जब बात चाय की चुस्कियों की हो तो जो पी रहा हो, वो ही समझ सकता है, कोई और क्या बोले. लेकिन चाय के चाहने वाले ही इसके क़द्रदान नहीं हैं. दुनिया का हर शख्स इसके ज़ायके और खुशबू का दीवाना है. किसी को पीनी पसंद है तो किसी को पिलानी.
ज़ायकेदार चाय की खुशबू मन को किसी जाने-अनजाने की किचन की ओर बरबस ही खींच कर ले जाती है. आप चाहें न चाहें, लेकिन चाय को मना नहीं कर पाते. लेकिन इस बेहतरीन और स्वादिष्ट चाय की शुरुआत कैसे हुई, इसके बारे में बहुत कम ही लोग जानते होंगे.
कहा जाता है कि लगभग 4 हज़ार साल पहले चीन के लोगों ने सबसे पहले चाय पीनी शुरू की थी. उसके बाद लगभग 300 साल पहले यूरोप में चाय पहुंची. फिर देखते ही देखते 18वीं सदी के दौरान चाय काफी मशहूर हो गई, खासकर उत्तरी अमेरिका और यूरोपीय देशों में. इस वक्त तक चीन अकेला दुनिया भर के लिए चाय उत्पादन करता और बेचता था. इस तरह चीन का चाय का व्यापार रहा ऊंचाइयों पर पहुंच गया.
जब अंग्रेजों ने भारत पर शासन करना शुरू किया, तो उन्हें असम में चाय के कुछ पौधे मिले. उन्होंने उन पौधों की मदद से चाय बनानी शुरू की. उन्होंने पाया कि असम की चाय का टेस्ट ज्यादा अच्छा है. धीरे-धीरे उन्होंने असम में अपना कृषि उत्पादन का व्यापार आगे बढ़ाया. फिर श्रीलंका, सुमात्रा, जावा जैसे देश भी चाय की खेती करनी शुरू कर दिए.
बाद में ये बात सामने आई कि चीन में उगने वाले चाय के पौधों की ऊंचाई एक मीटर से ज्यादा नहीं होती, जबकि भारत में चाय के पौधे 6 मीटर तक ऊँचे होते हैं. इसके बाद दुनिया में चाय के व्यापार में भारत लीड करने लगा.
भारत में चाय पीने से सम्बंधित लिखित दस्तावेज़ 750 ईसा पूर्व का मिलता है.
एक महत्वपूर्ण और रोचक किस्से के अनुसार, एक बौद्ध सन्यासी ने लगभग दो हज़ार साल पहले सात साल तक बिना सोये तपस्या करने का निश्चय किया. जब उन्हें बिना सोये हुए पांच साल हो गए, उन्हें लगा कि अब नींद आ जाएगी, तो उन्होंने पास की झाड़ियों से कुछ पत्तियां लेकर चबा लीं. इससे उन्हें ऊर्जा मिली और नींद गायब हो गई. इसके बाद वो नींद लगने पर पतियों को चबाकर उसे भगा दिया करते थे. इस तरह से उनकी सात साल की तपस्या पूर्ण हुई. ये पत्तियां चाय की थीं.
कैसे बनती है चाय?
छोटी पत्तियों और कलियों को चाय के पौधों से तोड़कर अलग किया जाता है. इसके लिए पौधे कि उम्र कम से कम तीन साल होनी चाहिए. ग्रीन और ब्लैक, दो तरह की चाय की पत्तियां पाई जाती हैं. इन पत्तियों को तोड़ने के बाद दबाया, सुखाया फिर पैक किया जाता है.
ब्लैक टी तैयार करने के लिए पत्तियों को रोलर्स के बीच दबाकर किण्वन (Fermentation) की प्रक्रिया के लिए रखा जाता है. इसके बाद फिर से उन्हें रोलर्स के बीच दबाया जाता है. फिर सूखने के लिए रखा जाता है. आखिर में इन पत्तियों को पैक करके अलग-अलग जगहों पर भेज दिया जाता है.
चाय एक, फायदे अनेक
-Wonder Drink के नाम से मशहूर चाय को बहुत से पोषक तत्वों से भरपूर माना जाता है, जो हमारी सेहत के लिए ज़रूरी होते हैं. इसमें कई ज़रूरी Polyphenols, प्राकृतिक ऑर्गेनिक रसायन पाए जाते हैं.
– 1989 में Japanese Journal of Nutrition की एक स्टडी में खुलासा हुआ कि चाय उत्पादन वाले क्षेत्रों में लोगों को पेट के कैंसर से होने वाली मृत्यु दर, दूसरे स्थानों की तुलना में कम होती है.
-चाय शरीर में खून का थक्का नहीं जमने देती. ये कोलेस्ट्रोल को कंट्रोल करने में मदद करने के साथ ही कैंसर को बढ़ावा देने वाले कारकों को भी कम करती है. चाय में प्राकृतिक फ्लोराइड पाया जाता है, जो दांत और हड्डियों को मेंटेन करता है.
कुल मिलकर, चाय कॉफ़ी की तुलना में कहीं बेहतर होती है. दूसरे ड्रिंक्स की तुलना में चाय से आपको कई सारे फायदे मिलने के साथ ही, ज़ायके का लुत्फ़ भी मिलता है.