दुनिया की मशहूर कार निर्माता कंपनी Volvo अपनी नई लग्ज़री कारों को 30 मीटर गहरी खाई में फेंक रही है. ऐसा क्या हो गया कि कंपनी को ऐसा करना पड़ रहा है? आख़िर कंपनी अपनी कारों को 30 मीटर की ऊंचाई से क्यों नीचे गिरा रही है?
चौंकिए मत! इसके पीछे की असल वजह हम आगे बताने जा रहे हैं-

दरअसल, कंपनी ऐसा इसलिए कर रही है, ताकि किसी भी संभावित क्रैश की स्थिति में रेस्क्यू अभियान चलाया जा सके और हर संभव बचाव कार्य किए जा सकें. कंपनी ऐसा इसलिए भी कर रही है, ताकि तेज़ स्पीड में यदि कार का एक्सीडेंट होता भी है, तो उस समय कैसी स्थिति पैदा होगी?
We wanted to help our Emergency Services develop new methods of extracting people after severe accidents, but our regular crash tests weren’t enough. So, we had to think of something a little more extreme…. #ForEveryonesSafety pic.twitter.com/fMGF1A4HtU
— Volvo Car UK (@VolvoCarUK) November 13, 2020
इस क्रैश टेस्टिंग के लिए Volvo पहली बार अपनी ब्रांड न्यू कारों को क्रेन के ज़रिए 30 मीटर ऊंचाई से गिरा रही है. क्योंकि ऐसी स्थिति में कार में बैठे लोगों को गंभीर चोट लगने की आशंका रहती है. इसलिए कंपनी ने ये अनोखा तरीक़ा अपनाया है.

कंपनी का कहना है कि, सड़क पर होने वाले हादसे के समय कैसे पीड़ितों को तत्काल गाड़ी से बाहर निकाला जा सके और उन्हें इलाज के लिए अस्पताल तक पहुंचाया जा सके. ये परीक्षण इसलिए भी बेहद ज़रूरी हो जाता है. क्रैश टेस्ट के आधार पर एक रिपोर्ट बनाई जाएगी, जिसे रेस्क्यू वर्कर्स को मुहैया कराया जाएगा.

इस क्रैश टेस्ट के आधार पर रेस्क्यू वर्कर्स इसी तैयारी और रणनीति बना सकेंगे कि किसी भी तरह के हादसे की स्थिति से कैसे निपटा जाए. आमतौर पर रेस्क्यू वर्कर्स की ट्रेनिंग के लिए दो दशक पुरानी गाड़ियां दी जाती हैं. ऐसे में अब कार कंपनियों ने ब्रांड न्यू कार से सटीक क्रैश टेस्टिंग करने का फ़ैसला किया है.

बता दें कि Volvo अब तक क्रैश टेस्ट के लिए 10 ब्रांड न्यू कारों की बलि चढ़ा चुकी है. इस प्रक्रिया के दौरान Volvo Cars के इंजीनियर कार गिराने से पहले ये तय करते हैं कि गाड़ी को कितने प्रेशर और फ़ोर्स के साथ गिराना चाहिए, ताकि उसके डैमेज के लेवल की सही ढंग से जानकारी मिल सके.