Commonwealth Games 2022: अविनाश साबले (Avinash Sable) वो नाम है जो लंबी दूरी के धावकों के भारतीय इतिहास में दर्ज हो गया है. इन्होंने लंबी दूरी की प्रतियोगिताओं भारत के लंबे समय से आ रहे सूखे को बीते शनिवार को ख़त्म किया. साबले ने कॉमनवेल्थ गेम्स 2022 के मेंस 3000 मीटर स्टीपलचेज के फ़ाइनल में दूसरा स्थान हासिल किया और रजत पदक (सिल्वर) जीता.

ये पहली बार है जब किसी भारतीय ने इस कैटेगरी में कोई पदक जीता है. Commonwealth Games के पिछले 10 संस्करणों में केन्या ने ही इस कैटेगरी के सारे पदक जीते हैं. इन गेम्स के इतिहास में पहली बार किसी दूसरे देश यानी भारत का नाम इतिहास में दर्ज हुआ है.

स्टीपलचेजर अविनाश साबले अपने जुनून के चलते ये कर पाए, उन्हें दुनिया वालों को कुछ साबित करके दिखाना था. चलिए हम इतिहास रचने वाले अविनाश के बारे में विस्तार से पढ़ते हैं-

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पैदल स्कूल जाते थे अविनाश साबले (Avinash Sable) 

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अविनाश साबले (Avinash Sable) महाराष्ट्र के बीड ज़िले के रहने वाले हैं. किसान के बेटे अविनाश बचपन में पैदल स्कूल जाते थे. उन्होंने कभी भी खेल को करियर के रूप में चुनने के बारे में नहीं सोचा था. इसलिए अविनाश ने इंडियन आर्मी जॉइन कर ली. वो भारतीय सेना के 5 महार रेजिमेंट में शामिल हुए. इंडियन आर्मी में देश की सेवा करते हुए उन्हें सेना के एथलेटिक्स कार्यक्रम में हिस्सा लेने का मौक़ा मिला.

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सेना में पहली बार रनिंग के बारे में गंभीरता से सोचा 

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2015 मे उन्होंने स्पोर्ट्स रनिंग के बारे में गंभीरता से सोचना शुरू किया और उन्हें क्रॉस कंट्री इवेंट्स के लिए चुन लिया गया. उन्होंने बाद में अपनी टीम के साथ प्रतियोगिता भी जीती. 2017 में एक प्रतियोगिता के दौरान सेना के कोच अमरीश कुमार ने उन्हें स्टीपलचेज में हिस्सा लेने के लिए कहा. अविनाश साबले ने इसकी तैयारियां शुरू कर दी.


2018 में भुवनेश्वर में आयोजित ओपन नेशनल में साबले ने 3000 मीटर स्टीपलचेज में 8: 29.88 का समय निकाला और 30 साल के राष्ट्रीय रिकॉर्ड को 0.12 सेकेंड से तोड़ दिया. 

यहां हाथ लगी निराशा 

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वो 3000 मीटर स्टीपलचेज की कैटेगरी में टोक्यो ओलंपिक के लिए क्वालीफ़ाई करने वाले लंबी दूरी के धावक बने. हालांकि, यहां वो कोई पदक जीतने में कामयाब नहीं हुए. इसी साल ओरेगॉन में हुई वर्ल्ड एथलेटिक्स में भी उनसे पदक की उम्मीदें थीं, लेकिन वो ऐसा कर न सके. इससे बहुत से लोगों ने उनकी आलोचना करनी शुरू कर दी थी.

जमकर की तैयारी 

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अविनाश यहां भी हार नहीं माने. दोस्तों और कोच के सपोर्ट के साथ तैयारी जारी रखी. उन्होंने सोचा अगर कड़ी मेहनत उन्हें पदक नहीं दिला सकती तो कोई भी उन्हें मेडल हासिल नहीं करवा सकता. इसी जुनून के साथ अविनाश ने कॉमनवेल्थ गेम्स की जी-जान लगाकर तैयारी की. उनकी मेहनत रंग लाई और वो सिल्वर मेडल जीतने में कामयाब रहे.

ये बात करना चाहते थे साबित 

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अविनाश गोल्ड 0.5 माइक्रो सेकंड से चूक गए, इसका उन्हें मलाल है, साथ में ख़ुशी भी कि वो देश के लिए पदक जीत सके. उन्होंने पदक जीतने के बाद कहा‘मैं ये साबित करना चाहता था कि सिर्फ़ अफ़्रीकी, केन्याई और इथियोपियाई ही नहीं लंबी दूरी की दौड़ में एक भारतीय भी जीत सकता है.’ 

हमें उम्मीद है कि वो आगे भी ऐसे ही भारत का नाम रौशन करते रहेंगे.