. 1979 में जब वो सात साल के थे, तब उन्हें किडनैप कर दिल्ली लाया गया था. दिल्ली में मार्क को इंग्लिश और हिंदी पढ़ाई जाती थी ताकि उसे डेनमार्क जाने के लिए तैयार किया जा सके. वो एक अंधेरे कमरे में दो और बच्चों के साथ रहते थे. खाना थोड़ा सा मिलता था और प्रतिरोध जताने पर ख़ूब पिटाई भी होती थी. इस रूम में मौजूद एक बच्चा भागने में सफ़ल रहा था लेकिन उसे जल्दी ही पकड़ लिया गया और उसकी बहुत पिटाई की गईथी. ये सब देखने के बाद मार्क बुरी तरह डर गए थे.

मार्क ने 1 जून 1980 को दिल्ली छोड़ दिया और उसे टॉमी नीलसन और उनकी पत्नी ने अपना लिया. डेनमार्क के इस कपल को पता नहीं था कि मार्क के एडॉप्शन के पेपर्स पूरी तरह से फ़ेक हैं. नीलसन एक अच्छा परिवार था, उन्होंने मार्क को पढ़ाया और 2009 में वो एक शिप के कप्तान के पद से रिटायर हुए.

2009 में मार्क ने अपने पैरेंट्स को खोजने का फ़ैसला किया. अपने पैरेंट्स को ढूंढने के दौरान उनकी एक महिला से मुलाकात हुई जो मदुराई में रहती थी. हाल ही में मार्क और उनकी पत्नी एक एस्ट्रोल़ॉज़र से मिले जिसके मुताबिक, ट्रिची क्षेत्र के पास उनके पैरेंट्स हो सकते हैं. मार्क की स्टोरी को कई टीवी चैनल्स ने भी कवर किया है. लेकिन अभी तक उन्हें अपने माता-पिता के बारे में पता नहीं लग पाया है.

मार्क खुशकिस्मत थे कि उन्हें नीलसन जैसे माता-पिता मिले लेकिन हर अपहरण हुए बच्चे के साथ ऐसा नहीं होता. मार्क के साथ बचपन में उस अंधेरे कमरे में रहने वाला बच्चा ड्रग एडिक्ट बन गया था जिस कारण उसकी मौत हो गई थी. मार्क क्रिसमस के मौके पर डेनमार्क में नीलसन परिवार से मिलने जा रहे हैं और वापस आकर अपने परिवार को ढूंढेंगे. वो अपने परिवार को लेकर आशावान हैं और उन्हें उम्मीद है कि वो अपने पेरेंट्स को ढूंढ निकालेंगे.