तेलंगाना के रचाकोंडा स्थित सरूरनगर महिला पुलिस थाना ने अपनी महिला पुलिस कर्मियों को उनके बच्चों के लिए ‘We Care’ नाम के एक क्रेच की सौगात दी है, ताकि काम के वक़्त उनके बच्चों की सही तरीके से देखभाल हो सके.
रचाकोंडा के कमिश्नर ऑफ़ पुलिस और आईपीएस ऑफ़िसर महेश भागवत, ने कहा कि कुछ दिनों पहले एक फ़ोटो सोशल मीडिया पर वायरल हो रही थी, जिसमें एक महिला पुलिस कर्मचारी ने अपने छोटे से बच्चे को डेस्क पर सुला रखा था, और वो ख़ुद काम कर रही थी.
भविष्य में हर पुलिस स्टेशन में एक क्रेच खोलने की योजना है
सरूरनगर महिला पुलिस थाने के इस क्रेच का उद्घाटन एमवी फ़ॉउंडेशन की संस्थापक, शांता सिन्हा ने किया. शांता, बाल अधिकार संरक्षण के राष्ट्रीय आयोग (NCPCR) की पूर्व अध्यक्ष हैं और उनको बाल अधिकार और शिक्षा की दिशा में सरहानीय कार्यों के लिए पद्मश्री अवॉर्ड से सम्मानित भी किया जा चुका है.
The Logical Indian की ख़बर के अनुसार, प्रोफ़ेसर शांता सिन्हा ने सरूरनगर महिला पुलिस थाना की इस पहल का सम्मान और प्रशंसा की. प्रेस विज्ञप्ति में उन्होंने महिला कर्मचारियों और उनके बच्चों की देखभाल करने के इस विचार की सराहना की है.
पुलिस आयुक्त, भागवत ने बताया कि वो महिलाओं के प्रति सहानुभूति महसूस करते थे, और उनके साथ काम कर रही फ़ीमेल कॉन्स्टेबल को सशक्त बनाने के लिए, उनके मन में क्रेच बनाने के विचार आया, ताकि महिला पुलिस भी बिना किसी कठिनाई के अपना कर्तव्य पालन कर सकें.
इसके साथ ही उन्होंने बताया कि हर पुलिस स्टेशंस में एक क्रेच बनवाने का काम अगले साल से पहले पूरा करने की योजना है, क्योंकि अगले साल से हर पुलिस स्टेशन में 33% महिला पुलिस कर्मियों की भर्ती होने की योजना है.
सरूरनगर के महिला पुलिस थाना के स्टेशन हाउस ऑफ़िसर, विट्टल रेड्डी ने कहा कि इस पुलिस स्टेशन में 40 महिला पुलिस कर्मी हैं, और उनमें से ज़्यादातर की उम्र 25 से 30 के बीच है. इसलिए ये प्रयास उन सभी महिला अफसरों के लिए मददगार होगा, जो मां हैं या आगे चलकर मां बनेगीं. इसके साथ ही उन्होंने ये भी बताया, ‘वर्तमान में 4 लोग इस क्रेच में देखभाल के लिए रखे गए हैं, जिसमें दो बाहरी हैं और दो पुलिस कॉन्सटेबल ही हैं. अभी इस क्रेच में 8 से 10 बच्चे हैं और हम और बच्चों के आने की उम्मीद कर रहे हैं.
संध्या, जो एक फ़ीमेल कॉन्सटेबल हैं इस महिला पुलिस स्टेशन में और अपने कार्यस्थल से 50 किमी दूर Yellamma समुदाय से आती हैं, ने कहा,
‘मेरी तीन साल की एक बेटी है. शुरुआत में मुझे उसको अपने किसी रिश्तेदार के घर पर छोड़कर आना पड़ता था और बार बार अपनी बेटी के बारे में पूछने के लिए उनको फ़ोन करना पड़ता था. हर दिन मुझे 50 किमी का सफ़र तय करके अपनी ड्यूटी ज्वाइन करनी पड़ती थी और रात में भी मैं बहुत लेट हो जाती थी और हमेशा मुझको अपनी बेटी की चिंता रहती थी. लेकिन अब मैं बहुत खुश हूं क्योंकि अब मैं अपनी बरती को अपने साथ यहां ला सकती हूं और थोड़ा समय उसके साथ भी बिता सकती हूं.’
हम हैदराबाद पुलिस द्वारा महिला सशक्तिकरण को बढ़ावा देने वाली इस नेक पहल की सराहना करते हैं और उम्मीद करते हैं कि पूरे देश में इस तरह की पहल की जायेगी भविष्य में क्योंकि इससे महिला कर्मचारी अपने बच्चों की चिंता किये बिना अपना काम अच्छे से कर पाएंगी. इस प्रयास से एक उम्मीद ये भी बढ़ी है कि जो महिलायें मां बनने के बाद नौकरी छोड़ देती हैं, वो भी अब बेझिझक काम कर पाएंगी.