J&K Administrative Service: अधिकतक युवा UPSC या इस जैसे एग्ज़ाम को पास करके बड़ा अधिकारी बनने की चाह रखता है. ताकि वो ज़िले और राज्य के लोगों की ज़िंदगी संवार सके. मगर बहुत कम ही लोग होते हैं जिनका ये सपना पूरा होता है.

अधिक कॉम्पिटिशन और परीक्षा कठिन होने के चलते सिविल सर्विस की परीक्षा में गिने-चुने ही लोग पास होते हैं. मगर जब ऐसा होता है तो उस ज़िले के लिए ये गर्व का क्षण होता है. कुछ ऐसा ही हुआ जम्मू में जहां एक ही परिवार के 3 भाई-बहनों ने JKAS (J&K Administrative Service) पास करके इतिहास रचा है. 

150 के अंदर आई है रैंक

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ये अद्भुत कीर्तिमान रचा है जम्मू के डोडा ज़िले के रहने वाले 3 भाई-बहनों ने. इतना ही नहीं तीनों की रैंक 150 के अंदर आई है. JKAS की परीक्षा पास करने वाले इन भाई-बहनों के नाम हैं हुमा वानी, इफ़रा अंजुम वानी और सुहैल. इफ़रा और सुहैल ने पहले ही अटेंप्ट में ये परीक्षा पास की है. वहीं सबसे बड़ी बहन हुमा ने दूसरे प्रयास में सफलता हासिल की.

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एक क़िताब से की पढ़ाई

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ख़ास बात ये है कि इन्होंने कहीं से भी कोचिंग नहीं ली थी और एक विषय की एक ही क़िताब से पढ़ाई की थी. इफ़रा और सुहैल कई बार एक क़िताब से पढ़ने के लिए झगड़ने लगते तो बड़ी बहन ही उन्हें समझा कर शांत करवाती थीं. इनका परिवार डोडा के भलेसा क्षेत्र के काही ट्रनखाल गांव का रहने वाला है.

डिप्टी मेयर ने किया सम्मानित

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बच्चों की पढ़ाई के लिए ही परिवार जम्मू में सेटल हुआ था. इनके पिता मुनीर अहमद वानी मज़दूरी कॉन्ट्रेक्टर का काम करते हैं. एक और ख़ास बताएं आपको, ये तीनों अपने खानदान में पहले हैं जिनकी कोई सरकारी नौकरी लगी है. तीनों स्टूडेंट्स को जम्मू के डिप्टी मेयर बलदेव सिंह ने बधाई देते हुए सम्मानित भी किया.

नहीं था किसी के पास भी मोबाईल

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सुहैल का कहना है कि वो पुलिस सेवा में शामिल होना चाहते हैं क्योंकि उसका मान है कि पुलिस की नौकरी में शक्ति और ज़िम्मेदारी दोनों आती है. वहीं, दोनों बहनें एडमिनिस्ट्रेटिव सर्विस में शामिल होना चाहती हैं और उनका इरादा समाज के पिछड़े लोगों की मदद करना है.

बच्चों के पिता का कहना है कि बचपन से ही तीनों का सपना JKAS की परीक्षा पास करना था. वो इसके लिए रोज़ाना 12 घंटे तक पढ़ाई करते थे. इनके पास अभी तक कोई मोबाईल नहीं था. इंटरनेट की ज़रूरत होने पर ये मां के फ़ोन को लैपटॉप से कनेक्ट कर नेट चलाते थे. 

किसी ने सही कहा है कि ज़ुनून पालिए मंजिल अपने आप मिल जाएगी. सुहैल, इफ़रा और हुमा ने इसे साबित भी कर दिखाया है.