‘मिया’… एक ऐसा शब्द जिससे हम सभी वाकिफ़ हैं. जाने-अनजाने हम लोग इस शब्द का इस्तेमाल भी करते हैं, बिना कुछ सोचे-कुछ समझे. सुल्ताना की ज़िन्दगी में ये शब्द पहली बार तब आया जब वो गुवाहटी के अपने दोस्तों के साथ हॉस्टल से बाहर निकली थीं.


एक रिक्शावाला उनकी तरफ़ आ रहा था. उन्हें रिक्शा चाहिए था, पर उन लोगों ने आंखों से इशारा करके उसे आगे जाने को कहा. सुल्ताना की एक दोस्त ने कह’ देखकर ही लग रहा था मिया है.’इतना कहकर सभी लोग ठहाके लगाने लगे. 

2016 में सुल्ताना ने अपनी मातृभाषा (पूर्वी बांग्ला बोली) में अपनी पहली कविता लिखी. ‘मैं मिया हूं’ उन्होंने फ़ेसबुक पर अपलोड किया. लोगों से काफ़ी सकारात्मक कमेंट मिले, अपनी बोली में लिखना कितना ज़रूरी है, पाठकों ने ये कहा. कुछ लोगों ने उन्हें यहां तक कहा, ‘दुआ है कि तुम्हारी कलम कभी न रुके.’    

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3 साल बाद सुल्ताना की फ़ेसबुक प्रोफ़ाइल को खोद-खोदकर उनकी कविताएं निकाली गई हैं और अब उन्हें उनके लिए धमकियां मिल रही हैं, घटिया बातें कहीं जा रही हैं.


Gauhati विश्वविद्यालय में रिसर्च कर रही सुल्ताना पर 4 FIR की जा चुकी हैं. 

सुल्ताना अकेली नहीं है. पिछले 1 महीने में कई असम के ‘मिया कवियों’ पर FIR हो चुकी हैं. इनमें से 3 FIR ऐसे मुस्लिम संस्थानों ने किए हैं, जो ऐसे मुस्लिमों को दरकिनार करते हैं, जिनके पूर्वज बांग्लादेश से हैं. HuffPost India से बात करते हुए एक संस्था के प्रेसिडेंट ने बताया कि वे ‘पहले असमिया हैं बाद में मुस्लिम’. 

असम में मिया, बंगाल या बांग्लादेश के प्रवासी मुसलमानों को कहा जाता है. इन लोगों पर सांप्रदायिक एकता भंग करने से लेकर, असम की ग़लत छवि प्रस्तुत करने तक के इल्ज़ाम लगाए जाए रहे हैं.   

सुल्ताना असमिया और ‘मिया’ बोली(पूर्वी बांग्ला बोली) दोनों बोलते हुए बड़ी हुई हैं. ये बोली असम के कई मुस्लिम बोलते हैं, ख़ासकर कि वे जो ब्रह्मपुत्र नदी के किनारे रहते हैं. ये बोली असमिया और बांग्ला दोनों भाषाओं से प्रभावित है. 19वीं शताब्दी में बांग्लादेश से भारत आए मुस्लिमों की पहचान का ये बोली एक हिस्सा है.


2016 में ‘मिया’ बोली में सबसे पहले, हाफ़िज़ अहमद ने कविता लिखी थी. अंग्रेज़ी में कविता के शीर्षक का ठीक-ठाक अनुवाद होगा, ‘लिख कर रख लो, मैं मिया हूं’. हाफ़िज़ ने इसे फ़ेसबुक पर अपलोड कर दिया. सुल्ताना ने जब ये कविता पढ़ी तो उन्हें लगा कि कविता के शब्द उनके सामने कुछ तराश रहे हैं.  

https://www.huffingtonpost.in/entry/nrc-miya-poets-assam-woman_in_5d3f3e2ee4b0d24cde03f6d6?utm_hp_ref=in-homepage&ncid=other_homepage_tiwdkz83gze&utm_campaign=mw_entry_recirc
जिन लोगों की उस कविता में बात हो रही थी मैं उनके आंखों में आंसू देख पा रही थी. मैं उनकी ग़रीबी की लड़ाई देख पा रही थी.

-सुल्ताना

सुल्ताना ये समझने में कुछ वक़्त लगा कि वैसे तो वो अंग्रेज़ी, हिन्दी, असमिया बोलती थी पर वो ‘मिया’ बोली को महसूस करती थी.


सुल्ताना की तरह ही ‘मिया’ बोली में कविता लिखते हैं, तेज़पुर विश्वविद्यालय के 23 वर्षीय छात्र, Kazi Sharowar Hussain, जो ‘काज़ी नील’ के नाम से कविता लिखते हैं ने HuffPost India को बताया कि मिया कविता असम के ग़रीब मुस्लिमों पर हो रहे अत्याचार का जवाब देने के लिए शुरू की गई, वो भी उन्हीं की भाषा में.   

जब वे काम के तलाश में कहीं बाहर जाते हैं, तो उन्हें मिया होने की वजह से ज़िल्लत सहनी पड़ती है. उनकी ज़िन्दगी को Documents में बदलना ही था तो किसी और तरीके से बदलना था, उन्हें विलन दिखाने की क्या ज़रूरत थी? 

-काज़ी नील

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लोगों के सामने ये दिखाया गया कि बांग्लादेश से असम में आए मुस्लिम, हिंसा भड़काते हैं, दूसरों की नौकरियां खाते हैं. HuffPost India के मुताबिक, 2016 में Al-Jazeera ने असम के ‘मिया कवियों’ पर रिपोर्ट बनाई और इसी को दोबारा शेयर किया जा रहा है और ये कहा जा रहा है कि ‘मिया कवि’ असम को दुनिया के सामने बेइज़्ज़त कर रहे हैं.


