भारत एक ऐसा देश है जहां नदियों, पर्वतों और पेड़ों को देवी-देवता के रूप में पूजा जाता है. हमारे देश में नदियों के जल को अमृत भी माना जाता है, लेकिन फिर भी हम इन्हीं नदियों में कूड़ा-कचरा डाल कर इनको अशुद्ध करते रहते हैं. लेकिन न्यूजीलैंड से एक खबर ऐसी आ रही है, जो हमको सोचने पर मज़बूर कर देगी कि हम इन प्राकृतिक स्रोतों के लिए ऐसा कुछ कर सकते हैं क्या?

बीते बुधवार को न्यूजीलैंड की संसद ने वांगनुई नदी, जो वहां सबसे बड़ी नदियों में से एक है, को क़ानूनी मानवाधिकार देने संबंधी बिल पास कर दिया. इस बात के लिए यह कहना गलत नहीं होगा कि दुनिया में यह पहला ऐसा कदम है, जब किसी नदी को इंसान के समान सजीव अस्तित्व मानकर सभी क़ानूनी अधिकार दिए गए हैं.

गौरतलब है कि वांगनुई नदी न्यूजीलैंड की तीसरी सबसे बड़ी नदी है, जो वांगनुई मध्योत्तर द्वीप से निकलकर 145 किलोमीटर की दूरी तय कर समुद्र में मिलती है. क़ानूनी मानवाधिकार देने संबंधी बिल पास होने से अब इस नदी को किसी मनुष्य के समान वैधानिक अधिकार मिल गए हैं.

न्यूजीलैंड के अटॉर्नी जनरल, Chris Finlayson ने कहा, ‘अब से इस नदी के पास भी क़ानूनी पहचान होगी, साथ ही इसके पास वो सभी संवैधानिक अधिकार होंगे, जो इन्सान के पास है. Finlayson कहते हैं कि ‘एक नदी को क़ानूनी व्यक्तित्व देने का दृष्टिकोण बाहत ही अद्वितीय है.’

इसके साथ ही Finlayson ने बताया कि स्थानीय माओरी जनजाति के लोग 1870 के दशक से नदी पर अपने अधिकारों का दावा करने के लिए लड़ रहे थे. न्यूजीलैंड के इतिहास में ये विवाद सबसे ज़्यादा समय तक चलने वाली क़ानूनी लड़ाई है.

यह कदम स्थानीय माओरी जनजातीय समुदाय के लिए बड़ी जीत है. वांगनुई नदी को अब माओरी समुदाय के लोगों के जैसे ही अधिकार मिल गए हैं. अगर कोई इसे हानि पहुंचाएगा, तो किसी माओरी को क्षति पहुंचाने वाली क़ानूनी धाराओं के तहत कार्रवाई होगी. नदी को मानवाधिकार मिलने की ख़बर सुनते ही सैकड़ों माओरी ख़ुशी से रो पड़े.

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समुदाय के मुख्य पक्षकार गेरार्ड अल्बर्ट ने कहा, यह नदी हमारी पूर्वज है और हमेशा रहेगी. नदी का प्रतिनिधित्व दो लोग करेंगे. एक माओरी समुदाय द्वारा नियुक्त होगा, जबकि दूसरे की नियुक्ति सरकार करेगी.

हमारे भारत में नदियों को मां का दर्जा दिया तो गया है, लेकिन ये केवल धार्मिक तौर पर है. काश भारत में भी ऐसा संभव हो पाता.

Source: metro