बीते दिनों दिवाली के मौके पर वाराणसी में कुछ मुस्लिम महिलाओं ने भगवान राम की आरती उतार का हिन्दू-मुस्लिम भाई चारे का सन्देश दिया था. मगर प्रभावशाली इस्लामिक धर्मशाला, दारुल उलूम देवबंद ने इन महिलाओं के ख़िलाफ़ फ़तवा जारी कर दिया.

इस फ़तवे में कहा गया है कि प्रभु श्री राम की पूजा-आरती करने वाली मुस्लिम महिलाएं अब मुसलमान नहीं रहीं. दारुल उलूम देवबंद जकरिया के मौलाना मुफ़्ती शरीफ़ खान ने फ़तवा जारी करते हुए कहा कि वाराणसी में भगवान राम की तस्वीर के सामने आरती करना इस्लाम के ख़िलाफ़ है. ऐसा करने वाला मुसलमान नहीं रहता और वो ईमान से खारिज हो जाता है. मौलाना के मुताबिक इस्लाम में अल्लाह के सिवा किसी और की इबादत करने की इजाज़त नहीं है.
If anyone worships any god except Allah they don’t remain Muslim-Ulema,Darul Uloom on Muslim women who performed aarti on Diwali in Varanasi pic.twitter.com/IgaLNcenGo
— ANI UP (@ANINewsUP) October 21, 2017
मुस्लिम महिलाओं के एक समूह द्वारा दीवाली की पूर्व संध्या पर वाराणसी में आयोजित एक समारोह में भगवान राम की फ़ोटो के सामने दिये जलाये और आरती कर प्रार्थना की थी जिसके बाद ये फ़तवा जारी किया गया. बता दें कि यह कार्यक्रम मुस्लिम महिला फाउंडेशन और विशाल भारत संस्थान द्वारा सांप्रदायिक सौहार्द को बढ़ावा देने के लिए आयोजित किया गया था.
इन मुस्लिम महिलाओं का कहना है, ‘हम 2006 से लगातार प्रभु राम की आरती करती आ रही हैं, जिसे लेकर हमें धमकी और फ़तवे मिलते हैं. हम हिंदुओं के साथ मिलकर भारत की संस्कृति के अनुरूप पूजा करते हैं.’

इसके साथ ही ग्रुप लीडर नाज़नीन अंसारी ने समारोह के दौरान टिप्पणी की थी, ‘श्रीराम हमारे पूर्वज हैं. हम अपने नाम और धर्म बदल सकते हैं, लेकिन हम अपने पूर्वजों को कैसे बदल सकते हैं? इसके साथ ही उन्होंने कहा कि भगवान राम की प्रशंसा में गीत गाना न केवल हिंदुओं और मुसलमानों के बीच के बैर की खाई को कम करता है, बल्कि ये इस्लाम की उदारता को भी दर्शाता है.
अगर गौर करें तो पिछले कुछ दिनों से दारुल उलूम देवबंद फ़तवा जारी करने में आगे रहा है. इससे पहले दारुल उलूम ने एक फ़तवा जारी कर मुस्लिम महिलाओं और पुरुषों को सोशल मीडिया के किसी भी प्लेटफॉर्म पर खुद की या परिवार की फ़ोटोज़ को अपलोड न करने की हिदायत दी थी और इसे ग़ैर-इस्लामिक करार दिया था. इस महीने की शुरुआत में दारुल उलूम देवबंद ने मुस्लिम महिलाओं को अपनी आइब्रो बनवाने और अपने बाल काटने के खिलाफ निषिद्ध किया था साथ ही इस तरह की सभी गतिविधियों को “ग़ैर-इस्लामिक” कहा.