राजीव गांधी, वो शख़्स, जिसने केवल 40 वर्ष की आयु में भारत के प्रधानमंत्री पद की बागडोर अपने हाथों में ली थी. देश का दुर्भाग्य ही रहा ये कि देश के सबसे युवा प्रधानमंत्री ने जितनी कम उम्र में इस पर को संभाला था और देश के विकास का सपना देखा था, उतनी ही कम उम्र में उनको मार दिया गया. राजीव गांधी एक ऐसे प्रधानमंत्री थे, जिसने अपनी दूरदर्शिता से देश और देशवासियों की ज़रूरतों को काफ़ी पहले ही भांप लिया था.

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वैसे तो राजीव गांधी एक प्रोफ़ेशनल पायलट थे और एयर इंडिया के लिए हवाई जहाज़ उड़ाते थे, लेकिन जब उनके बड़े भाई संजय गांधी की मौत हुई, तो पारिवारिक और राजनितिक दबाव के चलते उन्होंने राजनीति में कदम रखा. वो मां इंदिरा गांधी के साथ राजनीति की राह पर चल पड़े. मगर जब 1984 के दंगों के बाद तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या कर दी गई, तो देश में हर तरफ निराशा का माहौल हो गया. उस वक़्त कांग्रेस ने राजीव गांधी को पार्टी का मुख्य चेहरा बना कर लोकसभा चुनाव लड़ा और एक ऐतिहासिक जीत हासिल की, जिसमें कांग्रेस को 533 में से 413 सीटों पर जीत मिली. इस जीत के साथ ही राजीव गांधी देश के सातवें और सबसे युवा प्रधानमंत्री बने. राजीव गांधी एक दूरदर्शी नेता थे और 1984 से 1989 तक पांच साल के अपने कार्यकाल में उन्होंने देश के लिए कई बड़े फ़ैसले लिए.

राजीव गांधी द्वारा लिए गए इन फ़ैसलों में कुछ को बहुत सराहा गया, तो कुछ की आज भी आलेचना की जाती है. ऐसे फ़ैसलों में शाहबानो केस और अयोध्या मामला आज भी विवादास्पद हैं. इतना ही नहीं, बोफ़ोर्स केस भी राजीव गांधी के कार्यकाल में हुआ था, जिसकी वजह से आज भी विपक्ष कांग्रेस की आलोचना करते नहीं थकता.

मगर आज हम राजीव गांधी द्वारा देशहित में लिए गए 5 अहम फ़ैसलों के बारे में बात करेंगे:

1. अर्थव्यवस्था के सेक्टर्स को खोला राजीव गांधी ने

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राजीव गांधी एक दूरदर्शी नेता थे और शायद यही वजह थी कि उन्होंने अपने कार्यकाल में कई सेक्टर्स पर सरकार के नियंत्रण को ख़त्म करने का प्रस्ताव रखा. उन्होंने देश में इनकम और कॉर्पोरेट टैक्स को कम किया. कई क्षेत्रों में लाइसेंस सिस्टम बेहद आसान कराया. इतना ही नहीं, उन्होंने कंप्यूटर, ड्रग और टेक्सटाइल क्षेत्रों पर से सरकारी नियंत्रण ख़त्म करने पर ज़ोर दिया. इसके अलावा राजीव गांधी के कार्यकाल के दौरान कस्टम ड्यूटी भी कम की गई और देश में निवेशकों को बढ़ावा दिया. उनके इन्हीं प्रयासों की वजह से देश की शिथिल अर्थव्यवस्था को पंख मिले थे. मशहूर इतिहासकार रामचंद्र गुहा ने अपनी किताब ‘इंडिया आफ्टर गांधी’ में राजीव गांधी के कुछ विचारों को लिखा है, ‘भारत निरंतर नियंत्रण लागू करने के एक बुरे चक्र में फंसा हुआ है. और इसी नियंत्रण से भ्रष्टाचार और कामों में देरी बढ़ती है. हमें इसको जड़ से ख़त्म करना होगा.’

