2011 में स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी के छात्र इवान स्पीगेल, बॉबी मर्फी और रैगी ब्राउन ने एक ऐप Snapchat का निर्माण किया था. पचास करोड़ डाउनलोड के साथ ही ये ऐप फे़सबुक जैसी कंपनियों को तगड़ी चुनौती देती रही है, लेकिन पिछले कुछ दिनों में इस कंपनी के सीईओ इवान स्पीगेल के एक कथित बयान पर कई भारतीयों ने तीखी प्रतिक्रिया दी.
भारतीय यूज़र्स और Snapchat के बीच ये जंग सिलसिलेवार तरीके से कई दिलचस्प मोड़ से गुज़र रही है.
आखिर स्पीगेल ने ऐसा क्या कह दिया?
शनिवार को खबर आई कि Snapchat के सीईओ ने कथित तौर पर भारत को एक गरीब देश कहा है. अमेरिकन वेबसाइट, वैराइटी ने Snapchat के पूर्व कर्मचारी, एंथनी पोमप्लायनो का नाम लेते हुए खबर छापी कि स्पीगेल ने उनसे (एंथनी से) कहा था कि यह लोकप्रिय ऐप सिर्फ़ अमीर लोगों के लिए है और भारत जैसे ‘गरीब देशों’ में उन्हें अपने व्यवसाय का विस्तार करने में कोई रूचि नहीं है.
भारतीय सोशल मीडिया ने बनाया Snapchat को निशाना
इस रिपोर्ट के सामने आते ही सोशल मीडिया पर कई भारतीय लगातार Snapchat और स्पीगल को निशाना बनाने में जुट गए. ट्विटर पर भारतीय यूज़र्स ने Snapchat के खिलाफ मोर्चा खोल दिया. Snapchat पर मीम्स और जोक्स बनने लगे. #BoycottSnapchat और #UninstallSnapchat जैसे ट्रेंड के साथ ही लोग अब इस ऐप को अनइंस्टाल करने लगे.
खाया-पिया किसी और ने और बिल फटा किसी और के नाम का.
Snapchat का बहिष्कार अब देशभक्ति का पैमाना साबित हो रहा था. कुछ चरम देशभक्त अपनी देशभक्ति साबित करने के जुनून में Snapchat की बजाय ई-कॉमर्स वेबसाइट, Snapdeal को अनइंस्टाल करने लगे. Snapchat का बिल Snapdeal के नाम पर फ़टने लगा. हालांकि बाद में सोशल मीडिया पर कई लोग Snapdeal और Snapchat के बीच में अंतर बताते हुए भी नज़र आए.
हैकर्स भी हुए नाराज़
इसके अलावा कुछ अनाम भारतीय हैकरों ने भी दावा किया कि उन्होंने Snapchat को हैक कर उसके 17 लाख यूज़र का डाटा लीक कर दिया है. ये हैकर्स स्पीगल के बयान के बाद नाराज़ थे और इसलिए डाटा लीक कर दिया गया.
कहानी में ट्विस्ट, Snapchat ने किया आरोपों से इंकार
विभिन्न मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक Snapchat ने इन आरोपों का खंडन किया है. वैरायटी के ही अनुसार कंपनी के एटर्नी ने इन आरोपों पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा है कि ‘सच तो यह है कि पोमप्लायनो को Snapchat के मौजूदा मैट्रिक के बारे में कुछ नहीं पता. पोमप्यानो दरअसल पब्लिसिटी पाने के लिए ऐसा कर रहे हैं’. कंपनी के सीईओ ईवान स्पीगल ने कभी ऐसा कोई बयान नहीं दिया बल्कि ये उनके साथ काम कर चुके सहयोगी एंथोनी पांप्लिआना की दलील है, जिन्हें स्नैपचैट से निकाल दिया गया था.
साफ़ है अनचाहे तौर पर ही सही, लेकिन स्पीगल और उनकी कंपनी ट्विटर और सोशल मीडिया के बाकि प्लेटफ़़ॉर्म पर ट्रेंड करने लगी.
