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ये है दुनिया की असल हक़ीक़त. एक तरफ़ कई लोग रोज़-रोज़, कभी-कभी तो तीनों टाइम के खाने में कुछ न कुछ ज़रूर फेंक देते हैं, वहीं दूसरी तरफ़ दुनिया का एक बहुत बड़ा वर्ग भूखे पेट ही सोने को मजबूर है.


UN की रिपोर्ट के मुताबिक, पिछले साल दुनिया के 53 देशों में लगभग 113 मिलियन लोग युद्ध, प्राकृतिक आपदा की वजह से ‘Acute Hunger’ से जूझ रहे थे. इनमें सबसे ज़्यादा तादाद अफ़्रीका के लोगों की है.  

Borgen Project

रिपोर्ट के मुताबिक, यमन, डेमोक्रेटिक रिपब्लिक ऑफ़ कॉन्गो, अफ़ग़ानिस्तान और सिरिया के लोगों पर सूखे और भूखमरी का सबसे ज़्यादा ख़तरा है.


जिन देशों में युद्ध के हालात हैं वहां के लोग कुपोषण और भुखमरी के शिकार हैं. सूखे की कगार पर खड़े ज़्यादातर देशों के लोग खेती-बाड़ी करके अपना गुज़ारा चलाते हैं.  

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UN की रिपोर्ट में ये भी कहा गया कि जिन देशों ने रिफ़्यूजीज़ का स्वागत किया है(बांग्लादेश) या जहां युद्ध चल रहा है(सीरिया), उन पर भी काफ़ी दबाव पड़ा है.


वेनेज़ुएला की हालत इतनी ख़राब है कि वहां इस साल ‘Food Emergency’ घोषित की जा सकती है. यहां चल रहे Political Crisis का ख़ामियाज़ा आम जनता भुगत रही है.  

Japan Times

इस रिपोर्ट में भारत से जुड़ी कोई बात हमें नज़र नहीं आई. हालांकि इसका मतलब ये नहीं है कि हमारे देश ने कुपोषण पर जीत हासिल कर ली है. कुछ लोग खाना फेंकने के आदी होते हैं. वो चाहे तो पहली बार कम लेकर दूसरी बार खाना ले सकते हैं पर अधिक लेकर फेंकना उन्हें ज़्यादा सही लगता है. रेस्त्रां, दफ़्तर में ऐसा कई बार होते दिखता है. घर पर तो मां डांट-डपट कर सही आदत डलवाती है.


TCS अपने कैंटीन के बाहर कितना खाना वेस्ट हुआ, ये बोर्ड पर लिखता है ताकी लोगों को शर्म आए. शादियों में खाने की बर्बादी न हो इसलिए कई संस्थाएं भी काम करती हैं, पर जब तक हम अपनी आदतें नहीं सुधारेंगे, तब तक कुछ नहीं होगा.