कुंभ नगरी, संगम नगरी, तीर्थराज जैसे नामों से इलाहाबाद सदियों से जाना जाता रहा है. गंगा-यमुना का संगम और गंगा-जमुनी तहजीब का प्रयाया रहे इस शहर का हमारे इतिहास में एक अलग दर्जा है. पौराणिक ग्रंथों, अकबर और आज़ादी के संघर्ष जैसी कई यादें इससे जुड़ी हैं. हालांकि बहुत जल्द यूपी सरकार इसका नाम बदलकर प्रयागराज रखने वाली है. ये फ़ैसला सीएम योगी ने हाल ही में लिया है.
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मुग़लसराय स्टेशन के बाद अब यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ ने इलाहाबाद का नाम बदलने का ऐलान किया है. UP सरकार ने इस शहर का नाम प्रयागराज रखने का फ़ैसला किया है. हाल ही में कुंभ के मेले की तैयारियों का जायज़ा लेने के लिए एक मीटिंग बुलाई गई थी. इस मीटिंग के बाद सीएम योगी आदित्यनाथ ने अपनी सरकार के इस फ़ैसले से मीडिया को अवगत कराया.
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उन्होंने कहा- कुंभ के मेले की तैयारियों के बीच अखाड़ा परिषद ने ज़िले का नाम बदलने का सुझाव दिया था. इस पर हमारी सरकार और राज्यपाल रामनाइक ने भी सहमति जताई है. बहुत जल्द इलाहबाद ज़िले का नाम बदलकर प्रयागराज कर दिया जाएगा.
इंडिया टुडे की रिपोर्ट के अनुसार, प्रदेश सरकार की अगली कैबिनेट मीटिंग में इस फ़ैसले पर मुहर लगने की उम्मीद है.
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होने लगा है विरोध
सरकार के इस फ़ैसले का कांग्रेस और अन्य राजनीतिक पार्टियों ने विरोध किया है. कांग्रेस का कहना है कि इलाहाबाद का देश के इतिहास में बहुत ही महत्वपूर्ण स्थान है. कांग्रेस के अधिवेशन से लेकर आज़ादी की लड़ाई तक इसकी भूमिका रही है. यही नहीं ज़िले से एक प्रधानमंत्री भी रह चुके हैं. अगर ऐसा होता है को इलाहाबाद यूनिवर्सिटी का नाम भी बदलना होगा, जो संस्थान की प्रतिष्ठा के लिए ठीक नहीं होगा. कुंभ का मेला जहां लगता है उस जगह का नाम प्रयाग है. अगर सरकार चाहे तो एक नया शहर इस नाम से बसा सकती है. किंतु इसका नाम बदलना किसी भी रूप से स्वीकार्य नहीं है.
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मुग़ल बादशाह अकबर ने रखा था नाम
तीर्थराज के नाम से मशहूर इलाहाबाद को आज से 444 साल पहले प्रयाग के नाम से ही जाना जाता था. यहीं के जल से राजा-महाराजाओं का अभिषेक किया जाता था.1574 में मुग़ल बादशाह अकबर ने यहां एक शहर बसाया, जिसका नाम अल्लाह का शहर यानि इल्हाबास रखा गया. बाद में अंग्रेज़ों ने इसे अलाबाद कहना शुरू कर दिया. तब से लेकर आज तक इसे इलाहाबाद के नाम से ही जाना जाता है.
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राजनीतिक पार्टियां जब भी केंद्र या फिर किसी राज्य में सत्ता में आती हैं, वो अपने हिसाब से कई जगहों का नाम बदलने लगती हैं. उनकी मनमानी से उन लोगों को ठेस पहुंचती है, जिनकी यादें उस स्थान से जुड़ी होती हैं. सरकारों को इस तरह के फ़ैसले लेने से पहले एक बार जनता की भी राय ले लेनी चाहिए. आपका क्या ख़्याल है?
Feature Image source: Patrika