लेकिन क्या ये प्रतिक्रिया बचकानी नहीं है?
दऱअसल सच्चाई ऐसे ही काम करती है. आज लाखों की तादाद में भारतीय लोग Snapchat के सीईओ पर भड़के हुए हैं. उनके भड़कने का कारण है कि ये एक सच ही है कि हम एक गरीब देश हैं और हम सच्चाई सुनकर बिदक उठे हैं. भारत अगर एक विकसित देश होता और अगर तब किसी ने देश को गरीब कहा गया होता तो बहुत संभव है कि हम उस बात पर हंस रहे होते और शायद इस तरह की तीखी प्रतिक्रिया न दे रहे होते.
वहीं इस विवाद में स्पीगल की गर्लफ़्रेंड को भी लोगों ने नहीं बख्शा और कई भारतीय यूज़र्स ने उन्हें भी इस मामले में घसीटने की कोशिश की. क्या हमारा ये रवैया साबित नहीं करता कि हममें से कुछ लोग कितने असहिष्णु हो चुके हैं? स्पीगल के कथित बयान में भारत के अलावा स्पेन का भी नाम लिया गया था लेकिन स्पेन की तरफ़ से इस तरह की कोई प्रतिक्रिया नहीं आई. स्पेन और भारत की प्रतिक्रियाओं में फ़र्क दरअसल एक उदारवादी समाज के फ़र्क को दिखाता है.
कई ग्लोबल संस्थानों के पैरामीटर्स ने साबित किया है कि हमारा देश कुछ मामलों में पीछे है. भारत एक उभरती हुई अर्थव्यवस्था है. एक विकासशील देश, जिसे विकसित देश बनने में समय लगेगा. माना कि भारत की जी़डीपी दर ऊंची है, लेकिन केवल जीडीपी ही विकास और ग्रोथ का पैमाना नहीं है. ह्यूमन डेवलेपमेंट इंडेक्स पर भारत का प्रदर्शन निम्न स्तर का है. देश में भ्रष्टाचार, गरीबी, आबादी और अशिक्षा का स्तर बेहद ऊंचा है.
देश के सबसे अमीर एक प्रतिशत लोगों के पास देश के 58.4 प्रतिशत संसाधन मौजूद हैं. भारत में गरीबी रेखा के नीचे गुज़र करने वाले लोगों की संख्या विश्व में सबसे ज़्यादा है. देश में किसानों के हालात खस्ताहाल हैं. देश में 93 लाख से ज़्यादा लोग कुपोषण का शिकार हैं. धार्मिक हिंसा के मामले में भारत का चौथा स्थान है, वहीं खुशी के पैमाने पर हमारा नंबर 144 है. आंकड़े साफ़ ज़ाहिर करते हैं कि अपने देश में कमियां तो हैं और उनसे मुंह मोड़ लेना कहां तक उचित है?
Snapchat को अनइंस्टाल करने से अगर देश की गरीबी दूर होती तो सबसे पहले मैं इस ऐप को अनइंस्टाल करता, लेकिन साफ़ है कि ऐसा कुछ होने वाला है. एक कथित बयान पर इतना रोष प्रकट करना साबित करता है कि हम खबर की तह तक पहुंचने की कोशिश ही नहीं करना चाहते. हमें नतीजे तक पहुंच कर उन पर प्रतिक्रिया देने की जल्दी होती है. चीज़ों का विश्लेषण करने की हमारी क्षमता हम खोते जा रहे हैं. किसी अहम मुद्दे पर आक्रोश ज़ाहिर करना फ़िर भी समझ आता है लेकिन किसी शख़्स के संदिग्ध बयान पर आरामतलबी वाली देशभक्ति, साबित करती है कि हम तुरंत प्रतिक्रिया में माहिर होते जा रहे है जो किसी भी लिहाज से देश के लिए सही नहीं है.