Chandrayaan 3: भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) द्वारा देश का सबसे महत्वकांक्षी स्पेस मिशन ‘चंद्रयान-3’ सफलतापूवर्क लॉन्च कर दिया गया है. इसरो ने 14 जुलाई को ‘चंद्रयान-3’ को सफलतापूर्वक लॉन्च किया था, जिसे चांद तक पहुंचने में करीब 42 दिन का समय लगेगा. चंद्रयान-3 मिशन के अंतर्गत इसका रोबोटिक उपकरण 24 अगस्त तक चांद के शेकलटन क्रेटर हिस्से पर उतर सकता है, जहां अभी तक किसी भी देश का कोई अभियान नहीं पहुंचा है. इसीलिए भारत समेत पूरी दुनिया की नज़र इस मिशन पर टिकी हैं.

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भारत के सबसे महत्वाकांक्षी ‘मिशन चंद्रयान’ से जुड़े हर व्यक्ति ने देश को गौरवान्वित करने का काम किया है. वैज्ञानिकों ने दिन रात मेहनत करके इस मिशन को सफल बनाने में अहम भूमिका निभाई है. लेकिन इस मिशन से जुड़े बिहार के लाल ‘अमिताभ और आशुतोष’ की कहानी बेहद इंटरेस्टिंग है. हम आपको इनकी कहानी इसलिए भी बताने जा रहे हैं क्योंकि इन दोनों को इस मुक़ाम तक पहुंचने के लिए कई तरह की मुश्क़िलों का सामना करना पड़ा था.

कौन हैं अमिताभ कुमार?

चंद्रयान-3 की सफलतापर्वक लॉन्चिंग में बिहार के लाल अमिताभ कुमार (Amitabh Kumar) की अहम भूमिका रही गई. उन्होंने Chandrayaan 3 मिशन में ऑपरेशन डायरेक्टर की भूमिका निभाई थी. बिहार के समस्तीपुर ज़िले के रहने वाले अमिताभ ISRO में डिप्टी डायरेक्टर के पद पर कार्यरत हैं. उन्हीं की टीम की देखरेख में ‘चंद्रयान 3’ चंद्रमा की सतह पर लैंड करेगा.

अमिताभ कुमार की उपलब्धि यहीं ख़त्म नहीं होती. साल 2019 में उन्होंने ‘चंद्रयान 2’ में डिप्टी प्रोजेक्ट डायरेक्टर और ऑपरेशन डायरेक्टर की भूमिका निभाई थी. जबकि ‘चंद्रयान 1’ के दौरान अमिताभ ने प्रोजेक्ट मैनेजर के तौर पर काम किया था. उन्हें बचपन से ही इलेक्ट्रॉनिक चीज़ों का बेहद शौक था. प्रारंभिक शिक्षा गांव के सरकारी स्कूल से पूरी करने के बाद 1989 में पटना के एएन कालेज से इलेक्ट्रॉनिक्स से MSc की. इसके बाद बीआइटी मेसरा से M.Tech किया. आख़िरकार साल 2002 में उन्होंने ISRO जॉइन किया.

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कौन हैं आशुतोष कुमार?

इस मिशन में शामिल बिहार के लाल आशुतोष कुमार (Ashutosh Kumar) का ज़िक्र हम इसलिए करने जा रहे हैं क्योंकि उन्होंने इसी साल जनवरी में ‘सहायक वैज्ञानिक’ के तौर पर इसरो (ISRO) जॉइन किया था और महज 6 महीने में ही उन्हें ‘चंद्रयान-3’ में शामिल होने का मौका मिल गया. इस तरह से आशुतोष ने ‘मिशन चंद्रयान’ में शामिल हो कर बिहारवासियों का सिर गर्व से ऊंचा करने का काम किया है.

बिहार के पूर्णिया ज़िले के रहने वाले आशुतोष बेहद ग़रीब परिवार से ताल्लुक रखते हैं. उन्होंने मैट्रिक तक की शिक्षा पूर्णिया के थाना चौक स्थित सरस्वती विधा मंदिर से की है. इसके बाद 12वीं तक की शिक्षा पूर्णिया के ज़िला स्कूल से पूरी की, जबकि ओडिशा के KIIT यूनिवर्सिटी में B.Tech में किया. कालेज के पढाई का खर्च निकालने के लिए उसने छात्रों को ट्यूशन देते थे. इसी तरह दिन रात मेहनत के बाद आशुतोष ने मैकेनिकल इंजीनियरिंग में फर्स्ट क्लास से पास किया और इसके बाद ISRO का एग्जाम दिया और सेलेक्ट हो गए.

आशुतोष के पिता रविंद्र कुमार सिंह पेशे से ऐडवोकेट हैं, लेकिन कमाई इतनी नहीं है कि 5 बच्चों को अच्छी पढ़ाई दिला सकें. कोर्ट परिसर में स्टाम्प बेचकर मामूली आमदनी में परिवार का गुजरा कर पाना भी मुश्किल होता था, लेकिन आशुतोष बचपन से ही काफ़ी मेहनती था. पढ़ाई में तेज़ भी था. ग़रीबी में पले बढ़े होने की वजह से उनमें कुछ अलग कर गुजरने का जुनून था.

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