गोरखपुर के सांसद योगी आदित्यनाथ यूपी के मुख्यमंत्री बन चुके हैं. कल से ही चैनल्स वाले योगी जी के जीवन की कहानियां नॉन-स्टॉप चलाये जा रहे हैं. पर हम आपको कुछ अलग बताना चाहते हैं. हम बताना चाहते हैं उस पीठ के बारे में, जहां योगीजी महंत हैं. जी हां, हम बात कर रहे हैं गोरखपीठ के बारे में. सौ साल पुराने गौरवशाली इतिहास वाले इस पीठ का नाम पूरे पूर्वांचल में मशहूर है. बताया जाता है कि इसकी स्थापना 11वीं शताब्दी में गोरक्षनाथ जी ने की थी. गोरक्षनाथ शिवपूजक योगी थे. ये भी कहा जाता है कि गोरक्षनाथ त्रिदेवों के अकेले अवतार थे. उन्होंने अपने गुरुओं मत्स्येंद्रनाथ से ज़िद करके इस मठ की स्थापना करवाई थी.
इसी के साथ पूरे देश में नाथ परम्परा की शुरुआत भी हुई थी. मकर सक्रांति के अवसर पर यहां हर धर्म के लोगों को खिचड़ी बांटी जाती है, जो पीठ के समानाधिकारवादी होने का सूचक है. ये परम्परा सैकड़ों सालों से चली आ रही है. इसी शक्तिपीठ के नाम पर जिले का नाम गोरखपुर रखा गया था. इसको लेकर भी कई कहानियां प्रचलित हैं. गोरखनाथ जी ने अपनी पुस्तकों में सत्य की खोज और आध्यामिक ज्ञान को ही जीवन का मूल मन्त्र बताया है. ऐसा अनुमान लगाया जाता है कि बाबा गोरखनाथ जी द्वारा लिखी पहली किताब ‘लय योग’ है. नाथ परम्परा में उन्हें सर्वश्रेष्ठ योगी माना जाता है और उनके नाम पर कई ट्रस्ट्स और मठों की स्थापना की गई है.
आपको बता दें कि गोरक्षपीठ का राजनीति से गहरा जुड़ाव है. इस पवित्र धर्म स्थान को राजनीति से जोड़ा महंत दिग्विजयनाथ ने. आपकी नज़र में अगर योगी आदित्यनाथ कट्टर हैं, तो वो महंत दिग्विजयनाथ की तुलना में कुछ नहीं हैं. महंत दिग्विजयनाथ की कट्टरता का अंदाज़ा आप इस बात से लगा सकते हैं कि एक बार लोकसभा चुनाव के भाषण में उन्होंने कहा था कि अगर कोई मुस्लिम मुझे वोट करता है, तो बैलेट-बॉक्स को गंगाजल से धुलवाना पड़ेगा. अपनी इस कट्टरता की वजह से महंत दिग्विजयनाथ जी चुनाव नहीं जीते, मगर कहा करते थे कि अगर किसी हिन्दू का एक बूंद भी खून गिरा, तो राप्ती नदी मुस्लिमों के खून से लाल हो जाएगी. उनके जाने के बाद उनके शिष्य महंत अवैद्यनाथ राजनीति में उतरे और बीजेपी के टिकट से चुनाव जीत कर लोकसभा पहुंच गये.
अवैद्यनाथ अपने गुरु महंत दिग्विजयनाथ और अपने शिष्य योगी आदित्यनाथ की तुलना में थोड़े नर्म थे. वो आखरी सांस तक राममंदिर के लिए और हिन्दुओं के अधिकारों के लिए लड़ते रहे. उन्होंने 1995 में आदित्यनाथ को अपना उत्तराधिकारी घोषित कर दिया और स्वास्थ्य कारणों से 1998 में सन्यास ले लिया. अपने सन्यास के बाद उन्होंने अपने शिष्य योगी आदित्यनाथ को बीजेपी से टिकट दिलवा दिया. योगी आदित्यनाथ महज सात हज़ार वोटों से चुनाव जीते और देश के सबसे कम उम्र के सांसद बन गये.
वर्ष 2014 में महंत अवैद्यनाथ पंचतत्व में विलीन हो गये और योगी आदित्यनाथ को गोरक्षपीठ का महंत घोषित कर दिया. इस तरह पीठ को नया महंत मिल गया. अब देखते हैं आने वाले दिनों में पीठ का कार्यभार कौन संभालता है, क्योंकि मुख्यमंत्री महंत जी राज्य संभालेंगे कि मठ.