अब तक जो जोक था, वो सच हो चुका है. जियो इंस्टिट्यूट खुलने वाला है, अब जियो के कॉलेज में पढ़ाई होगी.

देश के मानव संसाधन एवं विकास मंत्री ने एक ट्वीट किया. ट्वीट में देश की उन युनिवर्सिटीज़ का जिक्र था जिन्हें ‘इंस्टिट्यूशन ऑफ़ एमिनेंस’ का दर्जा प्राप्त होगा. इसे एक तरह का विशेषाधिकार समझिए. ये कॉलेज पूरी तरह से स्वायत्त संस्थान होंगे. इन पर राज्य सरकार, केंद्र सरकार, UGC आदी के नियमों का ज़ोर नहीं चलेगा. इनके ख़ुद के नियम होंगे, ये अपने हिसाब से फ़ी सट्रक्चर तय करेंगे, बस कुछ ज़रूरी नियमों का पालन करना होगा.

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इसके लिए 20 कॉलेज का चयन होना था. 10 सरकारी और 10 निजी. चयनित सरकारी कॉलेजों को अलग से सरकार की ओर फंड मुहैएया कराया जाएगा, ये सुविधा निजी कॉलेजों के लिए नहीं होगी.

कॉलेजों के चयन के लिए 8 सदस्यों की एक टीम का गठन हुआ. पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त एन. गोपालस्वामी को इस टीम का अध्यक्ष बनाया गया.

जहां इस टीम को 20 कॉलेज का चयन करना था, उसने सिर्फ़ 6 कॉलेज को चुना. 3 सरकारी और 3 निजी. बाकी कॉलेज को समिति ने इस लिस्ट में रखने के लायक नहीं समझा. 6 कॉलेज की इस सूचि एक कॉलेज ऐसा भी था, जो अभी वास्तविक तो छोड़िए ढंग से काग़ज़ों पर भी Exist नहीं करता. हम बात कर रहे हैं ‘जियो इंस्टिट्यूट’ की.

जियो इंस्टि्टूयट कैसे ‘इंस्टिट्यूशन ऑफ एमिनेंस’ का दर्जा प्राप्त कर गया, इस सवाल पर मंत्रालय का जवाब था कि जियो इंस्टिट्यूट चयन के लिए प्रास्तिवत सभी मानकों पर खरा उतर रहा था.

वो मानक क्या थे?

ज़मीन की उपलब्धता,

एक अनुभवी और उच्च शिक्षित कोर टीम,

फंडिंग और

एक मानक योजना

इसका मोटा-मोटा मतलब यही था कि ज़मीन और पैसा भरपूर मात्रा में होना चाहिए. तो क्या ये पैसा और ज़मीन बाकि निजी या सरकारी कॉलेज के पास नहीं थे?

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सरकारी कॉलेज इस सूचि में क्यों नहीं आ सके, इसके लिए सरकार को अलग से शर्मिंदा होना चाहिए. निजी कॉलेज के न चुने जाने के कारण उनमें रोष है. उनका मानना है कि जहां हम एक स्थापित कॉलेज हैं, हम ज़मीन पर काम कर रहे हैं और हमारा मुक़ाबला एक ऐसे संस्थान से किया जा रहा है, जो कहीं है ही नहीं.

निजी कॉलेजों को जियो इंस्टिट्यूट के चुने जाने से परेशानी नहीं है, उनके अनुसार चयन प्रक्रिया में ख़राबी है, तभी तो एक अदृश्य संस्थान बिना कोई काम किए चुना गया. हमे इसलिए मौका नहीं दिया गया क्योंकि हमारा ट्रैक रिकॉर्ड ठीक नहीं है, दूसरी तरफ़ जियो इंस्टिट्यूट का कोई ट्रैक रिकॉर्ड ही नहीं है.

ये भी ख़बर आ रही है कि मुकेश अंबानी ख़ुद चयन समिति के सामने जियो इंस्टिट्यूट की ओर से प्रेज़ेनटेशन देने के लिए मौजूद थे.

क्या लगता है, ये ग़लती मुद्दा बनेगी या यूं ही भुला दी जाएगी?