2. दिसंबर 1988 में उनका चीन दौरा ऐतिहासिक था

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राजीव गांधी ने 1988 में चीन की यात्रा की थी, जो 1954 के बाद इस तरह की पहली यात्रा थी. ये यात्रा पड़ोसी देश चीन के साथ रिश्ते मज़बूत करने के लिए भारतीय राजनीति की एक ऐतिहासिक पहल थी. इस दौरे के बाद से चीन के साथ भारत के संबंध मज़बूत और सरल होने में बहुत मदद मिली. इस यात्रा के बाद भारत ने सीमा से जुड़े विवादों के लिए चीन के साथ मिलकर ज्वाइंट वर्किंग कमेटी बनाई, जो दोनों देशों के बीच शांति कायम करने की दिशा में एक ठोस कदम थी. राजीव गांधी और चीनी प्रीमियर डेंग शियोपिंग के आपसी सम्बन्ध बहुत पक्के थे. कहा जाता है कि डेंग कभी दूसरे देश के किसी नेता से ज़्यादा लंबी मुलाकात नहीं करते थे, लेकिन होने राजीव गांधी के साथ पूरे 90 मिनट बातचीत की और ये भी कहा, ‘तुम युवा हो, तुम्हीं भविष्य हो’.

3. पंचायती राज व्यवस्था को लागू कराने में उनका अहम योगदान भूला नहीं जा सकता

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राजीव गांधी हमेशा से ही लोगों को पॉवर देने के पक्षधर थे और वो ‘पावर टू द पीपल’ में विश्वास रखते थे. इसी सोच के कारण उन्होंने पंचायती राज व्यवस्था को लागू करवाने की दिशा में कदम बढ़ाकर ‘पावर टू द पीपल’ को लागू किया. 1989 में राजीव गांधी की नेतृत्व वाली कांग्रेस ने प्रस्ताव पास कराकर पंचायती राज को संवैधानिक दर्जा दिलाने की कोशिश की और वास्तविकता में 1990 के दशक में पंचायती राज के बारे में लोगों को जानकारी मिली. इतना ही नहीं, उन्होंने ही सरकारी कर्मचारियों के लिए 1989 में 5 दिन काम करने का प्रावधान भी लागू किया और गांव के बच्चों के लिए नवोदय विद्यालयों की शुरुआत करने का पूरा श्रेय राजीव गांधी को ही जाता है.

4. राजीव गांधी ने ही आईटी क्रांति का सपना देखा था

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राजीव गांधी जब भी देश की जनता को सम्बोधित करते थे, उनके भाषणों में हमेशा 21वीं सदी में प्रगति का ज़िक्र ज़रूर होता था. उनको पूरा यकीन था कि केवल तकनीक ही इन बदलावों के लिए सक्षम है. उनके कार्यकाल में टेलीकॉम और इन्फॉर्मेशन टेक्नोलॉजी सेक्टर्स में बहुत बड़े-बड़े काम करवाए गए. उस समय ही उनकी सरकार ने पूरी तरह असेंबल किए हुए मदरबोर्ड और प्रोसेसर लाने की अनुमति दी. इसकी वजह से कंप्यूटर सस्ते हुए. ऐसे ही सुधारों से नारायण मूर्ति और अजीम प्रेमजी जैसे लोगों को विश्वस्तरीय आईटी कंपनियां खोलने की प्रेरणा मिली. इसलिए राजीव को 21वीं सदी में होने वाली आईटी क्रांति को बढ़ावा देने का श्रेय भी दिया जाता है.

5. राजीव गांधी ने युवाशक्ति को पहचाना

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राजीव गांधी ने ही पहली बार वोट डालने की उम्र सीमा को 21 से घटा कर 18 साल कराया. उनके इस फ़ैसले से तत्काल प्रभाव से 5 करोड़ युवा मतदाता भारत के कुल मतदाताओं की संख्या में और बढ़ गए. हालांकि, उस वक़्त उनके इस फ़ैसले का विपक्ष ने पुरजोर विरोध किया. मगर राजीव गांधी को पता था कि अगर देश को आगे बढ़ाना है और सशक्त राष्ट्र का निर्माण करना है, तो देश के युवाओं को मतदान का अधिकार देना होगा. उनके कार्यकाल में ही चुनावों में ईवीएम मशीनों को शामिल किया गया और चुनावों में कई तरह के बड़े बदलाव भी हुए. ईवीएम मशीनों के आने से चुनावों के दौरान होने वाली गड़बड़ियों पर काफ़ी हद तक रोक लग गई. ये उन्हीं की देन है कि आज चुनावों के परिणाम पूर्ण रूप से निष्पक्ष हो गए हैं.