Ashay Sahasrabuddhe और Shivada Chauthaiwale की शादी, जो किसी आम शादी से बेहद अलग थी. आमतौर पर आपने शादी में पुरुष पंडितों को ही रस्में कराते देखा होगा, लेकिन इस शादी में पंडित थी एक महिला. इस शादी में ख़ास ये भी था कि कन्यादान की रस्म इस शादी का हिस्सा नहीं थी.
नागपुर के इस कपल की शादी में जेंडर के आधार पर होने वाले भेद-भाव की दीवार को तोड़ने की पूरी कोशिश की गयी. पुरुषवादी रस्मों को त्याग कर इस शादी में समानता को जगह दी गयी.
दरअसल, हिन्दू शादी में कन्यादान इसलिए किया जाता है क्योंकि ऐसा माना जाता है कि शादी करा के पिता अपनी पुत्री का दान कर रहा होता है. इस रस्म को त्यागने का फ़ैसला लेने वाली खुद दूल्हे की मां थीं. उनका मानना है कि लड़की कोई सामान नहीं होती, जिसका दान किया जाये.
उन्होंने कहा कि हमारी परम्पराओं में भी कई कमियां हैं. एक तरफ़ हम कन्या-पूजन करते हैं और दूसरी तरफ महिलाओं के अधिकारों को मानने से भी इनकार करते हैं. बदलाव की शुरुआत घर से ही होती है, इसलिए हमें ऐसी परम्पराओं को भी छोड़ देना चाहिए, जो पुरुषवादी हैं.
इस पहल के कारण Ashay और Shivada की शादी ख़ास बन गयी है. दूल्हे की मां ने जिस बात की ओर इशारा किया है, वो वाकयी सोचने की बात है. कई लोग रिवाज़ों को छोड़ने से कतराते हैं, लेकिन ये सभी रिवाज़ इंसान के ही बनाये हुए हैं, इसलिए ये सोचने में कोई बुराई नहीं है कि ये सही हैं या ग़लत.