द्वितीय विश्व युद्ध में रूस पर हमला करने के बाद जर्मनी की नाज़ी सेना ने यहां के बेशकीमती एम्बर रूम से सोने और हीरे जवाहरात चुराए थे लेकिन अब लग रहा है कि इस खज़ाने का राज़ खुल चुका है. जर्मनी की ड्रेसडेन सिटी में ख़ज़ाने की तलाश में जुटे तीन ट्रेज़र हंटर्स ने हिटलर का सालों पुराना खोया खज़ाना ढूंढने का दावा किया है. 

रूस का एम्बर रूम दुनिया के सबसे कीमती खज़ाने और अपनी बेहतरीन आर्ट फॉर्म के लिए जाना जाता था. इसका निर्माण सोवियत यूनियन के किंग फ़्रेडरिक ने 1701 में करवाया गया था. इस विशाल कमरे की आलीशान दीवारें भी हीरे-जवाहरात और बेशकीमती स्टोन्स से जड़ी गईं थीं, जो रात के अंधेरे में भी जगमगाता रहता था.

खज़ाना खोजने का दावा करने वाले तीनों ट्रेज़र हंटर्स लियोनार्ड ब्लयुम (73), गुंटर एकार्ट (67) और पीटर लोर (71), तीनों ही पिछले कई सालों से खज़ाने की खोज में जुटे थे. जियो-रडार स्पेशलिस्ट पीटर लोर के मुताबिक, उन्हें 2001 में खज़ाने के जर्मनी में छिपे होने की जानकारी मिली थी. इसके बाद से ही वे इसकी तलाश में थे.

पीटर के मुताबिक, ड्रेसडेन में खजाने की तलाश के दौरान उन्हें एक ही साइट पर कई सारे जाल बिछे मिले, जिसके बाद उन्हें इस साइट के नीचे खजाना छिपे होने का शक हुआ. पीटर ने स्पेशल रडार इमेज का इस्तेमाल करते हुए अंडरग्राउंड ट्रैप का पता लगाया और यही से उन्हें ज़मीन के अंदर बंकर होने का रास्ता मिला. उन्होंने सितंबर में इस ड्रेसडेन शहर में मौजूद इस पहाड़ी को स्कैन किया और यहां की तलाशी शुरू की. ये खज़ाना कोनिंसबर्ग के एक अंडरग्राउंड रेलवे लाइन के ऊपर छिपा है, जिसके कुछ अवशेष उन्हें मिल गए हैं. इन तीनों का मानना है कि इसी जगह पर जर्मनी के एक और तानाशाह काइसर विलहेल्म का खज़ाना भी छिपा हो सकता है.

टीम मेंबर साइंटिस्ट गंटर एकार्ट को खोज के दौरान साइट के आसपास पेड़ों पर स्टील रोप्स (रस्सियों) के निशान मिले हैं. इसके अलावा जियो-रडार में साइट के नीचे अंडरग्राउंड टनल सिस्टम भी पाया गया है. तीनों ट्रेजर हंटर्स के दावों के बाद जर्मनी सरकार ने साइट की जांच के आदेश दिए हैं.

सोवियत यूनियन पर हमला करने के बाद जर्मनी के सैनिकों ने एम्बर रूम से सिर्फ 36 घंटों में ही सारा सोना और हीरे-जवाहरात उतार लिए थे. 14 अक्टूबर 1941 तक सारे अनमोल आर्ट पीसेज़ को जर्मनी के कोनिंसबर्ग तक पहुंचा दिया गया था जहां इन्हें पब्लिक को दिखाने के लिए कोनिंसबर्ग टाउन हॉल में रख दिया गया था.

इसे 1716 में किंग ऑफ़ प्रसिया ने पीटर द ग्रेट को पेश किया था. इसके बाद कैथरीन द ग्रेट ने नई पीढ़ी के शिल्पकारों को इस कमरे को संवारने का काम सौंपा था और इसके बाद इसे सेंट पीटर्सबर्ग से शहर के बाहर Tsarskoye Selo में शिफ़्ट कर दिया था. आर्ट के इतिहासकार Konstantin Akinsha और Grigorii Kozlov के मुताबिक, जब 1770 में इस कमरे की सज़ावट को खत्म किया गया था तो कमरे में 565 मोमबत्तियां लगाई गई थीं, जिससे ये रूम बेहद आकर्षक दिखाई दे रहा था.

शिल्पकारों ने इसे तैयार करने के लिए अंबर, सोने और बेशकीमती स्टोंस का सहारा लिया था और इसे दुनिया के सबसे महत्वपूर्ण आर्ट खज़ाने में शुमार किया जाता है. द्वितीय विश्व युद्ध के खत्म होने के बाद से ही इस खज़ाने के रहस्य को लेकर अटकलें शुरू हो गई थी. इस खज़ाने की कीमत 225 मिलियन पाउंड यानि लगभग 19 अरब रूपए बताई जा रही है.