Chhatrapati Shivaji Maharaj’s Wagh Nakh Will Return to India: भारत के गौरवपूर्ण इतिहास में मराठा साम्राज्य की स्थापना करने वाले वीर शिवाजी महाराज (Chhatrapati Shivaji Maharaj) का नाम बड़े ही सम्मान से लिया जाता है. उन्हें अकेले महाराजा के रूप में जाना जाता है, जिन्होंने मुग़ल सल्तनत को चुनौती दी थी. अब उनके ख़ास हथियार ‘बाघ नख’ (Wagh Nakh) को जल्द ही वापिस लाने की तैयारी है. इसी हथियार से उन्होंने बीजापुर के सेनापति अफ़ज़ल ख़ान को मौत के घाट उतारा था.

दरअसल, ये हथियार लंदन के विक्टोरिया एंड एल्बर्ट म्यूज़ियम (Victoria and Albert Museum) में रखा हुआ है. ब्रिटेन सरकार के अधिकारियों ने अब इस ऐतिहासिक हथियार को भारत को वापस लौटाने की सहमति दे दी है. आइए आपको इस बारे में बताते हैं. (Chhatrapati Shivaji Maharaj’s Wagh Nakh Will Return to India)

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भारत वापिस लाया जाएगा शिवाजी का हथियार

दरअसल, 1659 में छत्रपति शिवाजी ने बीजापुर के सेनापति अफ़ज़ल ख़ान (Afzal Khan) को बाघ के नाखून जैसे दिखने वाले खंजर ‘बाघ नख’ से मार गिराया था. इतने दिनों से ये हथियार UK में था. अब महाराष्ट्र के मंत्री सुधीर मुनगंटीवार सितंबर में लंदन जाकर लंदन के विक्टोरिया एंड एल्बर्ट म्यूज़ियम के एक साथ MoU साइन करेंगे. इसे वापस लाने के लिए सांस्कृतिक मामलों के मंत्री, विभाग प्रमुख सचिव, निदेशक, पुरातत्व और संग्रहालय निदेशालय के प्रतिनिधिमंडल ने लंदन में विक्टोरिया और अल्बर्ट संग्रहालय और अन्य संग्रहालयों का दौरा किया था.

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क्या है बाघ नख की ख़ासियत?

बाघ नख एक स्टील से बना हथियार है. इसे बाघ के पंजों से प्रेरित होकर बनाया गया था और इसमें बाघ के नाखून की तरह नुकीलें छड़े लगी हुई थीं. इसे हाथ में पहली और चौथी उंगली में पहना जाता है. अगर इससे हमला किया जाए, तो सामने वाला व्यक्ति लहुलुहान हो सकता है और उसे गहरी चोट पहुंच सकती है. इससे किसी की हत्या भी हो सकती है. जब शिवाजी महाराज और सेनापति अफ़ज़ल ख़ान एक-दूसरे के गले मिले थे, तभी शिवाजी ने बाघ नाघ का इस्तेमाल किया था और उन्हें मार गिराया था. उन्होंने बीजापुर रियासत के ख़िलाफ़ विद्रोह छेड़ा, जिसके बाद उन्होंने मराठा राज्य की स्थापना की और पुणे को अपनी राजधानी बनाया.

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ब्रिटेन कैसे पहुंचा बाघ नख?

एक रिपोर्ट की मानें, आज़ादी से पहले ये विशेष हथियार मराठा राज्य की राजधानी सतारा में था. जब अंग्रेज़ भारत आए थे, तब मराठा पेशवा के प्रधानमंत्री ने इसे ईस्ट इंडिया कंपनी के अधिकारी जेम्स ग्रांट डप को बतौर तोहफ़े में दे दिया था. इसके बाद 1824 में जब ये अधिकारी अपने देश ब्रिटेन पहुंचे, तो उन्होंने इसे लंदन के विक्टोरिया एंड एल्बर्ट म्यूज़ियम को दान कर दिया. इसके बाद से ये वहीं पर है.

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