लॉकडाउन के चलते लाखों मज़दूर अलग-अलग शहरों में फंस गए थे, अब घर को लौट रहे हैं. हालांकि, ये पलायन बेहद दर्दनाक हादसों को समेटे है. कई मज़दूरों की सैकड़ों किमी के सफ़र के दौरान मौत हो गई. कुछ अपने शहर पहुंचे तो क्वारंटीन कर दिए गए, वहां भी हालात में तब्दीली आने के बजाय स्थिति पहले से भी बदतर हो गई.   

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छत्तीसगढ़ क्वारंटीन सेंटरों में 48 घंटे में 3 बच्चियों की मौत  

छत्तीसगढ़ में पिछले 48 घंटों के अंदर क्वारंटीन सेंटर में दो नवजात समेत तीन बच्चियों की मौत हो गई. ये घटनाएं राज्य के अलग-अलग क्वारंटीन सेंटर में हुई हैं. बताया जा रहा है कि ये सभी बच्चे प्रवासी मज़दूरों के हैं, जो लॉकडाउन में ढील के बाद अपने गृहराज्य वापस आए थे.   

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अधिकारियों ने बताया कि दो बच्चियों की मौत सांस रुकने की वजह से हुईं. इस दौरान बच्चों को खाना खिलाया जा रहा था. इनकी उम्र 3 महीने और 18 महीने थी. सूत्रों के मुताबिक़, दोनों बच्चियां बुरी तरह कुपोषित थी. वहीं, तीसरा बच्चा तो केवल चार महीने का था उसकी मौत गुरुवार को हो गई थी. ये बच्चा पिछले कुछ दिनों से बीमार था. इस बच्चे की कोविड-19 टेस्ट रिपोर्ट अब तक नहीं आई है. अधिकारियों ने इन बच्चों की मौत का कारण क्वारंटाइन सेंटर के भीतर गर्मी और ज्यादा भीड़ होना बताया है.   

श्रमिक एक्सप्रेस के टॉयलेट में मिला मज़दूर का शव  

गुरुवार को झंसी रेलवे स्टेशन पर खड़ी श्रमिक स्पेशल ट्रेन को जब सैनिटाइज़ करने रेलवे कर्मचारी पहुंचे, तो उन्हें टॉयलेट में एक मज़दूर का शव मिला. शव के पास मिले कागज़ात से मृतक की पहचान उत्तर प्रदेश के बस्ती निवासी 38 वर्षीय मोहन लाल शर्मा के रूप में की गई. बताया गया कि शर्मा मुंबई में दिहाड़ी मज़दूरी करते थे और काम न मिलने के कारण उन्होंने घर वापस लौटने का फ़ैसला किया था. वो झांसी पहुंचे, जहां प्रशासन ने प्रवासी मज़दूरों को रोक दिया.   

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बाद में 23 मई को इन लोगों को गोरखपुर जाने वाली ट्रेन में बिठाया गया, लेकिन अभी ये पता नहीं चला है कि ट्रेन का आखिरी स्टॉप गोरखपुर था या फिर ये बिहार के लिए आगे बढ़ी थी. बता दें, शब के पास से 28 हजार रुपये नकद, साबुन और कुछ किताबें भी मिली हैं. बतौर पुलिस शव को पोस्टमार्टम और कोविड जांच के लिए भेजा गया है, रिपोर्ट आने के बाद इसे परिवारजनों को सौंप दिया जाएगा.  

यूपी में आर्थिक तंगी से परेशान दो मज़दूरों ने की आत्महत्या  

उत्तर प्रदेश में कथित तौर पर आर्थिक तंगी से तंग आकर दो मज़दूरों ने ख़ुद को फांसी लगा ली. पहली घटना लोहरा गांव की है, यहां 22 साल के सुरेश ने बुधवार को खेत में लगे एक पेड़ से ख़ुद को फांसी लगा ली. लॉकडाउन के दौरान वो दिल्ली में फंस गए थे और पांच दिन पहले ही गांव वापस आए थे. बताया जा रहा है कि उनके पास पैसे नहीं थे, जिसके चलते उन्होंने आत्महत्या की है.  

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वहीं, दूसरी घटना सिंधन कलां गांव की है. यहां 20 साल का मनोज दस दिन पहले मुंबई से वापस लौटा था. मुंबई मे वो एक सिक्योरिटी गार्ड की नौकरी करता था, लेकिन लॉकडाउन में उसकी कंपनी बंद हो गई. ऐसे में वो अपने घर वापस आ गया. उसके पास राशन ख़रीदने के भी पैसे नहीं बचे थे, जिसके चलते बुधवार को उसने अपने घर के कमरे में फांसी लगाकर आत्महत्या कर ली.   

इन दोनों ही आत्महत्यों के पीछे आर्थिक तंगी को वजह बताया गया है. पुलिस मामले की जांच कर रही है, फ़िलहाल पोस्टमार्टम रिपोर्ट का इंतज़ार किया जा रहा है.  

खाना नहीं मिल रहा दो कूद जाओ ट्रेन से  

प्रवासी मज़दूर के हालात खराब हैं और इसे बद से बदतर बनाने में हमारी ब्यूरोक्रेसी कोई गुंजाइश बाकी नहीं रखना चाहती है. आईएएस एपी सिंह के रवैये से तो ऐसा ही लगता है. झारखंड में प्रवासी मज़दूरों की वापसी के लिए आईएएस एपी सिंह को नोडल अधिकारी बनाया गया है. ज़रूरत पड़ने पर प्रवासी मज़दूर सीधे अधिकारियों या मीडिया वालों से बात करते हैं. लेकिन एक प्रवासी मजदूर की बेबसी पर एपी सिंह ने जो रवैया अपना वो हर किसी को हौरान कर रहा है.  

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दरअसल, एक परेशान मज़दूर ने उन्हें फ़ोन कर बताया कि वो झारखंड के प्रवासी मज़दूर हैं और स्पेशल ट्रेन से वापस आ रहे हैं. लेकिन सुबह से उन्हें खाना नहीं मिला है. उन्हें काफ़ी परेशानी हो रही है. इस पर आईएएस ऑफ़िसर एपी सिंह का जवाब था कि कूद जाइये वहां से… और क्या करिएगा. जब प्रवासी मज़दूर कहता है कि सर कूद जाने अच्छा रहेगा क्या… तो उनका जवाब होता है कि रास्ते में जो देना है वो हमको नहीं रेलवे को देना है और इसी के साथ फ़ोन कट जाता है.  

बता दें, हज़ारों-हज़ार मज़दूर पैदल, साइकिल, ऑटो, ट्रक और ट्रेन के सहारे अपने घरों को लौट रहे हैं. इनकी हालत पहले भी बेहतर नहीं थी, लेकिन इस महामारी के चलते इनकी मुश्क़िलें ज़्यादा बढ़ गई हैं. सरकार के दावों के विपरीत ये मज़दूर तिल-तिलकर मरने को मजबूर हैं. कभी ये ट्रेन की चपेट में आते हैं तो कभी पुलिस की लाठी का शिकार होते हैं तो कभी भूख से अपनी जान गंवा रहे हैं. इन सबसे बच भी गए तो कोरोना की चपेट में आ जाते हैं. बड़ी संख्या में प्रवासी मज़दूर कोरोना संक्रमण का शिकार हो चुके हैं. इन सबके बीच प्रवासी मज़दूरों का दर्दनाक पलायन जारी है.