काज़ी हुसैन पर इल्ज़ाम लगाया गया है कि उसने ग़रीब मुस्लिम महिलाओं के साथ हुए Sexual Violence की मनघड़ंत बातें लिखी हैं.

सुल्ताना के लिए मिया बोली एक खिचड़ी है, पर ये उसके सबसे क़रीब भी है. इस भाषा में वो उस घटना को बयां कर सकती है जब एक कॉलेज ट्रिप के दौरान, गहरी लाल-पीली साड़ी पहनीं महिलाओं का मज़ाक उड़ाते और कहते ‘देखो मिया’! 

सुल्ताना इस भाषा में उस घटना को बयां कर सकती है, जब उसकी एक दोस्त ने हंसते हुए बताया था कि किस तरह उसके परिवार ने एक ‘मिया’ सिवर साफ़ करने वाले को पुलिस की धमकी दी थी जब उसने अपने काम के तय पैसे मांगे थे. 

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” तुम मेरी मां हो

 मैंने तुम्हारी गोद में जन्म लिया
मेरे बाबा और भाई ने भी तुम्हारी गोद में जन्म लिया, 
मां, 
फिर भी तुम कहती हो मैं तुम्हारी नहीं हूं 
मैं तु्म्हारे लिए कुछ भी नहीं हूं” 

– सुल्ताना  

मैने असमिया भाषा में स्कूल की पढ़ाई की. मैंने असमिया साहित्य में ग्रेजुएशन और मास्टर्स किया. मैंने डॉक्ट्रल थीसिस भी असमिया में ही लिखी. मुझे तो कुछ समय पहले तक पता ही नहीं था कि मैं मिया भाषा में लिख सकती हूं.

-सुल्ताना

सुल्ताना ने मिया समुदाय पर कुछ कविताएं असमिया भाषा में भी लिखी है. सुल्ताना की कविताएं ग़रीब मुस्लिमों के बारे में हैं, जिन्हें वो अपने आस-पास देखते आई है. अपने रिसर्च के दौरान वो कई बार Char (ब्रह्मपुत्र नदी के अस्थाई द्वीप) गईं और वहां के भूखे बच्चों की कहानी सुनी, जो दिनभर अपने पिता के लौटने का इंतज़ार करते हैं. कई बार वो नहीं लौटते क्योंकि उन्हें चोर या ‘बांग्लादेशी’ कहकर कई रातें जेल में बितानी पड़तीं.


जब सुल्ताना ने ग़रीब मुस्लिमों पर 2016 में अपनी पहली कविता फ़ेसबुक पर डाली, तब उन्हें एक भी नकारात्मक कमेंट नहीं मिले थे. इस साल जून में उन्हें भर-भर के गालियां दी गईं. 17 जून को उनके Inbox में एक Message आया जिसमें उसे Prostitute कहा गया और ‘एक रात का दाम’ पूछा गया. Manash नाम के शख़्स ने Message किया था और उसने अपनी Identity छिपाने की भी कोशिश नहीं की. जब सुल्ताना ने रिप्लाई नहीं किए तो Manash ने उसे पाकिस्तान जाओ टाइप Message भी किए.  

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यूं तो हर मिया कवियों को बुरा-भला कहा जा रहा था पर क्योंकि सुल्ताना एक महिला है तो उन पर ट्रोलर्स ने उसे ज्यादा बुरा भला कहा. भद्दी-भद्दी टिप्पणियां की और यहां तक कि रेप की धमकियां भी दीं.


सुल्ताना ने उनके खिलाफ़ शिकायत दर्ज करने की सोची, पर वो कितनों के खिलाफ़ शिकायत करे, वो एक और उनके सामने सैंकड़ों. सुल्ताना की एक हिन्दु असमिया दोस्त ने जब उसका साथ दिया तो लोगों ने उसे भी गंदी बातें कहीं. सुल्ताना को WhatsApp पर भी धमकियां मिलने लगीं. 

वो मैसेज इतने घिनौने थे कि सुल्ताना ने मजबूरन अपना फ़ोन बंद करना पड़ा.   

सच बताऊं तो उन Messages को देखकर मुझे अंदर ही अंदर बहुत शर्म आती. जब भी मेरा फ़ोन बजता मैं सहम जाती कि किसी ने रेप की धमकी दी होगी या कोई सेक्स मांग रहा होगा.

-सुल्ताना

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पुलिस में शिकायत करने के बाद भी सुल्ताना ने अपने कदम वापस खींच लिए. जिस गांव में उसके मां-बाबा रहते हैं वहां पुलिस केस मतलब किसी भी लड़की के चरित्र पर सवालिया निशान. 

वो फ़ेसबुक की कोई मिया कविता या विरोध नहीं समझेंगे. उन्हें लगेगा कि मैंने ही कुछ ग़लत किया है कि बात पुलिस तक जा पहुंची. हमारे गांव में ये काफ़ी शर्म की बात है.

-सुल्ताना

सुल्ताना Online Abuse से लड़ने का सोच ही रही थी कि कुछ दिनों में उसी पर 4 FIR दर्ज हो गईं. FIR करने वालों को वो जानती भी नहीं थी. ग़रीब गांववालों को NRC के बारे में समझाने के लिए भी सुल्ताना ने कैंप्स में हिस्सा लिया है. सुल्ताना उनके लिए फ़ॉर्म्स भरती है, सरकार से डॉक्युमेंट्स की कॉपी के लिए अपील करती है.


कुछ दिनों पहले सु्ल्ताना को 3 FIR में बेल मिल गई है और अब उसने सोचा है कि ये सब वो अपने माता-पिता को बताएंगी.