कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने ट्विटर पर एक 18 सेकेण्ड का वीडियो पोस्ट किया. इसमें उन्होंने कहा, ‘चीन ने शस्त्रहीन भारतीय सैनिकों की हत्या करके बहुत बड़ा अपराध किया हैं. मैं पूछना चाहता हूं कि इन वीरों को बिना हथियार के ख़तरे की ओर से किसने भेजा? क्यों भेजा? कौन ज़िम्मेदार है?’
कौन ज़िम्मेदार है? pic.twitter.com/UsRSWV6mKs
— Rahul Gandhi (@RahulGandhi) June 18, 2020
ये ही सवाल कई मीडिया चैनल्स पर भी पूछा गया. जब हर तरफ़ से ये सवाल उठने लगे तो ये बताना लाज़मी हो जाता है आज जो स्थिति बनी है, उसके पीछे असल वजह क्या है. दरअसल, इस सवाल का जवाब भारत और चीन के बीच द्विपक्षीय समझौतों में निहित है.
विदेश मंत्री एस जयशंकर ने इस पर जवाब भी दिया है. उन्होंने कहा, ‘सीमा पर तैनात सभी जवान हथियार लेकर चलते हैं. ख़ासतौर से पोस्ट छोड़ते समय भी उनके पास हथियार होते हैं. 15 जून को गलवान में तैनात जवानों के पास भी हथियार थे.’

इसी के साथ विदेश मंत्री ने द्विपक्षीय समझौतों का उल्लेख किया जो भारतीय और चीनी सैनिकों को हथियारों का इस्तेमाल करने से रोकता है.
हालांकि, सोशल मीडिया पर लोग विदेश मंत्री के जवाब से संतुष्ट नज़र नहीं आ रहे हैं. उनका कहना है कि अगर हथियार इस्तेमाल करने ही नहीं हैं तो फिर उन्हें रखने का फ़ायदा ही क्या हुआ?
जाने-माने पत्रकार राहुल पंडिता ने ट्वीट किया, ‘ठीक है, सैनिकों के पास हथियार थे. मैं समझौतों को भी समझता हूं. लेकिन हथियार रखने का क्या मतलब अगर आप उनका इस्तेमाल नहीं कर सकते जब आपके कमांडिंग ऑफ़िसर के शरीर को कीलों और कंटीले तारों से नोंचा जा रहा था.’
Ok, so the troops were carrying arms. I understand agreements. But what is the meaning of carrying arms if you cannot even use them while your commanding officer’s flesh is getting plucked with nails and barbed wire?
— Rahul Pandita (@rahulpandita) June 18, 2020
पत्रकार आशुतोष ने भी विदेश मंत्री पर सच छिपाने का आरोप लगाया. उन्होंने ट्वीट कर सवाल किया अगर सैनिकों के पास हथियार थे तो उन्होंने आत्मरक्षा में इस्तेमाल क्यों नहीं किए. उन्होंने कहा कि राष्ट्रीय सुरक्षा पर जो सच है वो बताएं, कुछ भी छिपाएं नहीं.
नरसिम्हा राव की सरकार में हुआ समझौता
पहला समझौता 1993 में हुआ. दरअसल,1988 में तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी चीन के दौरे पर गए. इससे दोनों देशों के बीच बरसों से जमी बर्फ़ एक तरह पिघल गई. क्योंकि राजीव गांधी से पहले 1954 में जवाहरलाल नेहरू ने चीन की यात्रा की थी. तब से किसी भी प्रधानमंत्री ने चीन का दौरा नहीं किया था. जिसके बाद 1993 में भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री पीवी नरसिम्हा राव ने चीनी प्रधानमंत्री ली पेंग के साथ एलएसी पर शांति रखने के लिए समझौते पर साइन किए.

इस समझौते में ये तय हुआ कि, ‘कोई भी पक्ष न तो बल का प्रयोग करेगा और न ही वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) को पार करेगा.’
साथ ही इसमें ये भी कहा गया कि, ‘अगर दोनों पक्षों के सैनिक एलएसी को पार करते हैं तो दूसरी ओर से आगाह किए जाने के बाद वो तुरंत अपने क्षेत्र में चले जाएंगे.’
1996 में फिर समझौता हुआ
1993 में हुए समझौते को दोनों देशों ने “पर्याप्त नहीं” माना था. ऐसे में एक और समझौता किया गया. चीनी राष्ट्रपति ज़ियांग जेमिन और तब के भारतीय प्रधानमंत्री एचडी देवेगौड़ा ने 1996 में एक नए समझौते पर साइन किया. इसमें कहा गया कि अगर किसी मतभेद की वजह से दोनों ओर के सैनिक आमने-सामने आते हैं तो वो संयम रखेंगे. विवाद को रोकने के लिए ज़रूरी क़दम उठाएंगे.
लेकिन इस समझौते का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा, जो ये बताता कि भारतीय सैनिक निहत्थे क्यों गए वो आर्टिकल 5 में हैं. इसमें ज़िक्र है कि एलएसी के पास दो किलोमीटर के एरिया में कोई फ़ायर नहीं होगा, कोई पक्ष विस्फ़ोट नहीं करेगा और न ही ख़तरनाक रसायनों का उपयोग करेगा.

इस वजह से ही फ़ायरआर्म्स का सीमा पर इस्तेमाल नहीं होता है. दिलचस्प बात ये है कि दोनों ही समझौते एक तरह से कांग्रेस की सरकार में हुए. नरसिम्हा राव तो कांग्रेसी नेता थे ही और एचडी देवगौड़ा की सरकार को भी कांग्रेस का बाहर से समर्थन था.
बता दें, भारत-चीन के झड़प के जो अब तक वीडियो आते रहे हैं, वो भी सिर्फ़ धक्का-मुक्की और बहस के ही होते हैं. हालांकि, गलवान वैली की घटना के बाद LAC के साथ भारतीय सैनिकों के लिए SOP में बदलाव हो सकता है. कुछ रिपोर्टेस में कहा गया है कि सैनिकों पर गंभीर रूप से हमला होने की स्थिति में सरकार को उन्हें फ़ायरआर्म्स के इस्तेमाल की अनुमति देनी चाहिए.