लॉकडाउन के चलते एक महीने से ज़्यादा समय से देश में आर्थिक गतिविधियां ठप पड़ी हैं. इसके चलते अर्थव्यवस्था को भारी नुक़सान हुआ है. सरकारी खज़ाने पर इसका सीधा असर पड़ा है. ऐसे में हमारे लिए ‘लॉकडाउन टैक्स’ को जान लेना बेहतर होगा.
इसे ऐसे समझिए कि लॉकडाउन के दौरान जो राजस्व का नुक़सान हुआ है, उसकी भरपाई करने के लिए कुछ राज्य सरकारें इस टैक्स को लगाएंगी. राजस्व संग्रह में भारी कमी आई है, ऐसे में करों में भी उसी अनुपात में बढ़ोतरी होगी.
कोरोना वायरस को फैलने से रोकने के लिए राज्यों की सीमाओं को सील कर दिया गया है. इस वजह से पड़ोसी राज्यों से माल की तस्करी का ख़तरा कम हो गया है.
हाल ही में दिल्ली सरकार ने शराब की एमआरपी पर 70 फ़ीसदी ज़्यादा टैक्स वसूलने का फ़ैसला किया है. ये भी एक तरह से लॉकडाउन फ़ीस ही है. टैक्स में बढ़ोतरी राजस्व में हुए नुक़सान की भरपाई करने का ही एक तरीका है. शराब की डिमांड बहुत ज़्यादा है और लोग इसके लिए बढ़ी हुई कीमतें चुकाने को भी तैयार हैं.
ऐसा ही कदम आंध्रप्रदेश की सरकार ने भी उठाया है. यहां शराब पर 25 फ़ीसदी ज़्यादा टैक्स लगाया गया, जिसके बाद मंगलवार को इसमें 50 फ़ीसदी का और इज़ाफ़ा कर दिया गया. अब राज्य सरकार 75 फ़ीसदी टैक्स वसूल कर रही है. दरअसल, राज्य के सभी 3,468 रिटेल आउटलेट सरकार के स्वामित्व वाले हैं और इसलिए, इससे प्रति वर्ष 9,000 करोड़ रुपये का अतिरिक्त राजस्व प्राप्त होगा.
शराब के साथ ही राष्ट्रीय राजधानी में फ़्यूल की कीमतों में भी बढ़ोतरी की गई है. मंगलवार को पेट्रोल के दाम में 1.67 लीटर और डीजल में 7.10 प्रति लीटर की बढ़ोतरी हुई.
एक तरफ पेट्रोल पर मूल्य वर्धित कर (VAT) 27% से बढ़ाकर 30% कर दिया गया. दूसरी ओर डीजल पर वैट 16.75% से बढ़ाकर 30% कर दिया गया. इससे सालाना 900 करोड़ रुपये का लाभ होने का अनुमान है.
कुछ एरिया और भी हैं, जहां सरकारें टैक्स बढ़ोतरी पर विचार कर रही हैं. एंटरटेनमेंट टैक्स, म्यूनिसिपल टैक्स, स्थानीय पंचायत सेस, कार और प्रॉपर्टी पर रजिस्ट्रेशन चार्ज आदि में ज़रूरत पड़ने पर बढ़ोतरी की जा सकती है.