सोशल मीडिया से ले कर रियल लाइफ़ में आपको ऐसे कई लोग मिल जायेंगे, जो आरक्षण को ख़त्म करने की या इस विषय पर दोबारा चर्चा करने की बात करते हैं. असल में ऐसे लोग महानगरों में बैठ कर ही सारे देश के हालातों का अंदाज़ा लगा लेते हैं. पर क्या शहरों की हक़ीक़त को ही ग्रामीण भारत की तस्वीर माना जा सकता है?

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हाल ही में कर्नाटक में हुए वाकये को देख कर ऐसा तो बिलकुल नहीं लगता कि हिंदुस्तान जातिवाद के दंश से ऊपर उठ बराबरी की बात करने लगा है. दरअसल टाइम्स ऑफ़ इंडिया की ख़बर के मुताबिक, कर्नाटक के Kalaburgi ज़िले के चन्नुर गांव में सवर्ण जाति के व्यक्ति ने कुंए में सिर्फ़ इसलिए ज़हर डाल दिया, ताकि गांव के दलित कुंए के पानी का इस्तेमाल न कर सकें.

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ख़बर के मुताबिक, चन्नुर गांव में करीब 7 कुंए हैं, जिनमें से केवल एक कुंए से दलित पानी भर सकते हैं. ये कुंआ भी गांव की सीमा से करीब 200 मीटर बाहर है, जिस जगह पर ये कुंआ है वो ज़मीन एक दलित की है, जिसे 4 साल पहले उन्होंने गांव की एक स्वर्ण कुकनूर नाम के शख़्स को किराए पर दिया हुआ था. ज़मीन मिलने के बाद से कुकनूर हमेशा इस कोशिश में रहता था कि कोई दलित कुंए से पानी न ले पाए. इसलिए वो कभी कुंए में मरा हुआ कुत्ता, तो कभी बिल्ली के अलावा सांप डाल देता था. इसके बावजूद 29 अगस्त तक दलित पानी रुकने तक किसी तरह से काम चला रहे थे.

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कुछ दिनों पहले दलितों ने महसूस किया कि पानी के स्वाद में फ़र्क आने लगा है, जिसके बाद उन्होंने कुंए से पानी लाना छोड़ दिया, पर ऊंची जाति के लोगों ने उन्हें गांव के कुओं से भी पानी नहीं लेने दिया. मामला प्रकाश में आने के बाद कुकनूर पर अनुसूचित जाति और जनजाति के अधिकारों की रक्षा सेक्शन 3 के तहत केस दर्ज कर लिया है. दलितों का आरोप है कि कई मौकों पर कुकनूर उनके साथ हाथापाई कर चुका है और जान से मारने की धमकी भी दे चुका है. दलितों का कहना है कि ‘कुकनूर कहा करता था कि मरने से पहले वो एक न एक दलित ज़रूर मार कर जायेगा.’

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रिपोर्ट के मुताबिक, कुंए में Endosulfan नामक ज़हर मिलाया गया था, जिस पर कई देशों में पहले ही प्रतिबंध है. ये ज़हर इंसान के दिमाग़ पर सीधा असर करने के साथ ही उनके जनांगों पर प्रहार करता है.

इस मामले को ले कर ट्विटर पर भी प्रतिक्रिया देखने को मिली, जहां लोग खुल कर इसका विरोध करते दिखाई दिए.