किसानों से अब कहां वो मुलाकात करते हैं,

बस रोज़ नए ख़्वाबों की बात करते हैं…

इंटरनेट की खाक छानते हुए मिली ये बेहतरीन पंक्तियां, आशय क्या है समझ तो गए ही होंगे. रविवार को जब हम और आप छुट्टी का मज़ा ले रहे थे, तब हज़ारों किसान देश की आर्थिक राजधानी के Sion में पहुंच चुके थे, लक्ष्य था सोमवार सुबह तक मुंबई के आज़ाद मैदान तक पहुंचना. चुपचाप… कतारों में…रात के अंधेरे और सन्नाटे में. ये कोई और नहीं, वही हैं जिनकी बदौलत हमारा और आपका पेट भरता है. ये हैं देश के ‘अन्नदाता’, देश के किसान.

जो मार्च सुबह होना था, उसका वक़्त रात में बदल दिया गया. कारण? किसानों के इस मार्च के आयोजक नहीं चाहते थे कि उनकी गतिविधियों से ट्रैफ़िक बधित हो और 10वीं की परिक्षा के परिक्षार्थियों को परेशानी हो. इसलिये Sion से आज़ाद मैदान तक का मार्च रात के अंधेरे में तय किया गया.

महिलाएं, बच्चे, बूढ़े, युवा 6 दिनों तक पैदल चल कर यहां पहुंचे. बताया जा रहा है कि आने वाले दिनों में इनकी संख्या और बढ़ेगी.

सोमवार को सुबह से ही हर तरफ़ किसानों के इस अहिंसात्मक मार्च की तस्वीरें और ख़बरों के चर्चे होने लगे.

सवाल ये है कि आख़िर इतनी बड़ी संख्या में नासिक और आस-पास के क्षेत्रों से चलकर किसान मुंबई क्यों पहुंचे? क्या ये सच में बताने की ज़रूरत है कि देश के किसानों की मांगें क्या है? देश में किसे नहीं पता कि किसानों के देश कहलाने वाले भारत के किसानों की मांगें क्या हैं?

  • कर्ज़ से पूर्ण मुक्ति
  • फसल का उचित मूल्य
  • स्वामीनाथन कमीशन के Recommendations को पूरी तरह से लागू करना.
  • ओलावृष्टि के कारण हुए नुकसान की भरपाई

2004 नवंबर में यूपीए सरकार ने किसानों की समस्याओं का निवारण करने के लिए स्वामीनाथन कमीशन बनाया था. दिसंबर 2004 और अक्टूबर 2006 के बीच, इस कमीशन ने 5 रिपोर्ट जमा की. इन रिपोर्ट्स में किसानों की समस्याओं की पहचान की गई और उनका समाधान बताया गया. इन रिपोर्ट्स का निष्कर्ष यही था कि अगर किसानों को जल, ज़मीन, कर-बीमा, तकनीक, बाज़ार, मैनेजमेंट आदि की ठीक से जानकारी उपलब्ध कराई जाए, तो उनकी समस्याएं ख़त्म हो सकती हैं.

महाराष्ट्र के इन किसानों की रैली को ऑल इंडिया किसान सभा ने आयोजित किया है. कुछ लोगों को इसमें से भी राजनीति की बू आ रही है. समझ में नहीं आता कि ये सुनकर हंसना चाहिए या नहीं.

यहां ये तथ्य भी दरकिनार नहीं किया जा सकता कि सबसे ज़्यादा किसान आत्महत्याएं महाराष्ट्र के विदर्भ क्षेत्र में ही होती हैं. मुंबई के लोगों ने दिलेरी दिखाई है, किसानों को खाना-पीने की चीज़ों के द्वारा समर्थन दिया है. कुछ लोगों ने तो इन पर फूलों की बरसात भी की.

हमारी बस एक दरख़्वास्त है इस ‘विकास का सूर्योदय’ लाने वाली सरकार से.अगर आप ख़ुद किसानों के लिए कुछ नहीं कर सकते तो, सिर्फ़ इतना करिये कि 20 तरह के जो कर आपने लगा रखे हैं, उनमें एक कर ‘किसान भलाई’ का लगा दीजिये. हमें नहीं लगता कि किसी भी देशवासी को वो कर चुकाने में आपत्ति होगी.

शाम को मिली जानकारी के अनुसार, किसान ने विरोध वापस ले लिया है और फड़नवीस सरकार ने उनकी मांगे मान ली है. इस बात की कोई आधिकारिक पुष्टि नहीं की गई है.

Images- Scoop Whoop, India Times