पिछले कई महीनों से विवाद और सुर्ख़ियों में रहने के बाद आख़िरकार सुप्रीम कोर्ट ने तीन तलाक़ के मुद्दे पर आज सुबह अपना फ़ैसला सुना दिया. पांच जजों की बेंच वाली इस समिति की अध्यक्षता चीफ़ जस्टिस जेएस खेहर कर रहे थे.
अपने फ़ैसले में बेंच ने तीन तलाक़ को असंवैधानिक माना है और इस पर 6 महीने की रोक लगा दी है. इसी के साथ बेंच ने सरकार को निर्देश दिया है कि वो इस रोक लगाने के लिए संसद में कानून बनाये.

- कोर्ट ने अपने फ़ैसले में कहा कि तीन तलाक़ किसी भी महिला के अधिकारों का हनन करती है, जो हर हाल में ग़ैरकानूनी है.
- कई इस्लामिक देशों में तीन तलाक़ पर पहले से ही प्रतिबंध है, तो क्या ऐसे में भारत में इस पर प्रतिबंध नहीं लगाया जा सकता?
- इसी के साथ सुप्रीम कोर्ट ने सरकार को ये हक़ दिया कि यदि वो इसे वैध मानती है, तो इस पर से रोक हटा ली जाएगी.
सुप्रीम कोर्ट की इस संसदीय बेंच में सभी जज अलग-अलग धर्मों से आते हैं. जस्टिस कुरियन जोसेफ, ईसाई धर्म से आते हैं.

जस्टिस आरएफ़ नरीमन, पारसी समुदाय से आते हैं.

जस्टिस यूयू ललित, हिन्दू धर्म को मानने वाले हैं.

अब्दुल नज़ीर, मुस्लिम धर्म को मानने वाले हैं.
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इसके अलावा बेंच की अध्यक्षता कर रहे मुख्य न्यायधीश जेएस खेहर सिख समुदाय से आते हैं.

फ़ैसला आने से पहले पांच जजों वाली सदस्यीय बेंच में से तीन जजों ने तीन तलाक़ को असंवैधानिक माना, जबकि दो जज ने इसके पक्ष में अपना मत दिया था.
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