इंसान दिन-रात कड़ी मेहनत करके लोग दो चार पैसा जोड़कर उसे बैंक में जमा करता है ताकि ज़रूरत के वक़्त वो पैसा काम आ सके. लेकिन अब ग्राहकों को अपने इसी पैसे को निकालने के लिए टैक्स चुकाना पड़ सकता है.
पिछले कुछ सालों की बात करें, तो सरकार लगातार लोगों को कम से कम नकद लेन-देन की सलाह दे रही है. सरकार ने नोटबंदी के बाद डिजिटल लेन-देन को बढ़ावा देने की कई कोशिशें भी की. बावजूद इसके लोग अब भी नकद लेन-देन को ही प्राथमिकता दे रहे हैं.
टाइम्स ऑफ़ इंडिया के मुताबिक़, सरकार जल्द ही 1 साल में 10 लाख रुपए से ज़्यादा की निकासी करने वाले लोगों पर टैक्स लगाने पर विचार कर रही है. ताकि कालेधन की जमाख़ोरी पर अंकुश लगाया जा सके.
मतलब ये कि अब ग्राहकों को अपने ही पैसे निकालने पर सरकार को टैक्स चुकाना पड़ेगा. ये कहां का न्याय है भाई?
रिपोर्ट के मुताबिक़, सरकार इसके ज़रिये कालेधन के जमाख़ोरों की पहचान आसानी से कर सकती है. इसके लिए सरकार ग्राहकों के आधार वेरिफ़िकेशन को अनिवार्य करने के प्रस्ताव पर भी विचार कर रही है. ताकि नगद लेन-देन की सही-सही जानकारी उपलब्ध हो सके. गड़बड़ी होने पर टैक्स रिटर्न के समय इसका आसानी से मिलान किया जा सकेगा.
वर्तमान में बैंक से 50 हज़ार रुपए से ज़्यादा की रकम जमा करने या निकालने पर पैन कार्ड देना ज़रूरी होता है. अगर सामान्य ग्राहक बैंक से 5 लाख रुपए की निकासी करता है, तो उसे आधार की ज़रूरत नहीं पड़ती लेकिन अब 10 लाख रुपए से ज़्यादा की निकासी पर आधार नंबर को अनिवार्य किया जा सकता है.
पिछले कुछ सालों में मनरेगा के लाभार्थियों के अकाउंट में भारी मात्रा में कालाधन जमा करने की खबरें भी आई थीं. इस लिए सिर्फ़ मनरेगा के लाभार्थियों को ही नकद निकासी के लिए आधार प्रमाणीकरण की ज़रूरत पड़ती है.
आगामी 5 जुलाई को वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण मोदी सरकार का पहला आम बजट को पेश करेंगी. बजट में इस नियम का ऐलान भी किया जा सकता है.
अब ये मानकर चलें कि मोदी सरकार ने कालेधन के जमाख़ोरों पर कड़ी निगरानी शुरू कर दी है.