आज एक शख़्स की मौत पर इंसान ही नहीं, बल्कि कई पेड़-पौधे भी रो रहे हैं. 50 लाख से अधिक पेड़ लगाने वाले ट्री मैन विश्वेश्वर दत्त सकलानी अब हमारे बीच नहीं रहे. बीते शुक्रवार को 96 वर्षीय इस वृक्षमानव का निधन हो गया. ट्री मैन विश्वेश्वर दत्त सकलानी का जन्म 2 जून 1922 को सकलाना पट्टी के पुजार गांव में हुआ था और उन्होंने 8 साल की उम्र से ही पेड़ लगाना शुरू कर दिया था. पेड़ों से मोहब्बत करने वाले सकलानी भारत के स्वतंत्रता के संघर्ष में भी सक्रिय भागीदार रहे.

कहा जाता है कि आज से करीब 60-70 साल पहले सकलाना घाटी का पूरा इलाका वृक्ष विहीन था, जिसके बाद ट्री मैन ने वहां पेड़-पौधे लगा कर हरा-भरा बना दिया. सकलानी ने अपने दम पर 100 हेक्टेयर से अधिक क्षेत्र में बांज, बुरांश, सेमल, भीमल और देवदार समेत कई पेड़ लगाए. हालांकि, इस दौरान सकलानी को ग्रामीणों का विरोध भी झेलना पड़ा, क्योंकि उन्हें लग रहा था कि वो ऐसा करके ज़मीन पर कब्ज़ा जमा रहे हैं.

हिंदुस्तान टाइम्स को दिये इंटरव्यू में ट्री मैन के बेटे स्वरूप सकलानी ने बताया था कि एक दशक पहले पेड़ लगाते समय उनकी आंखों में कीचड़ और कंकड़ चला गया था, जिस वजह से उनकी आंखों की रौशनी चली गई. इसके बावजूद वो रुके नहीं और हज़ारों पेड़ लगाने में कामयाब रहे. विश्वेश्वर दत्त की पत्नी ने भी उनके इस काम में उनका पूरा सहयोग किया, क्योंकि वो पेड़-पौधों में ही अपना परिवार, माता-पिता, दोस्त और अपनी दुनिया देखते थे.

सकलानी को 1986 में तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी द्वारा इंदिरा प्रियदर्शिनी पुरस्कार से सम्मानित किया गया था. वहीं उत्तराखंड के टिहरी ज़िले में उनके निधन से पूरे गांव में शोक की लहर है.