फ़्लाइंग सिख मिल्खा सिंह को कौन नहीं जानता… उनकी तो बायोपिक भी बन चुकी है ‘भाग मिल्खा भाग’. ख़ैर, आज हम मिल्खा सिंह की नहीं, बल्कि उस भारतीय एथलीट की बात करेंगे जिसने मिल्खा सिंह को रेस में हराकर गोल्ड मेडल जीता था. लेकिन वो स्टार बनने के बाद भी गुमनामी में जिया और ग़रीबी के दिन काटते हुए इस दुनिया से चला गया.
हम बात कर रहे हैं धावक माखन सिंह(Makhan Singh) की. यही वो एकमात्र भारतीय एथलीट हैं जिन्होंने किसी राष्ट्रीय प्रतियोगिता में मिल्खा सिंह को मात दी थी. माखन सिंह पंजाब के होशियारपुर के रहने वाले थे. उन्हें बचपन से ही दौड़ने का शौक़ था और इसी शौक़ के चलते वो सेना में भर्ती हो गए.
मिल्खा सिंह को दी मात
यहां माखन सिंह की तैयारी बहुत अच्छे से हुई. इसका नतीजा ये रहा कि उन्होंने 1959 में कटक के नेशनल गेम्स में 400 मीटर में ब्रोंज मेडल जीत लिया. फिर उन्होंने 1962 में कोलकाता में हुए नेशनल गेम्स में वो कमाल किया जो कोई भी नहीं कर पाया था. माखन सिंह ने 400 मीटर रेस में मिल्खा सिंह को हराकर गोल्ड मेडल अपने नाम किया. इससे वो पूरी दुनिया में छा गए.
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परिवार चलाने के लिए चलाना पड़ा ट्रक
आगे भी वो देश के लिए दौड़ते रहे. उन्होंने 1959-1964 के बीच कुल 16 पदक जीते, इनमें 12 गोल्ड, 3 सिल्वर और 1 ब्रांज मेडल शामिल है. इन्हें 1964 में अर्जुन अवॉर्ड देकर भारत सरकार ने सम्मानित भी किया था. 1972 में माखन सिंह भारतीय सेना से रिटायर हो गए तो उनका दौड़ना भी बंद हो गया. परिवार को चलाने के लिए उन्हें काफ़ी जद्दोजहद करनी पड़ी. उन्हें घर चलाने के लिए ट्रक ड्राइवर की नौकरी करनी पड़ी. वो ट्रक में सामान लेकर बहुत दूर-दूर तक जाया करते थे.
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परिवार वालों को नीलाम करना पड़ा था अर्जुन अवॉर्ड
1990 में उनके पैर में चोट लग गई. ग़रीबी के चलते वो उसका ठीक से इलाज नहीं करवा पाए और वो कुछ समय बाद उनकी चोट गैंगरीन में तब्दील हो गई. मजबूरन डॉक्टर्स को उनका एक पैर काटना पड़ा. अब वो ट्रक नहीं चला सकते थे, इसलिए उन्होंने घर चलाने के लिए एक स्टेशनरी की दुकान खोल ली. 2002 में वो स्वर्ग सिधार गए, तब भी उनके घर के आर्थिक हालात ठीक नहीं थे. उनके परिवार को घर चलाने के लिए उनके अर्जुन पुरस्कार तक को नीलाम करना पड़ा था.
माखन सिंह देश के उन स्पोर्ट्स स्टार्स में हैं जिन्होंने एक समय में विश्वपटल पर देश का नाम रौशन किया था और लेकिन बाद में देश ने ही उन्हें भुला दिया.