भारतीय ‘गोरे’, ‘साफ़’, ‘उजले’ रंग के कितने ज़्यादा कायल हैं, ये हम सभी जानते हैं. आज के दौर में भी ज़्यादातर घरों में बहुएं शिक्षा, नौकरी के आधार पर नहीं, रंग के आधार पर पसंद की जाती है.
कई लड़कियां, तथाकथित ‘शुभचिंतकों’ के ताने सुनते-सुनते ही बड़ी होती हैं. अलग-अलग तरह की किताबों से सरोकार हो न हो, अलग-अलग तरह के उबटनों से उनकी दोस्ती करवा दी जाती है. लोग ये नहीं समझते कि जो जन्म से जैसा है, उसे घिसकर बदलना नामुमकिन है
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काले से गोरे होने की उम्मीदों को हवा देते हैं फ़ेयरनेस क्रीम्स के विज्ञापन, जो ‘6 हफ़्तों में गोरा बनाने की गैरंटी देते हैं.’
हमारे यहां लड़कियों को ही नहीं, लड़कों को भी उनके सांवलेपन के लिए बातें सुननी पड़ती हैं. ‘शक़्ल अच्छी नहीं है, सरकारी नौकरी ढूंढ ,वरना कोई शादी नहीं करेगा’ टाइप बातें.
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सोमवार को सुबह, प्रेमश्री ने अपने पति सत्यवीर सिंह की हत्या कर दी. उनकी शादी को 2 साल हुए थे और उनकी 5 महीने की एक बच्ची है.
सत्यवीर के भाई हरवीर के शब्दों में,
मेरी भाभी को भैया का रंग पसंद नहीं था. वो हमेशा भैया के रंग पर टिप्पणी करती पर हमें नहीं पता था कि वो इतना बड़ा कदम उठा लेगी.
दुनिया कहां से कहां पहुंच रही है और हमारे समाज में आज भी लोग रंग से आगे नहींं बढ़ पा रहे हैं.