Success Story Of Siblings : कहा जाता है कि शिक्षा (Education) ज़िन्दगी में आगे बढ़ने का और ख़ुद को बेहतर बनाने का सबसे बड़ा हथियार है. यही वजह है कि कई पेरेंट्स अब जागरूक हो रहे हैं और अपने बच्चों की शिक्षा को सबसे ज़्यादा तवज्जो देते हैं. बच्चे भी अपने करियर को प्रायोरिटी देते हुए ख़ूब मेहनत करते हैं और कई कॉम्पटीटिव एग्ज़ाम को पास करने के लिए एड़ी-चोटी का जोर लगा देते हैं. अगर इस मेहनत का फल मिल जाए, तो फिर तो बच्चों के साथ ही माता-पिता की ख़ुशी भी सांतवें आसमान पर होती है.

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यही ख़ुशी अभी बागपत (Baghpat) के एक परिवार में महसूस की जा रही है. इस परिवार के दो बच्चों ने, जोकि एक-दूसरे के सगे भाई-बहन हैं, उन्होंने विपरीत परिस्थितियों से जूझ कर सरकारी नौकरी प्राप्त की है. आइए आपको उनकी इंस्पिरेशनल कहानी के बारे में आपको बता देते हैं.

भाई-बहन ने परिवार का नाम किया रोशन

दरअसल, उत्तर प्रदेश के बागपत के एक परिवार में भाई-बहन ने जो कर दिखाया है, उसकी उनका परिवार तो क्या पूरे शहर के लोग तारीफ़ कर रहे हैं. इन्होंने अपनी सफ़लता से अपने परिवार के लिए रौशनी का एक चिराग जला दिया है. इन बच्चों की ज़िंदगी मानो थम सी गई थी, जब इनके पिता के साथ एक हादसा हो गया था. लेकिन उस मुश्किल घड़ी में भी परिवार के बेटा-बेटी ने अपना हौसला नहीं तोड़ा. परिवार की आर्थिक स्थिति तंग होने के बावजूद इस परिवार के बेटे ने उत्तर प्रदेश पुलिस (Uttar Pradesh Police) में स्थान प्राप्त किया है और सिपाही के पद पर वो तैनात हुए हैं. वहीं, उनकी बहन का नर्स के पद पर चयन हो गया है.

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हादसे में पिता की आंखों से चली गई थी रौशनी

बागपत कस्बे के इस भाई-बहन के पिता रामचंद्र ने एक हादसे में अपनी आंखों की रौशनी खो दी थी. इसके बाद परिवार की सारी ज़िम्मेदारी मां द्रोपदी देवी ने उठा ली और उसे बखूबी निभाया. द्रोपदी देवी के बेटे विकास कुमार और ज्योति दोनों ने भी इस ज़िम्मेदारी को बखूबी समझा और अपनी पढ़ाई के लिए कड़ी मेहनत की. उनकी मां ने भी बच्चों की परवरिश और शिक्षा में को कमी ना आए, इसलिए दूसरों के कपड़े धोने काम किया.

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बच्चों ने भी मां का किया पूरा सपोर्ट

इस बारे में विकास की मां द्रोपदी देवी ने एक न्यूज़ पोर्टल से बातचीत करते हुए बताया कि पढ़ाई करने के साथ ही उनके बच्चों ने कभी भी मां के काम में हाथ बटाने से गुरेज़ नहीं किया. उनके दोनों बच्चों ने भी उनके साथ कपड़े धोने का काम किया. विकास घर-घर जाकर धुलाई व प्रेस करने के लिए कपड़े लाता था और उन्हें वापिस पहुंचाता था. वहीं, ज्योति अपनी मां की धुलाई में मदद करती थी. इसके बाद दोनों बच्चे स्कूल जाते थे. फ़िलहाल, बच्चों की सफ़लता से पूरे परिवार में ख़ुशी की लहर है. इस सफ़लता पर विकास कुमार कहते हैं कि अगर कड़ी मेहनत से किसी भी काम की तैयारी की जाए तो हर तरह की स्थिति में सफ़लता मिलना निश्चित है. 

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