आज कई जगह ये ख़बर छपी है कि गुजरात के इस स्कूल में नौवीं कक्षा की आंतरिक परीक्षा में ये सवाल पूछा गया कि महात्मा गांधी ने आत्महत्या कैसे की थी? 

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लेकिन प्रशनपत्र में ये सवाल इसत रह नहीं छपा था. असल सवाल था- महात्मा गांधी ने आत्महत्या करने के लिए क्या किया था? (गांधीजी अपघात करवा माटे शु करवु?) गुज़राती से अन्य भाषा में अनुवाद करने की वजह ये ग़लती हुई है. सवाल में किसी प्रकार की त्रुटी नहीं थी. महात्मा गांधी ने बचपन में आत्महत्या की कोशिश की थी. यह बात उन्होंने अपनी जीवनी में लिखी है. 

समाचार एजेंसी पीटीआई के हवाले से बताया कि स्व-वित्तपोषित स्कूलों के एक समूह और अनुदान प्राप्त करने वालों ने शनिवार को आयोजित आंतरिक मूल्यांकन परीक्षा में इस प्रश्न को शामिल किया था. प्रश्नपत्र को विद्याल के संचालक अधिकारी ने बनाया था. इसकी जांच करने की भी बात की जा रही है. 

महात्मा गांधी को बचपन में बीड़ी पीने की लत लग गई. इसके लिए वो नौकर की जेब से पैसे भी चुराने लगे थे. ऊब में आकर उन्होंने आत्महत्या करने की कोशिश भी की, इसके लिए उन्होंने धतूरे की बीज भी खाए थे. 

इस घटना के बारे में वो अपने शब्दों में लिखते हैं, ‘अपनी पराधीनता हमें अखरने लगी. हमें दुख इस बात का था कि बड़ों की आज्ञा के बिना हम कुछ भी नहीं कर सकते थे. हम ऊब गए और हमने आत्महत्या करने का निश्चय कर लिया. हमने सुना कि धतूरे के बीज खाने से मृत्यु होती है. हम जंगल में जाकर बीज ले आए. शाम का समय तय किया. केदारनाथजी के मंदिर की दीपमाला में घी चढ़ाया, दर्शन किए और एकांत खोज लिया पर जहर खाने की हिम्मत न हुई. अगर तुरंत ही मृत्यु न हुई तो क्या होगा? मरने से लाभ क्या? क्यों न पराधीनता ही सह ली जाए? फिर भी दो-चार बीज खाए। अधिक खाने की हिम्मत ही न पड़ी. दोनों मौत से डरे और यह निश्चय किया कि रामजी के मंदिर में जाकर दर्शन करके शांत हो जाएं और आत्महत्या की बात भूल जाएं. ‘